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बालाकोट स्ट्राइक में सटीक निशाना नहीं लग सका: यूरोपीय स्पेस एजेंसी

स्ट्राइक के अगले दिन यूरोपीय एजेंसी की स्पेस से खींची गई तस्वीर बताती हैं कि जैश के ठिकानों को कोई नुकसान नहीं हुआ.

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बालाकोट स्ट्राइक के अगले दिन यूरोपीय एजेंसी की अंतरिक्ष से खींची गई तस्वीर बताती हैं कि जैश के ठिकानों को कोई नुकसान नहीं हुआ. ‘प्रेसिजन स्ट्राइक’ यानी ‘लक्ष्य पर सटीक निशाना’ सबसे पहले साल 1991 के खाड़ी युद्ध में सामने आया. जंग में अमेरिका की जीत का सेहरा ‘प्रेसिजन स्ट्राइक’ के सिर बंधा था. उसके बाद भारत समेत कई देशों ने प्रेसिजन स्ट्राइक में महारत हासिल करने का दावा किया. लेकिन 26 फरवरी को पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के ठिकाने पर एयर स्ट्राइक ने बता दिया कि प्रेसिजन स्ट्राइक कला और विज्ञान का गहरा समन्वय है. और इसकी विशेषज्ञता अभ्यास और अत्याधुनिक उपकरणों के संयोजन से ही मिल सकती है.

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पहले दावों की बात करते हैं....

यूरोपीयन एजेंसियों के मुताबिक, भारतीय मीडिया ने अनाम ‘वरिष्ठ सैन्य अधिकारी’ के हवाले से बताया था, कि भारतीय वायुसेना ने बालाकोट में आतंकी ठिकानों की चार इमारतों को निशाना बनाने के लिए इजराइल के स्पाइस 2000 हथियार का इस्तेमाल किया. स्पाइस 2000, अमेरिकी JDAM, यानी joint direct attack munition के आधार पर बनाया गया है. इससे 400 किलोग्राम विस्फोटकों से लैस 2000 पाउंड के बम को 60 किलोमीटर की दूरी तक सटीक निशाना लगाया जा सकता है.

दावा किया गया कि स्पाइस 2000 से हमले में कम मात्रा में विस्फोटकों का इस्तेमाल हुआ. फिर भी, इतने विस्फोटक किसी इमारत के कई फ्लोर और यहां तक कि अंडरग्राउंड फ्लोर में बेधने और फिर विस्फोट कर अंदर मौजूद सभी लोगों की जान लेने में सक्षम थे.

लेकिन यूरोपियन स्पेस इमेजिंग की तस्वीरें दावों पर सवाल उठाती हैं. ये तस्वीरें एयर स्ट्राइक के अगले दिन ली गई थीं. तस्वीरों के मुताबिक आतंकी ठिकाने की इमारतों को किसी प्रकार का नुकसान हुआ नहीं दिखा. हाई रिजॉल्यूशन तस्वीरें इमारत की छत पर टूट-फूट तो दिखलाती हैं, लेकिन ये टूट-फूट निश्चित रूप से स्पाइस 2000 का किसी अन्य हथियार के कारण नहीं हुए.

हमले से नुकसान का आकलन तीन साधनों से लगाया गया है:

  • हमले के बाद स्थानीय पत्रकारों के तस्वीरों की उपग्रह से ली गई तस्वीरों से तुलना की गई.
  • उपग्रह से ली गई इन्फ्रा रेड तस्वीरें, जिसमें निशाना लगाए गए तीन स्थानों के चारों ओर करीब 30 मीटर के डायमिटर में पेड़-पौधे गायब हो गईं.
  • और अंत में यूरोपीय स्पेस इमेजिंग के हाई रिजॉल्यूशन कैमरे से एयर स्ट्राइक के अगले दिन ली गई तस्वीरें, जिसमें कुछ गड्ढे दिखे.
तो क्या निशाना साधने में चूक हो गई? तस्वीरों के मुताबिक सभी तीन हथियार समान दूरी से चूके और ये चूक एक ही दिशा में हुई.
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स्पाइस 2000 के इस्तेमाल में गोलाकार क्षेत्र में तीन मीटर का व्यवधान संभव है. इसका निशाना जीपीएस या इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल गाइडेंस से संचालित होता है. सटीक नतीजे के लिए निशाने की आकृति और निशाने के शिल्प की जानकारी भी जरूरी है. और ये सारी तैयारियां निशाना लगाने से पहले करनी पड़ती हैं. मुमकिन है कि भारतीय वायुसेना ने निशाना साधने के लिए जीपीएस जैसी सुविधाओं को नजरंदाज किया हो.

जीपीएस संचालित हथियारों के इस्तेमाल के लिए तीन प्वाइंट्स पर ध्यान दिया जाता है. ऊंचाई, अक्षांश और देशान्तर. स्पाइस 2000 या जीपीएस संचालित कोई भी हथियार सीधी रेखा में निशाने से नहीं टकराता, बल्कि बास्केट बॉल के गोल पोस्ट की तरह पाराबोला की दिशा का अनुसरण कर निशाने को बेधता है. लिहाजा तीनों में से किसी भी प्वाइंट पर थोड़ी सी भी चूक हथियार को निशाने से दूर ले जाती है.

निशाना चूकने की व्याख्या इस रूप में भी की गई कि जीपीएस के आधार पर निशाने की उचित प्रोग्रामिंग नहीं की गई. हो सकता है कि लक्ष्य की सटीक ऊंचाई के अनुरूप प्रोग्रामिंग न हो. लिहाजा बम की दिशा लगातार बदलती गई और वो लक्ष्य से दूर होते गए.

तस्वीरों से चूक के इस तर्क को मजबूती मिलती है. जिन इमारतों को निशाना बनाना था, बम उनसे दूरी पर गिरे.

साफ है कि बहुमूल्य और घातक हथियार इकट्ठा करना ही काफी नहीं. प्रेसिजन स्ट्राइक के लिए उनका इस्तेमाल एक कुशलता है, जिसे विकसित करने के लिए अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश वर्षों अनुसंधान करते हैं. फिर भी प्रेसिजन स्ट्राइक का दावा नहीं कर सकते.

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