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सीएए प्रदर्शन से लेकर किसान आंदोलन तक क्यों नजर आते हैं अंबेडकर  

जब भी हक मारे जाएंगे बाबा साहेब अंबेडकर याद आएंगे

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भारत
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सीएए प्रदर्शन (CAA Protest) के दौरान एक तस्वीर जो स्टैंडआउट हुई थी वो ये थी...

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जब भी हक मारे जाएंगे बाबा साहेब अंबेडकर याद आएंगे
CAA के खिलाफ प्रदर्शन
(फोटो: क्विंट हिंदी)
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अब जब किसान आंदोलन (Farmers Protest) हो रहा है तो एक बार फिर बाबा साहेब (B. R. Ambedkar) की तस्वीर दिख रही है.

जब भी हक मारे जाएंगे बाबा साहेब अंबेडकर याद आएंगे
कृषि कानून के खिलाफ किसानों का प्रदर्शन
(फोटो: क्विंट हिंदी)

तो क्या बात है कि चाहे वो सीएए प्रदर्शन हो या फिर किसान आंदोलन, बाबा साहेब अंबेडकर आ ही जाते हैं.

दरअसल जब भी किसी का हक मारा जाता है. संविधान ने नागरिकों को जो हक दिए हैं, जब भी उनपर हमला होता है तो बाबा साहेब हक की लड़ाई के प्रतीक के तौर पर लोगों को याद आ ही जाते हैं. लगता यूं है कि 1956 में 6 दिसंबर को भले ही बाबा साहेब का महापरिनिर्वाण हुआ लेकिन वो हमारी जिंदगियों में, हमारी सियासत में, हमारे समाज में लगातार मौजूद हैं, बल्कि ज्यादा मौजूं हैं.

ज्यादा मौजूं इसलिए हैं क्योंकि बराबरी और भाईचारे का जो पाठ बाबा साहेब ने इस देश को पढ़ाया था, शायद आज उसपर सबसे ज्यादा हमले हो रहे हैं. चाहे धर्म के नाम पर नागरिकता देने में भेदभाव का मामला हो या फिर कथित लव जिहाद के नाम पर असंवैधानिक कानून लाने की बात. चाहे बहुमत के जोर पर कृषि बिल थोपना हो या विरोध को देशद्रोह करार देने की जिद.

बाबा साहेब ने शोषित, पीड़ित, दमित के लिए जिस तरह की लड़ाई लड़ी, वो पूरे इतिहास में अनूठा है. जुल्म और नाइंसाफी के खिलाफ जंग के प्रतीक हैं बाबा साहेब. जाहिर है जब आज बहुलतावाद, भारतीय परंपराओं पर हमले बढ़े हैं तो बाबा साहेब लोगों को बहुत याद आते हैं, उन्हें प्रेरणा देते हैं.
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बाबा साहेब से बहुत डर लगता है

आंदोलन चाहे जो हो, अगर उसमें बाबा साहेब का नाम जुड़ जाए तो सत्ताधीशों को बहुत डर लगता है. मुसलमानों के साथ दलित मिल जाएं. खेल खत्म. किसान आंदोलन के साथ दलित मिल जाएं. खेल खत्म. महिलाओं के साथ दलित मिल जाएं. खेल खत्म. तो जब भी बाबा साहेब का कोई पोस्टर दिख जाए, जब भी बाबा साहेब का नाम किसी आंदोलन से जुड़ जाए सत्ताधीशों को बहुत डर लगता है. कोई ताज्जुब नहीं कि जिन ताकतों से बाबा साहेब ने पूरी जिंदगी लड़ाई लड़ी, आज उन्हें ब्रांड बाबा साहेब को अपनाने की जरूरत महसूस होती है.

हालांकि ये सिर्फ ब्रांड को हथियाने की कोशिश है, उनकी सोच, उनके बताए मार्ग पर चलने की कोई मंशा नहीं दिखती. सत्ता में बैठे जो लोग आज कह रहे हैं कि बाबा साहेब के सपनों को साकार करने के लिए संकल्पबद्ध हैं, वो लोग ही बाबा साहेब की विरासत को सबसे ज्यादा चोट पहुंचा रहे हैं. बाबा के मार्ग पर चलने वालों को ऐसे ढोंगियों से सचेत रहना चाहिए. ऐसे लोगों को अगर बाबा साहेब की जरूरत पड़ रही है तो इसका पूरा इंतजाम भी खुद बाबा साहेब ने अपने हाथों से किया था.

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