बिहार (Bihar) की शिक्षा व्यवस्था पर लगातार सवाल उठते रहे हैं. अब एक ऐसा मामला सामने आया है जो स्थिति की गंभीरता का स्तर दिखाता है. बिहार में पोस्ट-मेट्रिक स्कॉलरशिप (post matric scholarship) के लिए तीन सालों में एक भी एप्लीकेशन नहीं आई है. ये केंद्र की शेड्यूल्ड कास्ट और शेड्यूल्ड ट्राइब छात्रों के लिए प्रायोजित स्कीम है.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, अधिकारी एप्लीकेशन न मिलने के लिए 'नेशनल स्कॉलरशिप पोर्टल में तकनीकी दिक्कत' को जिम्मेदार ठहराते हैं. हालांकि, तीन सालों में इस दिक्कत को क्यों नहीं सुधारा गया, इसका जवाब अधिकारियों के पास नहीं है.
खबर का कहना है कि बिहार के पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश ने SC/ST छात्रों को स्कीम के तहत लाभ देने में अच्छा काम किया है.
स्कॉलरशिप के लिए 5 लाख छात्र योग्य
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, बिहार सरकार के SC/ST कल्याण विभाग ने 2016 में सरकारी और निजी कॉलेजों में फीस का अंतर बताते हुए फीस की ऊपरी सीमा तय कर दी थी. ये सालाना 2000 रुपये से 90,000 रुपये तक थी.
छात्रों ने फीस तय किए जाने का विरोध करते हुए दावा किया कि इससे परिवारों पर वित्तीय बोझ पड़ेगा और उन्हें उच्च शिक्षा या प्रोफेशनल कोर्स रोकना पड़ेगा.
पोस्ट-मेट्रिक स्कॉलरशिप ऐसे SC/ST छात्रों के लिए उपलब्ध है, जिनकी सालाना पारिवारिक आय 2.5 लाख तक है. इस स्कॉलरशिप से देशभर में 60 लाख छात्रों को लाभ मिलता.
बिहार में कुल आबादी के 16 फीसदी SC हैं, जबकि ST सिर्फ 1 फीसदी. राज्य में हर साल इस स्कॉलरशिप के लिए 5 लाख छात्र योग्य हैं. लेकिन छात्रों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है.
कैसे काम करती है स्कीम?
पोस्ट-मेट्रिक स्कॉलरशिप स्कीम 75:25 केंद्र-राज्य फॉर्मूले पर काम करती है. शिक्षा, प्रोफेशनल या तकनीकी कोर्स, मेडिकल, इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट और पोस्ट-ग्रेजुएट कोर्सेस के लिए स्कॉलरशिप मिल सकती है.
स्कीम के तहत राज्य अपनी सालाना प्रतिबद्ध दायित्व 115 करोड़ के ऊपर का कोई भी अमाउंट केंद्र से ले सकता है. बिहार में 2016 में फीस की ऊपरी सीमा तय हो जाने के बाद से योग्य छात्रों की संख्या गिरी है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, 2015-16 में बिहार सरकार ने 155,000 छात्रों को स्कॉलरशिप दी थी. लेकिन 2016-17 में योग्य छात्रों की तादाद सिर्फ 37,372 रही थी. 2017-18 में 70,886 और 2018-19 में 39,792 छात्रों को स्कीम का लाभ मिला.
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