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CBSE ने लिया टॉपर्स लिस्ट हटाने का फैसला, इसपर क्या कहते हैं शिक्षक और डॉक्टर?

CBSE रिजल्ट में अब मेरिट सूची और डिवीजन-वार अंकों की घोषणा नहीं करेगा.

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भारत
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10वीं और 12वीं के लिए CBSE रिजल्ट 2022 का ऐलान कर दिया गया है. CBSE परीक्षा नियंत्रक संयम भारद्वाज ने कहा कि अब से Unhealthy Competition पर रोक लगाने के लिए CBSE रिजल्ट के लिए मेरिट लिस्ट और डिवीजन-वार अंकों की घोषणा नहीं की जाएगी.

2020 और 2021 में सीबीएसई मेरिट लिस्ट की भी घोषणा नहीं की गई थी, क्योंकि बोर्ड ने एक वैकल्पिक मूल्यांकन योजना (Alternative assessment plan) अपनाई थी क्योंकि कुछ या सभी पेपर कोविड -19 के कारण रद्द कर दिए गए थे.

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सीबीएसई ने अभी तक मेरिट लिस्ट जारी नहीं की है, लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मयंक यादव नाम का छात्र जो उत्तर प्रदेश के नोएडा से, उसने 100 प्रतिशत अंक हासिल करके सीबीएसई कक्षा 10 वीं में टॉप किया है. मयंक यादव एमिटी इंटरनेशनल स्कूल के छात्र हैं.

मुश्किल है डगर 

भारत में एग्जाम रिजल्ट के बाद छात्रों और अभिभावकों में मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिलती है. मार्क्स और स्कोरकार्ड देश की एजुकेशन सिस्टम का आधार हैं. कुछ हद तक एक व्यक्ति का भविष्य पूरी तरह से इस बात पर निर्भर माना जाता है कि उसने छात्र जीवन में क्या हासिल किया है. हम सभी इस धारणा के तहत रहते हैं कि बेहतर अंक से - 'बेहतर भविष्य और बेहतर जीवन' पाने की गुंजाइश बेहतर है.

एकडेमिक उपलब्धि जरूरी है, लेकिन बच्चे का मानसिक स्वास्थ्य भी जरूरी है. एक बच्चा जो लगातार नंबर और अपने प्रदर्शन को लेकर बुरा महसूस करता है, कई बार वो डिप्रेशन में भी चला जाता है.

छात्रों में आत्महत्या की दर बढ़ रही है. साल 2019 में, भारत में कुल 10,335 छात्रों की खुदकुशी से मौत हुई थी. यह पिछले 25 साल में सबसे ज्यादा था. 1995 से 2019 तक 1.5 लाख से अधिक छात्रों ने जान दे दी और इसका एक मुख्य कारण एकेडमिक दबाव है.

CBSE में सिर्फ टॉपर और रैंकिंग व्यवस्था खत्म होने से इस समस्या का कुछ हद तक तो समाधान हो सकता है, लेकिन साइकोलॉजिस्ट का मानना है कि अपने बच्चे की दूसरों से तुलना करने से बचें.अपने बच्चे को गोल ओरिएंटेड बनाएं, लेकिन सुनिश्चित करें कि आप उनपर ज्यादा दबाव ना डालें. कम्पटीशन वाले माहौल में आने के लिए उन्हें अपने स्वयं के बेबी स्टेप्स उठाने दें.

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क्या कहते हैं डॉक्टर?  

फोर्टिस स्कूल मेंटल हेल्थ प्रोग्राम में क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट और हेड, मीमांसा सिंह तंवर कहतीं हैं कि, "यह मार्क्स और रिजल्ट के आसपास बने नैरेटिव को बदलने के लिए एक पॉजिटिव अप्रोच है और एक वेलकमिंग स्टेप है, किसने टॉप किया किसने नहीं किया, कौन फर्स्ट आया, कौन सेकंड आया जिंदगी के लॉन्ग टर्म परिपेक्ष में इसका शायद ही कोई महत्त्व है."

वह आगे कहतीं हैं कि, "जब हम यह तुलना करने वाले विश्लेषण को हटा देते हैं तो कहीं न कहीं यह एक ओवरआल स्ट्रेस और ओवरआल नजरिए को पॉजिटिव तरीके से बदलता है, यह एक बहुत अच्छा अप्रोच है. सीबीएसई का यह स्टेप बच्चों और अभिभावकों में तुलनात्मक विश्लेषण को हटाने के लिए एक बेहद पॉजिटिव स्टेप है."

क्या कहतें हैं शिक्षक? 

अकैड्मिश्‌न और वर्तमान में एशियन कॉलेज ऑफ जर्नलिज्म में पढ़ा रहे प्रोफेसर विकास पाठक कहते हैं-

यह कदम बेहतरी के लिए कुछ हद तक सांकेतिक कदम के तौर पर देखा जा सकता है, लेकिन धरातल पर इससे असल में बहुत ज्यादा फर्क इसलिए नहीं आने वाला है, क्योंकि टॉप संस्थानों की संख्या कम और आवेदन करने वाले छात्रों की संख्या कहीं ज्यादा होती है. तो वही कड़ा कम्पटीशन तो बने रहने की संभावना है.

वो आगे कहतें हैं कि, "जामिया मिल्लिया इस्लामिया, जेएनयू, दिल्ली युनिवर्सिटी जैसे कॉलेजों की संख्या अलग-अलग राज्यों में बढ़ेगी तो इससे छात्रों के पास ऑप्शन बढ़ेंगे और इस वजह से छात्रों का तनाव और स्ट्रेस काफी हद तक कम होगा. इसके लिए राज्य और केंद्र दोनों सरकारों को इसमें भागीदार होना पड़ेगा."

प्रोफेसर विकास पाठक दोहराते हैं कि, "यह पहले से थोड़ा बेहतर जरूर हैं, सांकेतिक तौर पर अच्छा कदम है, लेकिन हकीकत में फर्क तभी पड़ेगा जब देशभर में जामिया, जेएनयू और दिल्ली विश्वविधालय जैसे संस्थान स्थापित हो. इससे छात्रों में उनके करियर और भविष्य की तनाव और चिंता कम जरूर होगी."

जामिया मिल्लिया इस्लामिया के सेंटर फॉर वूमेन स्टडीज में प्रोफेसर फिरदौस अज़मत कहती हैं कि,

"रैंकिंग सिस्टम तो होना चाहिए, इससे छात्रों के स्ट्रेस लेवल में कोई कमी या फर्क नहीं आने वाला. बच्चों में हेल्थी कम्पीटशन होना भी जरूरी हैं. पास फेल में बदलाव किया जा सकता है, छात्रों को यदि फेल न कर प्रमोट किया जा सकता है तो वह बेहतर है. लेकिन टोपर लिस्ट हटा देना मेधावी बच्चों के साथ कहीं न कहीं न इंसाफी है."
प्रोफेसर फिरदौस अज़मत

प्रोफेसर फिरदौस अज़मत कहती हैं कि अगर इसका कोई डेटा या रिसर्च हो की सीबीएसई के इस कदम से बच्चों में स्ट्रेस लेवल कम होगा तो शायद इस कदम को ठीक माना जा सकता है. अन्यथा इससे छात्रों के स्ट्रेस लेवल में कोई ज्यादा फर्क नहीं आने वाला.

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