बिहार (Bihar) में तीन सालों से शेड्यूल्ड कास्ट और शेड्यूल्ड ट्राइब छात्रों को मिलने वाली पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप (post matric scholarship) बंद है. मीडिया में मामला आने के बाद अब सीएम नीतीश कुमार ने हस्तक्षेप किया है.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य के शिक्षा विभाग को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति योजना के तहत पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप जल्द से जल्द फिर से शुरू करने का निर्देश दिया है.
बता दें कि सरकार का कहना है कि पिछले तीन सालों से केंद्र की प्रमुख कल्याण योजना के लिए कोई आवेदन नहीं मिला है. साथ ही अधिकारी एप्लीकेशन न मिलने के लिए 'नेशनल स्कॉलरशिप पोर्टल में तकनीकी दिक्कत' को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.
दूसरे राज्यों में सफलतापूर्वक लागू की गई यह योजना केंद्र-राज्य निधि हिस्सेदारी के 75:25 प्रतिशत पर काम करती है. बिहार सरकार पर कई छात्रों ने आरोप लगाया है कि क्लास 12 से पोस्टग्रैजुएट लेवल की पढ़ाई, टेकनिकल और प्रोफेशनल कोर्स के लिए फीस पर 2,000 रुपये से 90,000 रुपये की सीमा लगाकर योजना का पूरा लाभ उठाने की से रोका जा रहा है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, बिहार सरकार के SC/ST कल्याण विभाग ने 2016 में सरकारी और निजी कॉलेजों में फीस का अंतर बताते हुए फीस की ऊपरी सीमा तय कर दी थी. ये सालाना 2000 रुपये से 90,000 रुपये तक थी. छात्रों ने फीस तय किए जाने का विरोध करते हुए दावा किया कि इससे परिवारों पर वित्तीय बोझ पड़ेगा और उन्हें उच्च शिक्षा या प्रोफेशनल कोर्स रोकना पड़ेगा.
बता दें कि इस स्कीम के तहत शिक्षा, प्रोफेशनल या तकनीकी कोर्स, मेडिकल, इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट और पोस्ट-ग्रेजुएट कोर्सेस के लिए स्कॉलरशिप मिल सकती है.
पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप ऐसे SC/ST छात्रों के लिए है, जिनकी सालाना पारिवारिक आय 2.5 लाख तक है. इस स्कॉलरशिप से देशभर में 60 लाख छात्रों को लाभ मिलता.
बिहार के अतिरिक्त मुख्य सचिव (शिक्षा) संजय कुमार ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया:
“हमने राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र, दिल्ली को लिखा था कि राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल 2.0 काम नहीं कर रहा है. कई राज्यों की तरह जिनका अपना पोर्टल है, हमने अपने पोर्टल के लिए अनुरोध किया है. हम जल्द ही पोर्टल विकसित करने और 2019-20 और 2020-21 के लिए छात्रवृत्ति योजना के लिए एक साथ आवेदन आमंत्रित करना शुरू करने की उम्मीद करते हैं.”
उन्होंने कहा कि यह योजना 2017-18 तक अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति विभाग द्वारा चलाई गई थी और बाद में इसे शिक्षा विभाग में स्थानांतरित कर दिया गया था.
बिहार में अनुसूचित जाति समुदायों के लोग जनसंख्या का 16% और अनुसूचित जनजाति के लोग 1% हैं, देखा जाए तो अनुमानित 5 लाख छात्र हर साल इस छात्रवृत्ति के लिए योग्य हैं. लेकिन बिहार में ज्यादातर एससी/एसटी छात्रों को छह साल से इससे वंचित रखा गया है.
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