प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर ऐतिहासिक लाल किले से राष्ट्र को संबोधित कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजयेपी के कश्मीर फॉर्मूला का जिक्र करते हुए कहा
जम्मू और कश्मीर को लेकर अटल बिहार वाजपेयी जी ने हमें रास्ता दिखाया है और वही रास्ता सही है. उसी रास्ते पर हम चलना चाहते हैं. वाजपेयी जी ने कहा था, ‘इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत’. इन तीन मुख्य मुद्दों को लेकर हम कश्मीर के विकास के लिए काम करना चाहते हैं. चाहे लद्दाख हो, जम्मू हो या श्रीनगर घाटी हो. हम पूरे जम्मू-कश्मीर में समान विकास चाहते हैं. हम जम्मू-कश्मीर के जन-जन को गले लगाकर चलें, इसी भाव के साथ हम आगे बढ़ना चाहते हैं. हम गोली और गाली के रास्ते पर नहीं, गले लगाकर के मेरे कश्मीर के देशभक्ति के साथ जीने वाले लोगों के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं.
जब भी कश्मीर की बात आती है तो कश्मीर के ज्यादातर नेता वाजपेयी की ही कश्मीर नीति की चर्चा करते हैं. कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला से लेकर महबूबा मुफ्ती तक मोदी सरकार को ‘अटल फॉर्मूले’ को अपनाने की सलाह देते रहे हैं.
आखिर, पूर्व पीएम वाजपेयी ने ऐसा कौन सा जादू किया था, जो उनके बाद के पीएम नहीं कर सके.
कश्मीर पर पूर्व पीएम वाजपेयी का ‘अटल फॉर्मूला’
कश्मीर में जब भी तनाव बढ़ता है तो वहां के लोग वाजपेयी के ‘कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत’ फॉर्मूले को याद करते हैं. कश्मीरी मानते हैं कि कश्मीर को लेकर वाजपेयी की पॉलिसी सही थी.
वाजपेयी को कश्मीर को शांत रखने का नुस्खा पता था. और ये फॉर्मूला था, बातचीत का. कश्मीर पर सरहद पार से तनाव फैलाने वाले पाकिस्तान से बातचीत, कश्मीरियों से बातचीत. वाजयेपी जब तक प्रधानमंत्री रहे तब तक वो हमेशा पाकिस्तान के साथ इसकी पहल करते रहे. नवाज शरीफ हो या परवेज मुशर्रफ, वाजपेयी ने हमेशा पाकिस्तान के साथ चर्चा जारी रखी, ताकि घाटी में शांति बरकरार रह सके. यही वजह थी कि कारगिल वॉर और संसद पर हमले के बाद भी उन्होंने पाकिस्तान के लिए दरवाजे बंद नहीं किए.
वाजपेयी ने कश्मीरियों से भी की थी बातचीत से मसलों को हल करने की अपील
वाजपेयी जानते थे कि कश्मीर को लेकर केंद्र सरकारों के कई फैसले गलत रहे हैं. उन्हें लगता था कि राष्ट्रीय स्तर का कोई भी नेता कश्मीरियों के दर्द को समझ नहीं सका. अपनी इसी समझ के बूते उन्होंने कश्मीर में विरोध के बीच एक रैली में कश्मीरियों के दिल तक पहुंचने की कोशिश की थी.
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अभी तक जो खेल होता रहा, मौत का... खून का...वो बंद होना चाहिए. लड़ाई से समस्या हल नहीं होगी. अभी आपने देखा, इराक में लड़ाई बंद हो गई. अच्छा हुआ, हम तो कहते हैं कि इराक में लड़ाई होनी ही नहीं चाहिए थी. क्या जरूरत थी लड़ाई की? जो सवाल हैं, जो मसले हैं, उन्हें आपस में बातचीत करके हल करो. बंदूक से मसले हल नहीं होंगे, बंदूक से आदमी को मारा जा सकता है लेकिन बंदूक से उसकी भूख नहीं मिट सकती.कश्मीर में एक रैली के दौरान तत्कालीन पीएम वाजपेयी के संबोधन का अंश (18 अप्रैल 2003)
वाजपेयी ने कहा था..
‘हम फिर दोस्ती का हाथ बढ़ाते हैं. मगर हाथ दोनों तरफ से बढ़ना चाहिए. दोनों तरफ से फैसला होना चाहिए, कि हम मिलकर रहेंगे.हम यहां आपका दुख-दर्द बांटने आए हैं. आपकी जो भी शिकायतें हैं, हम मिलकर उसका हल निकालेंगे. आप दिल्ली के दरवाजे खटखटाएं. दिल्ली की केंद्र सरकार के दरवाजे आपके लिए कभी बंद नहीं होंगे. हमारे दिलों के दरवाजे आपके लिए हमेशा खुले रहेंगे.’
वाजपेयी ने इस बयान के जरिए ही कश्मीरियों के दिल में जगह बनाई. पहली बार कश्मीरियों को लगा कि कोई भारतीय प्रधानमंत्री उनके दुखों की बात कर रहा है.
उन्होंने जम्मू-कश्मीर के लोगों को भरोसा दिलाया था कि वे हर समस्या का हल बातचीत से करना चाहते हैं. इसी दौरान उन्होंने अलगाववादियों समेत सभी कश्मीरियों से ‘इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत’ के दायरे में बातचीत की पेशकश की थी.
इससे पहले की केंद्र सरकारों ने जब भी अलगाववादियों से बातचीत की पेशकश की, जिसपर अलगाववादी कभी सहमत नहीं हुए. लेकिन वाजपेयी अपने शब्दों की जादूगरी से अलगावादियों को बातचीत के लिए राजी करने में कामयाब रहे.
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