सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले में बड़ा फैसला सुनाया है. मस्जिद के अंदर नमाज पढ़ने के मामले में कोर्ट ने कहा है कि नमाज पढ़ना तो इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है लेकिन नमाज मस्जिद में पढ़ी जाए ये धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है. ऐसे में कोर्ट ने साल 1994 के एक फैसले को पुनर्विचार के लिए संवैधानिक पीठ के पास भेजने से इनकार कर दिया. उस फैसले में यही बात थी कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है.
अब जानते हैं कि इस अहम फैसले के बाद केस में आगे क्या होगा, क्या बदल जाएगा.
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- सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के मुख्य केस की सुनवाई का रास्ता साफ हो गया है. जो साल 2011 के बाद से रुकी हुई है.
- ताजा फैसले को साल 1994 के पांच जजों के पीठ के फैसले से समझिए, उस फैसले में कोर्ट ने कहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है. इसके बाद साल 2010 में आया इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला.
- राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के मुख्य मामले में 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांटने का आदेश दिया.
- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित जमीन को रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया था.
- इस आदेश को सभी पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
- सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को 'अजीब और आश्चर्यजनक' करार देते हुए 9 मई, 2011 को उस पर रोक लगा दी थी.
- राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के मुख्य केस की सुनवाई नई गठित 3 जजों की पीठ 29 अक्टूबर से करेगी.
- ताजा जो फैसला आया है उसमें 3 जजों में से जस्टिस अशोक भूषण और चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने इस मामले को संविधान पीठ में भेजने से इनकार कर दिया है.
- हालांकि, तीसरे जस्टिस नजीर ने मामले को बड़ी संवैधानिक पीठ के पास भेजे जाने की पैरवी की.
- राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने इस फैसले का स्वागत किया है साथ ही मामले के जल्द से जल्द सुलझ जाने का भरोसा जताया है.
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