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बीजेपी का ‘शेयर’ सुपरहिट कराने वाले ‘स्टॉक ब्रोकर’ की कहानी  

जन्म 22 अक्टूबर 1964 को मुंबई में एक संपन्न गुजराती परिवार में हुआ.पिता का नाम- अनिल चंद्र शाह और माता का कुसुम बेन

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जन्म 22 अक्टूबर 1964 को मुंबई में एक संपन्न गुजराती परिवार में हुआ. पिता का नाम- अनिल चंद्र शाह और माता का कुसुम बेन था. अनिल पीवीसी पाइप का बिजनेस करते थे. मुंबई में जन्मे अमित शाह सोलह वर्ष की आयु तक अपने पैतृक गांव मान्सा में ही रहे और वहीं पर स्कूली शिक्षा प्राप्त की. स्कूली शिक्षा पूर्ण करने के बाद उनका परिवार अहमदाबाद चला गया. सीयू शाह साइंस कॉलेज से बॉयोकेमिस्ट्री में बीएससी की डिग्री कंप्लीट की. पढ़ाई पूरी करने के बाद अमित पिता के बिजनेस में उनका हाथ बंटाने लगे. इसके साथ ही वे स्टॉक ब्रोकिंग का भी काम करने लगे. इनकी पत्नी का नाम सोनल शाह है, जिनसे इनके बेटे जय शाह का जन्म हुआ.

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इस तरह शुरू हुआ था शाह का राजनीतिक सफर

अमित शाह ने पहली बार 1991 के लोकसभा चुनाव में गांधीनगर में बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का चुनाव प्रबंधन संभाला था. मगर उनके बूथ प्रबंधन का 'करिश्मा' 1995 के उपचुनाव में तब दिखा, जब साबरमती विधानसभा सीट पर तत्कालीन उपमुख्यमंत्री नरहरि अमीन के खिलाफ चुनाव लड़ रहे यतिन ओझा का चुनाव प्रबंधन उन्हें सौंपा गया.

खुद यतिन कहते हैं कि शाह को राजनीति के सिवा और कुछ नहीं दिखता. शाह के करीबी बताते हैं कि वह पारिवारिक और सामाजिक मेल-मिलाप में वह बहुत कम वक्त जाया करते हैं. शाह को कार्यकर्ताओं की अच्छी परख है और वह संगठन और प्रबंधन के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं.

सरखेज से पहली बार बने विधायक

शाह ने पहली बार सरखेज से 1997 के विधानसभा उपचुनाव में किस्मत आजमाई थी और तब से 2012 तक लगातार पांच बार वहां से विधायक चुने गए. सरखेज की जीत ने उन्हें गुजरात में युवा और तेजतर्रार नेता के तौर पर स्थापित किया था.

नरेंद्र मोदी ने शुरू किया नया सफर

नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री बने तो शाह और मजबूती से उभरे. 2003 से 2010 तक गुजरात सरकार की कैबिनेट में उन्होंने गृह मंत्रालय का जिम्मा संभाला. हालांकि, उन्हें इस बीच कई सियासी उतार-चढ़ावों का सामना करना पड़ा, लेकिन जब मोदी को राष्ट्रीय राजनीति में लाया गया तो उनके सबसे करीबी माने जाने वाले शाह को भी पूरे देश में बीजेपी के प्रचार-प्रसार में शामिल किया गया. उत्तर प्रदेश में शाह ने लोकसभा चुनाव 2014 में बीजेपी को 80 में से 71 सीटों पर जीत दिलवा कर अपनी राजनीतिक क्षमता भी साबित की थी.

शाह मतलब सियासत

अमित शाह ने पहली बार 1991 के लोकसभा चुनाव में गांधीनगर में बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का चुनाव प्रबंधन संभाला था. मगर उनके बूथ प्रबंधन का 'करिश्मा' 1995 के उपचुनाव में तब दिखा, जब साबरमती विधानसभा सीट पर तत्कालीन उपमुख्यमंत्री नरहरि अमीन के खिलाफ चुनाव लड़ रहे यतिन ओझा का चुनाव प्रबंधन उन्हें सौंपा गया.

शाह को राजनीति के सिवा और कुछ नहीं दिखता. शाह के करीबी बताते हैं कि वह पारिवारिक और सामाजिक मेल-मिलाप में वह बहुत कम वक्त जाया करते हैं.
यतिन ओझा, पूर्व बीजेपी विधायक

शाह के बारे में एक बात और कही जाती है कि पार्टी में उनके काम में कोई दखल नहीं देता. टिकट देने का मामला हो या फिर किसी रणनीति का, शाह को जो सही लगता है, वो वही करते हैं. अगर उन्हें किसी उम्मीदवार की हार का डर होता है तो उसे टिकट नहीं देते, चाहे वो कितना भी दिग्गज या किसी का खास क्यों न हो. इसके साथ ही शाह को अच्छे कार्यकर्ताओं की अच्छी परख भी है.

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