भोपाल गैस त्रासदी की शिकार 68 साल की मुन्नी बी का 11 मार्च को भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर (बीएमएचआरसी) में ट्रैचियोस्टोमी (सांस संबंधी ऑपरेशन सह कृत्रिम यंत्र प्रत्यारोपण) हुआ था. उसके बाद वह अपने जैसे मरीजों के लिए अस्पताल में बनाए गये आईसीयू में जीवन के लिए संघर्ष करती रहीं.
बहरहाल, शांति से स्वास्थ्य लाभ लेने की अनुमति देने के बजाय अस्पताल ने उन्हें सूचित किया कि वह और भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ित दूसरे मरीज अस्पताल छोड़ दें और इलाज के लिए कहीं और चले जाएं. क्योंकि, बीएमएचआरसी को मध्यप्रदेश सरकार ने कोविड-19 मरीजों के लिए अपने हाथों में ले लिया है.
मुन्नी बी की ओर से लोगों ने राज्य सरकार के इस फैसले को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. मगर, 7 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट जाने को कहा.
8 अप्रैल को जब हाईकोर्ट वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई के लिए आवश्यक प्रोटोकॉल तैयार कर रहा था, मुन्नी बी चल बसीं. मुन्नी बी की वकील सुप्रीम कोर्ट में वकील करुणा नन्दी ने इस बात की पुष्टि की है.
मुन्नी बी की अदालत में दी गयी याचिका में सिर्फ यह नहीं बताया गया था कि उन्हें जबरदस्ती अस्पताल से बाहर निकाल दिया गया. लेकिन, 1984 की त्रासदी के 86 अन्य वैसे ही मरीज जो इलाज के लिए अस्पताल के संपर्क में थे और वहां आया करते थे, वे भी लौट गये.
अब तक भोपाल गैस ट्रैजेडी के शिकार तीन लोगों की मौत हो चुकी है.
बीएचएमआरसी पर सरकार का फैसला
बीएमएचआरसी 350 बेड वाला मल्टी स्पेशियलिटी हॉस्पिटल है. इसे 1998 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गैस त्रासदी में बचे लोगों के मुफ्त इलाज के लिए बनाया गया था.
राज्य सरकार ने 22 मार्च को यह कहते हुए एक आदेश जारी किया कि बीएमएचआरसी को आइसोलेशन सेंटर के रूप मे बदला जाएगा और यहां कोविड-19 का इलाज होगा. और, अगले दिन अस्पताल का प्रबंधन और प्रशासन अपने हाथ में ले लिया, जो अब डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के जिम्मे है.
24 मार्च को बीएमएचआरसी के डायरेक्टर ने एक आदेश जारी किया कि अस्पताल में ‘सभी स्वास्थ्य सेवाएं’ केवल कोविड-19 के मरीजों को ही उपलब्ध करायी जाएंगी, किसी अन्य को नहीं.
तब भी आज तक किसी भी कोविड-19 के मरीज को यहां शिफ्ट नहीं किया गया है और सुरक्षित रखी गयीं सुविधाएं बेकार पड़ी हैं.
इन आदेशों के आधार पर अस्पताल प्रशासन ने न सिर्फ ओपीडी विभाग बंद कर दिए, बल्कि जबरदस्ती उन 86 मरीजों को (जिनमें डायलिसिस मरीज भी शामिल थे) 23-24 मार्च के बीच अस्पताल से छुट्टी भी दे दी जिनका इलाज यहां चल रहा था.
प्रशासन ने आईसीयू में वेंटीलेटर पर पड़े गैस त्रासदी के शिकार मरीजों (जैसे मुन्नी बी) और गम्भीर रूप से बीमार मरीजों को दूसरे अस्पताल ले जाने को कहा और आगाह किया कि अन्यथा उन्हें अधूरे इलाज की स्थिति का सामना करना पड़ेगा.
मुन्नी बी की याचिका का शुक्रगुजार होना चाहिए कि इस वजह से दो अन्य मरीज आईसीयू में वेंटीलेटर पर हैं जबकि एक अन्य कार्डियाक केयर यूनिट में.
वो तीन पीड़ित जिन्हें अस्पताल में इलाज नहीं मिला
भोपाल गैस त्रासदी के तीन शिकार जिनकी मौत अस्पताल से छुट्टी कर दिए जाने के बाद हुई और जिनका इलाज बीएमएचआरसी में करने से मना कर दिया गया, वे हैं :
- भोपाल के शाहजहांबाद निवासी 55 वर्षीय कालू राम को 24 मार्च के दिन बीएमएचआरसी के पलमॉनरी डिपार्टमेंट से छुट्टी दी गयी थी और उन्हें हमीदिया हॉस्पीटल में ट्रांसफर कर दिया गया. 28 मार्च को उनकी मौत हो गयी. गैस त्रासदी के बाद से वे फेफड़े के संक्रमण से पीड़ित थे.
- टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार बीएमएचआरसी से निकाले जाने के बाद 2 अप्रैल को 70 वर्षीय बुजुर्ग महिला की मौत हो गयी. गैसियोएन्ट्रोलॉजी का वह उपचार करा रही थी. समय से पहले उसे छुट्टी दिए जाते समय मरीज के परिजनों को ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल के बारे में पूरी तरह नहीं समझाया गया. वह अपने घर में बीते गुरुवार को चल बसीं. परिवार ने (जो अपना नाम जाहिर नहीं करना चाहते) इसकी पुष्टि की.
- 55 वर्षीय नरेश खटीक जो अक्सर फेफड़े की समस्या लेकर अस्पताल आया करते थे, उन्हें इलाज के लिए पहुंचने के बाद लौटना पड़ा. उनका परिवार यहां नियमित इलाज के बारे में निश्चिंत था. किस्मत की क्रूर लीला देखिए. खटीक बाद में नोवेल कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गये. इसी वजह से उनके श्वसन तंत्र को नुकसान पहुंचा और कोविड-19 से मरने वाले वे भोपाल के पहले मरीज बन गए.
मुन्नी बी ने अदालत का रुख किया
अपनी किस्मत दूसरों के हवाले करने के बजाए मुन्नी बी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया ताकि मध्य प्रदेश सरकार के उसे फैसले को चुनौती दी जा सके जिसमें भोपाल गैस त्रासदी में जीवित बचे लोगों का इलाज रोकने का फैसला किया गया था.
सुप्रीम कोर्ट में साझा रिट याचिका में मुन्नी बी और भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन (बीजीआईए) ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत सरकार के आदेश और अस्पताल को चुनौती दी. उन्होंने सर्वोच्च अदालत से आग्रह किया कि वे उस फैसले को रद्द कर दे जिसमें अस्पताल को कोविड-19 के मरीजों के लिए आइसोलेशन सेंटर में बदला गया.
जब इस मामले को मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे को 7 अप्रैल के सामने सूचीबद्ध किया गया, तो उनके नेतृत्व वाली पीठ ने उन्हें निर्देश दिया कि वे मध्य प्रदेश हाईकोर्ट, जबलपुर में अपनी याचिका डालें. और, तब ऐसा करने के लिए उन्होंने याचिका तुरंत वापस ले ली.
उसी शाम याचिकाकर्ताओँ ने अपनी याचिका हाईकोर्ट में डाली, लेकिन यह आर्टिकिल लिखे जाते वक्त तक उन्हें नहीं सुना जा सका था. क्योंकि, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट कोरोना वायरस लॉकडाउन के कारण वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई के लिए जरूरी प्रोटोकॉलो को अंतिम रूप नहीं दे सका था.
जबकि मुन्नी बी दुखद देहावसान हो गया है, बीजीआईए इस केस को हाईकोर्ट में लड़ेगा. बीजीआईए की रचना धींगड़ा ने क्विंट से इस बात की पुष्टि की.
अदालत में ताजा आपात याचिका दायर की गयी है जो बचे हुए तीन मरीजों की स्थिति पर जोर देता है.
क्या कहती है याचिका?
सुप्रीम कोर्ट और एमपी हाईकोर्ट में दायर याचिकाओं में दी गयी दलीलें आवश्यक रूप से एक जैसी हैं.
पहली बात यह रेखांकित की गयी है कि भोपाल गैस त्रासदी के कारण मिथाइल आइसो सायनेट से पीड़ित मरीजों को किसी अन्य के मुकाबले कोरोना वायरस से संक्रमित होने का खतरा अधिक है. और, केवल बीएमएचआरसी ही उनकी जरूरतों को पूरा करने ख्याल से उपकरणों से सुसज्जित सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल है.
याचिका अदालत को सूचित करती है कि 24 मार्च की आधी रात अस्पताल ने सभी मरीजों को अस्पताल से छुट्टी देना शुरू कर दिया, “अस्पताल के इंटेंसिव केयर के सर्जिकल और मेडिकल वार्डों के उन मरीजों को भी, जिनका इतिहास यूनियन कार्बाईड के जहरीले गैस का शिकार होने का था.”
जैसा कि 24 मार्च को यह भी स्वीकार किया गया है कि ,”बीएमएचआरसी में कैजुअल्टी वार्ड की सभी सेवाएं बंद कर दी गयी हैं”. इसके साथ ही “25 मार्च से सभी डायलिसिस सुविधाएं” भी बंद कर दी गयी हैं. यह भी नोट किया जाना जरूरी है कि भोपाल में मरने वाला पहला कोविड-19 का मरीज भी भोपाल गैस त्रासदी का शिकार व्यक्ति था.
याचिका में कहा गया है, “करीब 30 गैस पीड़ित हैं जिनका हफ्ते में दो बार इस अस्पताल में डायलिसिस होता है जिनकी जिन्दगी समय पर और उचित डायलिसिस के बगैर साल भर खतरे में होती है.”
याचिका में यह मामला भी उठाया गया है कि विशेष रूप से बने एक अस्पताल को कोविड-19 मरीजों के लिए बदल देना उस ट्रस्ट डीड का भी उल्लंघन है जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट के 1992-1998 के बीच दिए गये निर्देशों के अनुसार भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल और रिसर्च सेंटर तैयार किया गया था.
“बीएमएचआरसी हॉस्पिटल की क्षमता 350 बेड की है. इंटेंसिव केयर और अर्जेंट केयर की आवश्यकता वाले भोपाल गैस त्रासदी के शिकार मरीजों के लिए बने इस अस्पताल को पूरी तरह से बंद करके कोविड-19 मरीजों के इलाज के लिए आइसोलेशन सेंटर का प्रस्ताव मनमाना और अनुचित है.”एमपी हाईकोर्ट में याचिका
यह तर्क दिया गया है कि हादसे के शिकार इन पीड़ितों के लिए “विशेष स्वास्थ्य जरूरतों को पूरा करने की क्षमता वाले इकलौते अस्पताल से” से इलाज का हक छीनना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वास्थ्य के अधिकार का भी उल्लंघन है. यह स्थिति मौलिक अधिकारों की गारंटी देने वाले हाईकोर्ट से हस्तक्षेप की मांग करती है.
याचिकाकर्ताओं ने यह भी ध्यान दिलाया है कि यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 14 का भी उल्लंघन है क्योंकि 3.5 लाख पंजीकृत भोपाल गैस त्रासदी के शिकार लोग बीएमएचआरसी में विशेष रूप से ध्यान दिए जाने के अधिकारी हैं. इसका मतलब यह है कि इस अधिकार को उनसे छीनना (जैसे इसे किसी अन्य नॉन एक्सक्लूसिव हॉस्पिटल में बदल देना) समानता के अधिकार का भी उल्लंघन है.
सरकार की पूर्ण उदासीनता की ओर ध्यान दिलाते हुए भी याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है :
“यह स्पष्ट है कि राज्य सरकार ने मनमाने तरीके से यह रवैया अपनाया है और विवेक का इस्तेमाल नहीं किया है. सरकार ने गैस पीड़ित मरीजों के लिए इस चिकित्सीय सुविधा को पूरी तरह से बंद करने का एक बेहद आसान तरीका चुना है और किसी अन्य विकल्प पर विचार नहीं किया गया.”
बीएमएचआरसी को कोविड-19 मरीजों के लिए सुरक्षित रखने को रद्द करने के आग्रह के साथ-साथ मुन्नी बी और बीजीआईए ने आग्रह किया है कि औद्योगिक आपदा के शिकार लोगों के लिए खास तौर से बने इस अस्पताल के बजाए कई अस्पताल हैं जिनका इस्तेमाल कोविड-19 के मरीजों के लिए हो सकता है जैसे जहांगीराबाद और आसपास के इलाकों में स्थिति पुलमोनरी मेडिसिन सेंटर, गैस रिलीफ हॉस्पिटल.
आखिर में भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के फेफड़े और दूसरे अंग खराब हो जाने की वजह से उनमें जल्द बीमार हो जाने की बढ़ी हुई आशंका को देखते हुए अदालत से आग्रह किया गया है कि वह मध्यप्रदेश सरकार को यह निर्देश दे कि वह दूसरे अस्पतालों में भी इन पीड़ितों के लिए क्लीनिकल प्रोटोकॉल बनाए और उसे अपडेट करे.
“गैस त्रासदी पीड़ितों को कोविड-19 का खतरा ज्यादा”
गैस त्रासदी के पीड़ितों के साथ काम कर रहे कार्यकर्ताओं ने कहा है कि उन्होंने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री से लेकर मध्यप्रदेश के प्रिंसिपल सेक्रेटरी ऑफ हेल्थ तक हर संबद्ध विभागों को इस बाबत लिखा है. उन्हें आगाह किया है कि इन पीड़ितों में कोविड-19 के संक्रमण के आसार ज्यादा हैं क्योंकि इनकी प्रतिरोधक क्षमता पहले से कम है और बीएमएचआरसी ही इनके लिए शरणस्थली है.
उनका दावा तब सही जान पड़ा जब कोविड-19 महामारी से 55 साल के नरेश खटीक की मौत हो गयी.
भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन (बीजीआईए) की सह संयोजक रचना धींगरा ने बताया, “यह रहस्यमय है. भोपाल में हमारे पास 70 कोविड-19 मरीज हैं और किसी को भी अब तक बीएमएचआरसी में भर्ती नहीं कराया गया है. अस्पताल की पहली मंजिल पर अलग से प्रवेश और निकासी मार्ग देते हुए उनके लिए आसानी से आइसोलेशन वार्ड बनाया जा सकता था. निश्चित रूप से गैस पीड़ितों का इलाज रोकने और अस्पताल को अपने हाथ में लेने की कोई वजह नहीं दिखती.”
जब भोपाल जिला प्रशासन के प्रवक्ता अरुण राठौर से इस बाबत संपर्क किया गया तो उन्होंने बताया कि कोविड-19 को देखते हुए केंद्र सरकार की ओर से जो दिशा निर्देश जारी किए गये हैं, उनका पालन किया जा रहा है. उन्होंने कहा, “भोपाल के लोगों के हित में जो सबसे अच्छा है वही किया गया है. जहां तक मरीजों की बात है तो मेडिकल खर्च के रीइम्बर्समेंट या उनके परिवारों को राहत के संबंध में सरकार की ओर से जो कुछ भी निर्देश प्राप्त होता है उसका हम पालन करेंगे.”
कई प्रयासों के बावजूद बीएमएचआरसी के डायरेक्टर प्रभाज देसिकन से संपर्क नहीं किया जा सका. जबकि बीएमएचआरसी के पब्लिक रिलेशन ऑफिसर मजहर उल्लाह ने यह कहते हुए कोई भी टिप्पणी करने से इनकार दिया, “इस विषय पर डायरेक्टर ही कुछ बोल सकते हैं.”
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