अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने 23 अगस्त को स्वरा भास्कर के खिलाफ अवमानना की प्रक्रिया शुरू करने की अपील खारिज कर दी है. ये निवेदन भास्कर के इस साल फरवरी में अदालतों पर की गई टिप्पणी को लेकर किया गया था. आरोप है कि स्वरा भास्कर ने अदालतों के खिलाफ 'अपमानजनक' भाषा का इस्तेमाल किया था.
इसके लिए केके वेणुगोपाल के समक्ष एक याचिका दी गई थी, जिसमें भास्कर के खिलाफ आपराधिक अवमानना की प्रक्रिया शुरू करने की मंजूरी मांगी गई थी.
याचिका में आरोप लगाया गया कि स्वरा भास्कर ने ‘अदालतों की निंदा’ की है. ये अवमानना का वही आधार है जिस पर 14 अगस्त को प्रशांत भूषण दोषी पाए गए थे. इस साल फरवरी में भास्कर ने मुंबई में एक कॉन्फ्रेंस के दौरान कथित तौर पर कहा था कि ‘अदालतों को पूरा यकीन नहीं है कि वो संविधान में विश्वास रखती हैं या नहीं’.
स्वरा का 'आपत्तिजनक' बयान
याचिका के मुताबिक, स्वरा भास्कर के बयान में आपत्तिजनक हिस्सा ये था:
“हम आज ऐसी स्थिति में हैं कि अदालतों को यकीन नहीं है कि वो संविधान में विश्वास रखती हैं या नहीं... हम ऐसे देश में रह रहे हैं जहां सुप्रीम कोर्ट एक फैसले में कहता है कि बाबरी मस्जिद गिराया जाना गैरकानूनी था और फिर उसी फैसले में मस्जिद गिराने वालों को इनाम देता है...”
उषा शेट्टी ने अपनी याचिका में दावा किया कि ये बयान स्वाभाव में 'अपमानजनक' और 'निंदनीय' है. शेट्टी ने याचिका में कहा, "ये लोकप्रियता पाने का आसान रास्ता था लेकिन लोगों को सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ भड़काने की जानबूझकर की गई कोशिश थी."
अटॉर्नी जनरल का जवाब
याचिका के जवाब में वेणुगोपाल ने कहा कि भास्कर का बयान उनका अपना नजरिया है और न्यायपालिका के संस्थान पर हमला नहीं है.
“पहले हिस्से में बयान तथ्यात्मक लगता है और स्पीकर का अपना नजरिया है. बयान में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र है और ये संस्थान पर हमला नहीं है. इसमें सुप्रीम कोर्ट पर कोई बयान नहीं दिया गया है या उसका अपमान या उसकी अथॉरिटी को कम करने की बात नहीं है. मेरे विचार में बयान आपराधिक अवमानना नहीं करता है.”केके वेणुगोपाल, अटॉर्नी जनरल
अटॉर्नी जनरल ने कहा, "दूसरा बयान जिसमें अदालतों और संविधान की बात कही गई है, वो एक अस्पष्ट टिप्पणी है और किसी विशेष अदालत से संबंधित नहीं है और वो इतनी सामान्य है कि कोई उसे गंभीरता से नहीं लेगा... मुझे नहीं लगता कि इस केस में कोर्ट की निंदा या उसकी अथॉरिटी कम करने का अपराध बनता है."
याचिकाकर्ता ने खटखटाया सॉलिसिटर जनरल का दरवाजा
अटॉर्नी जनरल ने निवेदन खारिज किया तो याचिकाकर्ता ने अब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का दरवाजा खटखटाया है. मेहता से भास्कर के खिलाफ अवमानना प्रक्रिया शुरू करने की मंजूरी मांगी है. हालांकि, कानून में इसका कोई प्रावधान नहीं है. सॉलिसिटर जनरल देश का दूसरा सबसे बड़ा लॉ अफसर होता है. वो अटॉर्नी जनरल के नीचे काम करता है.
याचिकाकर्ता ने मेहता को दी गई अपील में कहा, "हम सम्मान के साथ अटॉर्नी जनरल की बताई हुई वजहों से असहमति रखते हैं."
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