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झारखंड चुनाव:क्या इस ट्रेंड को समझ ‘हिंदुत्व’ पर जोर दे रही BJP? 

दो बड़े एग्जिट पोल बता रहे हैं कि झारखंड में बीजेपी बहुमत से दूर रह सकती है.

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भारत
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क्या हरियाणा और महाराष्ट्र से चली हवा झारखंड का मौसम भी बदल रही है? मतदान बाद मतदाताओं का मन जानकर लौटने का दावा करने वाले तो ऐसा ही कह रहे हैं. दो बड़े एग्जिट पोल आए हैं, और दोनों बता रहे हैं कि झारखंड में बीजेपी बहुमत से दूर रह सकती है. एक में तो ये अनुमान लगाया गया है कि राज्य में JMM, कांग्रेस और RJD गठबंधन की सरकार बन सकती है.

अगर ये अनुमान सही हैं तो ऐसा कैसे हो रहा है? क्या बीजेपी को CAA, NRC और मंदिर पर बहुप्रतिक्षित फैसले का लाभ नहीं मिला? और अगर ऐसा है तो वो कौन से मुद्दे हैं जो ध्रुवीकरण के मुद्दों पर भारी पड़ गए? एक सवाल ये भी है कि क्या कोई ट्रेंड है जो हरियाणा-महाराष्ट्र-झारखंड के बाद दिल्ली, पश्चिम बंगाल और बिहार में भी दिख सकता है?

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दो बड़े एग्जिट पोल बता रहे हैं कि झारखंड में बीजेपी बहुमत से दूर रह सकती है.
दो बड़े एग्जिट पोल बता रहे हैं कि झारखंड में बीजेपी बहुमत से दूर रह सकती है.

काम न आया ध्रुवीकरण?

देश में कहीं भी चुनाव हों, ध्रुवीकरण के मुद्दे कुलबुलाने-बुलबुलाने लगते हैं. झारखंड चुनावों के दौरान ही नागरिकता संशोधन कानून पास किया गया. इसमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान और  बांग्लादेश से आए गैर मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने में राहत देने की बात है. अब उन्हें 11 साल के बजाय 5 साल में ही नागरिकता मिल जाएगी. विपक्ष और कई संगठनों ने CAA को NRC से जोड़कर हिसाब बताया कि इससे देश में रह रहे मुसलमानों को भी खतरा हो सकता है.

आशंका ये जताई कि जब पूरे देश में NRC लागू होगा तो उन मुस्लिमों को भी परेशानी होगी, जिनके पास ये दिखाने के लिए पर्याप्त कागजात नहीं हैं कि वो यहीं के नागरिक हैं. जबकि गैर मुस्लिम ये कह सकते हैं कि वो तो शरणार्थी हैं, किसी तरह जान बचाकर आए हैं, कागज कहां से लाएं.

झारखंड चुनाव से ही ऐन पहले अयोध्या में राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया-अयोध्या में विवादित जमीन पर मंदिर ही बनेगा. झारखंड के चुनाव के लिए की गई रैलियों में पीएम मोदी से लेकर अमित शाह और राजनाथ सिंह तक ने बार-बार कहा कि मंदिर का जो काम दशकों से अटका था, उसे उन्होंने अंजाम तक पहुंचा दिया है.

इसके अलावा तीन तलाक पर नया कानून भी यही सरकार लेकर आई. इन सबके बावजूद क्यों EXIT POLLS में दिख रहा है कि बीजेपी झारखंड में हार रही है. तो ऐसा क्या है जो इन मुद्दों पर हावी हो गया? क्या विकास के नाम पर जिन मुस्लिमों, दलितों और बेहद गरीब तबकों ने बीजेपी पर भरोसा किया था, वो पिछले कुछ महीनों में हिंदुत्व के एजेंडे को सिर उठाता देख डर गए. क्या ये लोग बीजेपी से दूर चले गए हैं?

C VOTER का सर्वे बताता है कि सिर्फ 16 फीसदी मुसलमानों ने झारखंड में बीजेपी को वोट किया है, जबकि 55% लोगों ने JMM-कांग्रेस को वोट किया है. आदिवासियों के मामले में तो 7 फीसदी ज्यादा लोगों ने BJP की तुलना में JMM-कांग्रेस को वोट किया है. इसी तरह कम आय वाले वर्ग ने बीजेपी को बढ़चढ़ कर सपोर्ट नहीं किया है..वो JMM-कांग्रेस और बीजेपी के बीच बंटा है.
दो बड़े एग्जिट पोल बता रहे हैं कि झारखंड में बीजेपी बहुमत से दूर रह सकती है.
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रंग दिखा रही मंदी?

झारखंड एक ऐसा राज्य है, जहां बड़ी तादाद में इंडस्ट्री हैं. मंदी की मार के कारण तमाम फैक्ट्रियों में काम कम हुआ है. ऐसे में बड़े पैमाने पर छंटनियां हुई हैं. ये सरकारी डेटा भी सामने आ ही चुका है कि देश में 45 सालों की तुलना में सबसे ज्यादा बेरोजगारी है. सरकार अपनी तरफ से हमेशा मंदी की गंभीरता को लेकर टाल मटोल वाला रवैया अख्तियार करती रही है, लेकिन झारखंड के मामले में क्या ये नहीं मानना चाहिए कि वोटर ने मंदी का बदला लिया है.

आखिर उस परिवार को मंदिर, CAA और NRC से  क्या मतलब जिसके एक या दो सदस्य की नौकरी चली गई है, जिसके घर का बजट तबाह हो गया या यूं कहें कि जिंदगी बहुत मुश्किल हो गई है. झारखंड चुनाव के वक्त क्विंट के रिपोर्टर शादाब मोइजी जमशेदरपुर के आदित्यपुर इंडस्ट्रियल एरिया में एक शख्स से मिले थे. उस शख्स ने कहा था- 'मेरी नौकरी चली गई लेकिन शायद चुप रहना ही देशभक्ति है'. लेकिन क्या वो शख्स मतदान के दिन भी चुप रहा होगा? क्या उसने अपना गुस्सा नहीं दिखाया होगा? अनुमान लगाइए.

क्या इसलिए बदला है बीजेपी ने पैंतरा?

EXIT POLL सही साबित हुए तो हरियाणा और महाराष्ट्र के बाद झारखंड तीसरा ऐसा राज्य होगा, जहां बीजेपी बहुमत से दूर हो जाएगी. हरियाणा में जुगाड़ की सरकार बन गई लेकिन महाराष्ट्र में सत्ता छिन गई. तो क्या ये एक बड़ा ट्रेंड है, जिसे बीजेपी पकड़ नहीं पा रही? या फिर बात ये है कि इस ट्रेंड के बारे में सबसे ज्यादा तो बीजेपी को ही पता है. और इसीलिए हाल के महीनों में हिंदुत्व के एजेंडा पर जोर है, राष्ट्रवाद का शोर है. क्या बीजेपी को तीन राज्यों में और भी कम सीटें मिलतीं, अगर वो हिंदुत्व और राष्ट्रवाद पर जोर न देती?

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हिंदू राष्ट्र का नारा तब लुभाता है जब पेट भरा हो, जेब में पैसे हों. राष्ट्र का नारा राष्ट्रीय चुनाव में ही ठीक लगते हैं, जब बात लोकल लेवल पर आती है तो विकास चाहिए, काम चाहिए और चाहिए शांति, ताकि काम कर सकें.

अब जबकि दिख रहा है कि हिंदुत्व और राष्ट्रवाद का एजेंडा केंद्र में सरकार बनाने में तो काम आ सकता है, राज्यों में एक हदतक सीटें भी दिला सकता है लेकिन कुर्सी नहीं दिला सकता तो बीजेपी क्या दिल्ली, बिहार और  बंगाल में रणनीति बदलेगी? बिहार में बीजेपी को नीतीश की 'सुशासन बाबू' वाली छवि का सहारा जरूर है. लेकिन दिल्ली में केजरीवाल से और बंगाल में ममता से मुकाबला है. बीजेपी के लिए डर ये है कि अगर उसने अपने सुर नहीं बदले तो आने वाले चुनावों में भी उसके लिए मुश्किल हो सकती है.

बीजेपी को खुद याद रखना चाहिए कि मोदी सरकार पहली बार सत्ता में आई थी, 'अच्छे दिन आएंगे' के नारे पर. दूसरी बार सत्ता मिली 'सबका साथ-सबका विकास' के वादे पर. एक के  बाद एक राज्यों में चुनावों के नतीजे बता रहे हैं कि आज भी ज्यादातर देश को यही नारे, यही विजन पसंद आता है. तो शायद संदेश यही है - मंदी का जवाब हिंदुत्व नहीं हो सकता. मंदी से मुंह मत मोड़िए, तरक्की लाइए, नहीं तो ये मंदी आपके घर तक आएगी.

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