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बिलकिस 2002 के बाद नहीं गईं रंधिकपुर, यहां आज भी असामान्य हालात|ग्राउंड रिपोर्ट

बिलकिस बानो के गांव में हिंदू और मुसलमान परिवारों से बातचीत

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भारत
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45 साल के याकूब रसूल बताते हैं, "हम उस गांव में 18 साल से नहीं गए हैं. कभी मन नहीं किया और न ही हिम्मत हुई. मुझे नहीं लगता कि बिलकिस (Bilkis) वापस जाना चाहेंगीं, भले ही सजायाफ्ता मुजरिम जेल मे ही क्यों ना हों. हमारे जेहन में उस गांव की भयानक यादें हैं."

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याकूब रसूल बिलकिस के पति हैं और वो रंधिकपुर के बारे में द क्विंट से बताते हैं कि रंधिकपुर गुजरात के वडोदरा से करीब 128 किलो मीटर दूर है. यहां करीब 3,500 लोगों की आबादी है.

यहीं पर बिलकिस बड़ी हुईं. यहीं पर 2002 में जब वो अपने माता-पिता से मिलने जा रही थीं. 5 महीने का गर्भ था. दंगाईयों ने उसके साथ गैंग रेप किया. यहीं पर 2002 के गुजरात दंगों के दौरान उनकी तीन साल की बेटी सालेहा सहित 14 लोग मारे गए थे. इसी गांव में इसी महीने जब फिर गैंग रेप के दोषी 11 मुजरिमों को गोधरा के एक जेल से रिहा किया गया और वो गांव लौटे तो जमकर पटाखे फोड़े गए.

बिलकिस बानो के गांव में हिंदू और मुसलमान परिवारों से बातचीत

11 दोषियों की रिहाई ने दाहोद के रंधिकपुर गांव के निवासियों के लिए 2002 के गुजरात दंगों की यादें ताजा कर दी हैं

(फोटो: हिमांशी दहिया/द क्विंट)

2002 के गुजरात दंगों के बीस साल बाद, जिसमें 1,044 लोग मारे गए थे, एक बार फिर से सबकी नजरें रंधिकपुर गांव पर हैं- एक ऐसा गांव जो अब पहले जैसा नहीं रहा.

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बिलकिस बानो के गांव में हिंदू और मुसलमान परिवारों से बातचीत

रंधिकपुर में बिलकिस बानो के माता-पिता का घर

(फोटो: हिमांशी दहिया/द क्विंट)

"2002 के बाद हालात बदले"

गांव में दुकान चलाने वाले 37 साल के शेख फारुख कहते हैं कि "ये लोग गांव लौट आए हैं, लेकिन पिछले 18 साल में हमने बिलकिस को यहां कभी आते नहीं देखा", शेख फारुख रंधिकपुर में बिलिकिस के पिता के पड़ोसी हैं.

फारुख तब 17 साल के ही थे जब दंगे की आग में गांव जल उठा. द क्विंट से उन्होंने बताया कि "उसके परिवार के ज्यादातर लोग दंगे में मारे गए और जो बच भी गए वो कभी गांव रंधिकपुर नहीं लौटे". अब बिलकिस के घर में किराएदार रहते हैं और साड़ी की दुकान करते हैं.

बिलकिस बानो के गांव में हिंदू और मुसलमान परिवारों से बातचीत

बिलकिस बानो के घर के पास, कई मुसलमानों का कहना है कि वे रंधिकपुर से बाहर जाना चाहते हैं, खासकर दोषियों की वापसी के बाद

(फोटो: हिमांशी दहिया/द क्विंट)

5.6 वर्ग किमी में फैला रंधिकपुर एक छोटा सा गांव है, जहां एक पुलिस स्टेशन, एक सरकारी प्राथमिक स्कूल, गुजरात सरकार के जनजातीय/समाज कल्याण विभाग का आश्रम है. यह छोटे मोटे कुछ 50 से ज्यादा दुकानें होंगी. चौराहों पर कुछ दवा की दुकानों और कुछ किराने और खाने पीने के फूड ज्वाइंट्स हैं.

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साल 2019 में शेख इकबाल ने गांव के चौक में एक किराने की दुकान खोली- जिसे अब वो अपनी "गलती" बताते हैं. उन्होंने द क्विंट से कहा, "इस गांव में हमारा कोई भविष्य नहीं है. यहां के 3,000 से अधिक निवासियों में से केवल 150-200 मुसलमान हैं. लेकिन यह हमेशा से ऐसा नहीं था. 2002 के दंगों के बाद कई परिवार तुरंत बाहर चले गए, दूसरे बाद में चले गए. कुछ तो अभी भी छोड़ने की जुगत में लगे हुए हैं".

इकबाल और फारूक दोनों का मानना है कि 2002 के दंगों ने गांव में हिंदू और मुसलमानों के बीच कभी ना खत्म होने वाली खाई खड़ी कर दी थी और अब सजायाफ्ता मुजरिमों की वापसी ने पुराने घावों को फिर से खोल दिया है.

बिलकिस बानो के गांव में हिंदू और मुसलमान परिवारों से बातचीत

शेख इकबाल रंधिकपुर में किराने की दुकान चलाते हैं

(फोटो: हिमांशी दहिया/द क्विंट)

15 अगस्त को जब देश स्वतंत्रता दिवस मना रहा था तो गैंगरेप के 11 दोषियों को गांव में उनके परिवारों और दक्षिणपंथी सदस्यों ने माला पहनाकर और मिठाई खिलाकर स्वागत किया. बिलकिस के पति ने अपनी आंखों से ये सब नजारा देखा. द क्विंट से वो बताते हैं कि "नायकों की तरह बलात्कारियों को मान दिया जा रहा है. बिलकिस देख रही है... देश देख रहा कि कैसे बलात्कारियों और हत्यारों का जश्न मनाया जा रहा है.

अपराधी- जिनके परिवारों के पास अभी भी रंधिकपुर में घर या दुकानें हैं- पास के एक गांव सिंगवड़ में रहने के लिए जेल से बाहर आए.

अपने किराने की दुकान पर बैठे फारुख शेख हमें समझाते हैं, "2002 के बाद से गांव में हिंदुओं और मुसलमानों में बहुत कम संपर्क रहा है. हालांकि कोई दंगा या तनावपूर्ण घटना नहीं हुई है, लेकिन दोनों समुदायों के लोग एक-दूसरे से बचके ही रहते हैं. वो आगे कहते हैं कि अब इन वापसी से जो मुसलमान यहां रहते हैं उनके मन में डर और बढ़ गया है.

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मर्दों के आने से हम खुश: मुजरिमों का परिवार

जब से अपराधी जेल से बाहर आए हैं, तब से रंधिकपुर में पत्रकारों की भीड़ उमड़ पड़ी है. 21 अगस्त को जब द क्विंट ने एक अपराधी राधेश्याम शाह के घर के पते के बारे में गांव के एक दुकानदार से संपर्क किया तो हमें एक दो मंजिला इमारत की तरफ इशारा करके घर का पता बताया गया. ऐसा लगा कि उस घर के बारे में बताना उसके लिए रेगुलर काम जैसा था. राधेश्याम का परिवार बिलकिस के माता-पिता के घर के ठीक सामने गली में रहता है.

बिलकिस बानो के गांव में हिंदू और मुसलमान परिवारों से बातचीत

राधेश्याम शाह का परिवार किराने की दुकान चलाता है, जो रंधिकपुर में स्थित है

(फोटो: हिमांशी दहिया/द क्विंट)

राधेश्याम ने ही 14 साल जेल की सजा काटने के बाद छूट के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. जब द क्विंट 21 अगस्त को उनके घर पहुंचा. घर के बाहर दो पुलिसकर्मी तैनात थे. राधेश्याम ने बात करने से या कुछ भी कहने से मना कर दिया. उनके भाई आशीष जो मकान के ग्राउंड फ्लोर पर किराने की दुकान चलाते हैं, ने दावा किया कि उनका भाई "निर्दोष था और इसके बावजूद 14 साल जेल में काटे".

आशीष कहते हैं कि उनके भाई की पत्नी और बेटी इस बात से बहुत खुश हैं कि आखिर वो जेल से बाहर छूटकर आए. कृपया उन्हें अब तंग ना करें..

अधिकांश दोषियों के परिवार ने कुछ भी कहने से मना कर दिया. सजायाफ्ता लेश भट्ट के बेटे जय भट्ट ने द क्विंट को बताया, "मैं क्लास चार में था जब मेरे पिता को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. हमने काफी कुछ झेला है". जय कहते हैं,

"क्या आप जानते हैं कि यह कितना मुश्किल था किसी को इस बात के लिए राजी करना कि वो हमारी बहन और बेटी से शादी करें? दरअसल कोई हमसे शादी या और कोई रिश्ता नहीं रखना चाहता था. हम अपने ही समाज में बहिष्कृत कर दिए गए थे".

राधेश्याम के भाई आशीष की तरह जय ने भी कहा कि उनके पिता शैलेश और चाचा मिथिलेश भट्ट दोनों ही निर्दोष थे. जब ये बताया गया कि दोनों को ही कोर्ट से सजा मिली है और कोर्ट ने मुजरिम करार दिया है तो वो कहते हैं, "हम कोर्ट का सम्मान करते हैं ..वो अब अपनी सजा काट चुके हैं और अब वो रिहा हो गए हैं".

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"रंधिकपुर में सबकुछ सामान्य"

मैप पर एक छोटा बिंदु की तरह दिखने वाला रंधिकपुर साल 2002 में यहां जो कुछ हुआ उसकी छाया से अब तक बाहर नहीं निकल पाया है. बीस साल बाद भी गांव के निवासी इस बारे में बात करने से हिचकिचा रहे हैं कि वे 11 दोषियों को जेल से रिहाई पर सोचते हैं.

बिलकिस बानो के गांव में हिंदू और मुसलमान परिवारों से बातचीत

बिलकिस बानो के पीछे की गली में दोषियों शैलेश भट्ट और मितेश भट्ट का घर

(फोटो: हिमांशी दहिया/द क्विंट)

इलाके में एक दुकान चलाने वाले भग्गूभाई कहते हैं "20 साल पुरानी बात है मैडम. अब क्या बोलें? जो होना था हो गया, अब सब घर वापस आ गए हैं. उन्हें यह बताने पर कि बिलकिस बानो अभी तक गांव नहीं लौटी हैं तो भग्गू ने फौरन जवाब दिया, "कौन रोक रहा है? उसे भी वापस आना चाहिए".

इलाके के एक दर्जी केशवभाई जोशी ने शुरू में यह मानने से इनकार कर दिया कि वह 11 दोषियों में से किसी को भी जानता है. जब उन्होंने भग्गू को बात करते हुए सुना तो वो भी बातचीत में कूद पड़े.

"हमारे गांव में सब नॉर्मल है. ये सब हिंदू-मुस्लिम बातें मीडिया में होती हैं, यहां सब ठीक है. हिंदू-मुस्लिम दुश्मनी सिर्फ मीडिया में होती है. यहां सब कुछ सामान्य है".

इस बीच बिलकिस और उसका परिवार डर के साए में रह रहा है. वो इस बात को किसी को नहीं बताना चाहते हैं कि आखिर वो कहां रह रहे हैं. उनका कोई स्थाई पता नहीं है. इन सभी वर्षों में बच्चों ने कई स्कूल बदले हैं. बिलकिस के पति रसूल पूछते हैं "हर बार एक दोषी पैरोल पर जेल से बाहर होता, हम डर के साए में रहते, अब कल्पना कीजिए कि सभी 11 बाहर हैं. हमारी सुरक्षा कौन सुनिश्चित करेगा?

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