बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने वकालत करने वाले सासंदों, विधायकों को नोटिस जारी कर पूछा है कि क्यों न उन्हें प्रैक्टिस करने से रोक दिया जाए. बार काउंसिल की तरफ से इस मामले में 21 जनवरी को अंतिम फैसला लिया जाएगा.
एक हफ्ते में देना होगा जवाब
वकालत करने वाले सभी जनप्रतिनिधियों को इस मामले में एक हफ्ते के भीतर जवाब देने को कहा गया है. बार काउंसिल ऑफ इंडिया के प्रमुख मनन कुमार मिश्रा ने कहा, नियमों के मुताबिक, सरकारी कर्मचारी अदालत में प्रैक्टिस नहीं कर सकते हैं. उन्होंने कहा, बीसीआई के सामने दायर याचिका के आधार पर जनप्रतिनिधियों को नोटिस जारी किया गया है.
‘सरकार से सैलरी, फिर वकालत की अनुमति क्यूं’
सीनियर वकील और बार काउंसिल ऑफ इंडिया के प्रतिनिधि अश्विनी उपाध्याय ने बार काउंसिल के अध्यक्ष को लिखित रूप में विधायकों और सांसदों को बतौर वकील बहस करने से रोकने का अनुरोध किया था. उनका तर्क था कि जब ये जनप्रतिनिधि सरकार से सैलरी ले रहे हैं तो, तो फिर उन्हें प्रैक्टिस करने की अनुमति क्यूं दी जा रही है.
याचिका में कहा गया कि कार्यपालिका और न्यायपालिका के सदस्यों को अधिवक्ता के रूप में वकालत करने की अनुमति नहीं है. लेकिन निर्वाचित जनप्रतिनिधियों, जो कि लोक सेवक भी हैं, को अनुमति है. दावा किया गया है कि यह संविधान की भावना के विपरीत है.
याचिका में आरोप लगाया गया कि ये विधिनिर्माता उस समय भी अधिवक्ता के तौर पर पेश होते हैं जब संसद या विधानसभाओं का सत्र चल रहा होता है. वे देश के वित्तीय हितों और उनके जीवनसाथी, बच्चों, रिश्तेदारों, सहयोगियों, संगठनों के वित्तीय हितों को प्रभावित करने वाले मामलों में भाग लेते हैं.
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