बीबीसी इस बात से हैरान है कि प्रेस की आजादी से जुड़े इतने बड़े कोबरापोस्ट स्टिंग ऑपरेशन ने भारतीय मीडिया में हलचल क्यों नहीं मचाई? भारतीय मीडिया ने इसे करीब करीब गायब क्यों कर दिया?
बीबीसी (ब्रिटिश ब्रॉडकॉस्टिंग कॉरपोरेशन) को लगता है कि शायद इसकी बड़ी वजह यही है कि इस स्टिंग के घेरे में भारत के ज्यादातर बड़े और ताकतवर मीडिया संस्थान आ गए.
शुक्रवार को वेबसाइट कोबरापोस्ट के स्टिंग ऑपरेशन में दावा किया गया था कि देश के नामी गिरामी और बड़े मीडिया हाउस पैसे के बदले एक राजनीतिक पार्टी को फायदा पहुंचाने के लिए हिंदुत्ववादी एजेंडा चलाने को तैयार हैं.
बीसीबी के लिए लिखी रिपोर्ट में पत्रकार जस्टिन रॉलेट ने भारत में मीडिया के मौजूदा हालात पर कई गंभीर सवाल उठाए हैं. उनका मानना है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में मीडिया विश्वसनीयता पर संदेह उठना बेहद गंभीर है.
रॉलेट कहते हैं , ‘आम तौर पर इस तरह के अंडरकवर स्टिंग पर सवाल उठाए जाते हैं, क्योंकि इसके वीडियो फुटेज आसानी से एडिट किए जा सकते हैं. साथ ही ऑडियो में बातचीत के संदर्भ के साथ छेड़छाड़ मुमकिन है. लेकिन इन सबके बावजूद इतने बड़े पैमाने पर किए गए स्टिंग में बड़े नामों के घिरने के बावजूद मीडिया में इसका मुद्दा न बनना अचरज पैदा करता है.
स्कैंडल पर मीडिया में इतनी चुप्पी ठीक नहीं
बीबीसी के मुताबिक कोबरा पोस्ट के स्टिंग ऑपरेशन की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने में कोई बुराई नहीं, लेकिन इसमें भी कोई शक नहीं कि सालभर बाद लोकसभा चुनाव को देखते हुए भारत में मीडिया की आजादी पर ऐसे संदेह और सवाल उठना बैचेनी बढ़ाता है.
भारत के लिए वैसे भी ये शर्म की बात है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र मीडिया की आजादी के मामले में 138 वें नंबर पर है.
ज्यादातर लोकतांत्रिक देशों में इस तरह की खबरें सुर्खियां बनती और अखबारों में बड़े बड़े अक्षरों से छपती. अखबारी भाषा में कहा जाए तो बैनर बनती. यही नहीं इस तरह के आरोपों पर वहां की जनता भी इसे लेकर खासा गुस्सा जाहिर करती है. लेकिन भारत में मीडिया ने इतनी बड़ी खबर की करीब करीब अनदेखी कर दी. सिर्फ गिनी-चुनी वेबसाइट में ही इसे जगह मिल पाई.
अगर कोबरापोस्ट की ओर से लगाए गए आरोप साबित हो जाते हैं, तो भारत प्रेस फ्रीडम रैंकिंग में और भी नीचे चला जाएगा. वैसे भी साल 2017 में भारत प्रेस फ्रीडम की रैंकिंग में 136वें स्थान से 2018 में 138वें स्थान पर पहुंच गया है.
कोबरा पोस्ट ने ‘ऑपरेशन 136’ नाम से एक स्टिंग ऑपरेशन किया, जिसमें भारत के दिग्गज मीडिया संस्थानों की निष्पक्षता की पड़ताल की गई. इसे‘ऑपरेशन 136’ का नाम इसलिए दिया गया क्योंकि साल 2017 में वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम रैंकिंग में भारत इसी पायदान पर था.
कोबरा पोस्ट वेबसाइट के स्टिंग ऑपरेशन में दावा किया गया है कि देश के कुछ प्रमुख न्यूज ऑर्गेनाइजेशन मोटी रकम के बदले में "न केवल देश के नागरिकों के बीच सांप्रदायिक भेदभाव पैदा कर सकते हैं, बल्कि किसी विशेष पार्टी के पक्ष में चुनावी परिणाम भी झुका सकते हैं."
कोबरा पोस्ट के स्टिंग में क्या था?
कोबरा पोस्ट ने अपने ऑपरेशन 136 की दूसरी किस्त में मीडिया पर बड़े खुलासे का दावा किया. इसमें बड़े मीडिया समूहों पर आरोप है कि उन्होंने राजनीतिक सौदेबाजी की और रकम लेकर हिंदुत्व का एजेंडा चलाने को राजी हो गए, जिससे एक खास पार्टी को चुनावी फायदा पहुंच सके.
स्टिंग ऑपरेशन में टाइम्स ग्रुप, इंडिया टुडे ग्रुप, हिंदुस्तान टाइम्स ग्रुप, जी न्यूज, नेटवर्क 18, एबीपी न्यूज, दैनिक जागरण के अधिकारियों के साथ बातचीत का दावा किया गया.
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