ADVERTISEMENTREMOVE AD

चांद पर कैसे उतरेगा ‘विक्रम’- ISRO ने वीडियो में दिखाया

पढ़िए लैंडर ‘विक्रम’ से जुड़ी खास बातें

Updated
भारत
2 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

मिशन चंद्रयान-2 के जरिए भारत एक नया मुकाम हासिल करने वाला है. चंद्रयान-2 का लैंडर ‘विक्रम’ शनिवार तड़के चांद की सतह पर ऐतिहासिक ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने के लिए तैयार है. इसरो को अगर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ में सफलता मिलती है तो रूस, अमेरिका और चीन के बाद भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा और चांद के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन जाएगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
लैंडर ‘विक्रम’ को 6 और 7 सितंबर की दरम्यानी रात 1 बजे से 2 बजे के बीच चांद की सतह पर उतारने की प्रक्रिया की जाएगी और यह रात 1:30 से 2:30 बजे के बीच चांद पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करेगा.

देखिए, लैंडर ‘विक्रम’ के अहम कंपोनेंट और यह किस तरह करेगा सॉफ्ट लैंडिंग

0

क्या है 'सॉफ्ट लैंडिंग'?

‘सॉफ्ट लैंडिंग' में लैंडर को आराम से धीरे-धीरे सतह पर उतारा जाता है, जिससे लैंडर, रोवर और उनके साथ लगे उपकरण सुरक्षित रहें.

चांद पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ भारत के दूसरे चंद्र मिशन की सबसे चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है. इसरो ने अब से पहले इस प्रक्रिया को कभी अंजाम नहीं दिया है.

इसरो चंद्रयान-2 के लैंडर और रोवर को लगभग 70 डिग्री दक्षिणी अक्षांश में दो गड्ढों ‘मैंजिनस सी’ और ‘सिंपेलियस एन’ के बीच एक ऊंचे मैदानी इलाके में उतारने की कोशिश करेगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

लैंडर ‘विक्रम’ से जुड़ी खास बातें

  • लैंडर 'विक्रम' का नाम भारतीय अंतरिक्ष प्रोग्राम के फादर कहे जाने वाले विक्रम ए साराभाई के नाम पर रखा गया है
  • 'विक्रम' को एक चंद्र दिन (पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर) काम करने के लिए डिजाइन किया गया है
  • 'विक्रम' बेंगलुरु के पास ब्यालालू में IDSN के साथ कम्युनिकेट कर सकता है. इसके अलावा यह ऑर्बिटर और रोवर के साथ भी कम्युनिकेट कर सकता है
  • लैंडर 'विक्रम' का वजन 1,471 किलोग्राम है
  • 'विक्रम' के पास 650 W इलेक्ट्रिक पावर जनरेट करने की क्षमता है
  • 'विक्रम' में तीन पेलोड्स हैं- RAMBHA, ChaSTE और ILSA
ADVERTISEMENTREMOVE AD

क्यों खास है चांद का दक्षिणी धुव्रीय क्षेत्र?

  • इसरो के मुताबिक, चांद का दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र बेहद रुचिकर है क्योंकि यह उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र के मुकाबले काफी बड़ा है और अंधकार में डूबा रहता है
  • चांद पर स्थायी रूप से अंधकार वाले क्षेत्रों में पानी मौजूद होने की संभावना है. चंद्रयान-1 के जरिए चंद्रमा की सतह पर पानी की मौजूदगी का साक्ष्य पहले ही जुटाने वाले इसरो की योजना अब नए मिशन के जरिए वहां जल की उपलब्धता के वितरण और उसकी मात्रा के बारे में पता कर प्रयोगों को आगे बढ़ाने की है.
  • चांद के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में ऐसे गड्ढे हैं जहां कभी धूप नहीं पड़ी है. इन्हें ‘कोल्ड ट्रैप’ कहा जाता है और इनमें पूर्व के सौर मंडल का जीवाश्म रिकॉर्ड मौजूद है
ADVERTISEMENTREMOVE AD

लैंडर के चांद पर उतरने के बाद 7 सितंबर की सुबह 5:30 बजे से 6:30 बजे के बीच इसके भीतर से रोवर ‘प्रज्ञान’ बाहर निकलेगा और अपने वैज्ञानिक प्रयोग शुरू करेगा. रोवर ‘प्रज्ञान’एक चंद्र दिन तक काम करेगा. चांद की सतह, वायुमंडलीय संरचना, भौतिक स्वभाव और भूकंपीय गतिविधियों के बारे में जानकारी जुटाने के लिए लैंडर और रोवर में कुल 5 तरह के उपकरण मौजूद हैं.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×