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ART बिल लोकसभा से पास: कपल्स-डोनर्स के लिए नियम, LGBTQIA+ के खिलाफ कैसे?

इस विधेयक के संसद में जारी शीतकालीन सत्र के दौरान राज्यसभा में भी पारित होने की उम्मीद है

Published
भारत
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साल 2008 में इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने मेडिकल टूरिज्म मार्केट के रिप्रोडक्टिव (प्रजनन) सेगमेंट को 450 मिलियन डॉलर का बताया. साथ ही इसके लिए भविष्यवाणी की गई कि अगले एक दशक में इसका बाजार बढ़कर 6 अरब डॉलर प्रतिवर्ष हो जाएगा.

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लेकिन 13 साल बाद भी भारत में अब तक एक अकेला ऐसा कानून नहीं है जिसमें असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (ART) के सभी प्रावधान आते हों. इसमें एग और स्पर्म डोनेशन, इन-वाइटो फर्टिलाइजेशन (IVF), इन्ट्रयूटरिन इन्सेमनैशन (IUI) और सरोगेसी आदि आते हैं.

बुधवार, 1 दिसंबर को, लोकसभा ने असिस्टेड रिप्रोडक्शन (प्रजनन) टेक्नोलॉजी (रेगुलेशन) विधेयक पारित किया. जिसे 2020 में केंद्रीय कैबिनेट की तरफ से मंजूरी दी गई थी. इस विधेयक के संसद में जारी शीतकालीन सत्र के दौरान राज्यसभा में भी पारित होने की उम्मीद है.

हालांकि इस तरह के विधेयक को लेकर पार्टियों की अलग-अलग राय है. विपक्षी दलों ने मांग की है कि इस फैसले को पूरी तरह हरी झंडी दिए जाने से पहले LGBTQIA+ कम्युनिटी को भी कानून बनाने में शामिल किया जाए.

क्या कहता है बिल?

इस बिल का उद्देश्य "सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी सेवाओं की सुरक्षित और नैतिक प्रैक्टिस" प्रदान करना है. इसमें डोनर के अधिकारों की रक्षा करने के प्रावधान शामिल हैं, जो भी कपल ART के जरिए बच्चा पैदा करना चाहते हैं, या बच्चा इस प्रोसेस से पैदा हुआ है. जानिए इसमें क्या-क्या शामिल है.

क्लिनिक और बैंकों का रजिस्ट्रेशन

सबसे ज्यादा जरूरी प्रावधान है कि ये बिल ऐसी सेवाएं देने वाले क्लिनिकों और बैंकों की एक नेशनल रजिस्ट्री बनाना करना चाहता है. किसी भी क्लिनिक को तभी रजिस्ट्रेशन मिलेगा, जो तमाम प्रावधानों को पूरा करता हो. जिसमें मैन पावर, इंफ्रास्ट्रक्चर और डायग्नोस्टिक सुविधाएं शामिल हैं. ये लाइसेंस पांच साल के लिए वैलिड रहेगा, इसके बाद इसे फिर से रिन्यू करवाना होगा.

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बोर्ड्स बनाए जाएंगे

बिल में प्रावधान है कि इसके तहत राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर बोर्ड्स बनाए जाएंगे. ये बोर्ड ART की हर तरह की सुविधा को मॉनिटर करेंगे. कानून के पालन के अलावा ये बोर्ड क्लिनिकों के कामकाज पर भी नजर रखेंगे.

ART सेवाएं देने की शर्तें

इस बिल के जरिए सभी पक्षों की लिखित सहमति को अनिवार्य बनाने पर जोर दिया गया है. इसमें डोनर और कपल की सहमति होना जरूरी है. साथ ही इसमें कहा गया है कि, कपल को डोनर के लिए बीमा कवरेज भी देना चाहिए. इसके अलावा क्लिनिक कपल या फिर महिला को बच्चे के लिंग के बारे में नहीं बता सकता है.

  • डोनेट करने और कमीशन की शर्तें

  • 21 से 55 वर्ष की आयु के पुरुषों से स्पर्म लें

  • 23-55 वर्ष की आयु के बीच की महिलाओं से ही oocytes (अंडाशय में एक कोशिका) लें

  • एक oocyte डोनर एक विवाहित महिला होगी, जिसकी अपनी कम से कम एक संतान हो

  • महिला केवल एक बार दान कर सकती है और उससे 7 से ज्यादा oocyte नहीं निकाले जा सकते हैं

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कमीशनिंग के लिए:

ART सेवाओं को लागू करने के लिए, महिला की आयु विवाह की कानूनी आयु (18 वर्ष) से ​​अधिक और 55 वर्ष से कम और एक पुरुष की आयु 21 वर्ष से अधिक और 55 वर्ष से कम होनी चाहिए. हालांकि सबसे जरूरी बात ये है कि ऐसी सेवाएं सिर्फ एक कमीशनिंग कपल या एक महिला के लिए उपलब्ध हैं.

क्या है सजा?

  • इस बिल के तहत कानून का उल्लंघन करने पर सजा के प्रावधान भी हैं. जिसमें -

  • ART के जरिए पैदा हुए बच्चों को छोड़ना या उनका किसी भी तरह शोषण करना

  • मानव भ्रूण को बेचना, खरीदना, व्यापार करना या इसका आयात करना

  • डोनर्स की तलाश करने के लिए किसी बिचौलिए की मदद लेना

  • कमीशनिंग कपल, महिला या डोनर का किसी भी रूप में शोषण करना

  • मानव भ्रूण को नर या जानवर में ट्रांसफर करना

पहली बार इस तरह का कोई भी अपराध करने वाले पर 5 लाख रुपये से लेकर 10 लाख तक का जुर्माना लगाया जा सकता है. इसके बाद उल्लंघन करने पर 8 से 10 साल की कैद और 20 लाख तक का जुर्माना हो सकता है.

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LGBTQIA+ कम्युनिटी के खिलाफ क्यों है बिल?

अब जैसा कि हमने आपको पहले ही बताया कि इस बिल को LGBTQIA+ कम्युनिटी के खिलाफ बताया जा रहा है. इसे अगर सरल भाषा में कहें तो ये बिल LGBTQIA+ कम्युनिटी, लिव-इन कपल और सिंगल मेन को ART सेवाओं से दूर करता है.

तमिलनाडु से कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने इसे "भेदभावपूर्ण" बताते हुए कहा कि, ये संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून की समानता) का उल्लंघन है. लाइव लॉ के मुताबिक उन्होंने कहा,

"ऐसे कई लोग हैं जो बच्चे पैदा करने में असमर्थ हैं और जिन्हें ART से फायदा मिलता है. ये आवश्यक है कि ये तकनीक सभी के लिए उपलब्ध हो और विनियमित हो और सुनिश्चित हो कि सर्वोत्तम चिकित्सा पद्धतियों का पालन किया जाए."

महाराष्ट्र से एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने भी कहा कि विषमलैंगिक जोड़ों के अलावा, इस देश में कई ऐसे लोग हैं जो बच्चा पैदा करना चाहते हैं. खासकर LGBTQIA+ समुदाय के लोग...

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सुले ने ये भी कहा कि 2017 के एडॉप्शन रूल्स के मुताबिक सिंगल पुरुष किसी लड़की को एडॉप्ट नहीं कर सकते हैं. सुले ने लोकसभा में कहा,

"ये एक ऐसी चीज है जिसे हमें, एक समाज के रूप में आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता है. मुझे लगता है कि हमें किसी भी ऐसे इंसान को वंचित नहीं करना चाहिए जो बच्चा पैदा करना चाहता है. हम सभी अच्छी सोच को एक साथ क्यों नहीं रख सकते हैं. हमें ये सोचना चाहिए कि हमारे बनाए गए कानूनों का इस्तेमाल हर कोई कैसे कर सकता है."

फर्स्टपोस्ट के मुताबिक, आरएसपी सांसद एनके प्रेमचंद्रन ने कहा, “सरोगेसी बिल उच्च सदन में पेंडिंग है, जिसे पारित नहीं किया गया है. ये सदन दूसरे कानून के आधार पर नए कानून को कैसे पारित कर सकता है. मेरा कहना है कि इस विधेयक पर विचार नहीं किया जा सकता, इस विधेयक पर चर्चा नहीं हो सकती."

इसके बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने साफ किया कि सरोगेसी विधेयक और ART विधेयक, दोनों को राज्यसभा में पेश किया जाएगा. पहले वाले बिल को पास करने के बाद ही दूसरा विधेयक पास किया जाएगा.

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