तकनीकी प्रगति का प्रतीक बना रहेगा चंद्रयान-2
न्यूयॉर्क टाइम्स में जोनाथन ओ कैल्हन ने लिखा है कि चंद्रयान दो के लैंडर विक्रम का अंतिम समय में सम्पर्क टूट जाना दुखद जरूर है लेकिन भारतीय मिशन महत्वाकांक्षाओं से भरपूर है और यह एक सबक की तरह होगा.
लेखक का मानना है कि इसरो ने पहले से ही ‘भयभीत करने वाले 15 मिनट’ की घोषणा कर रखी थी. बेहतर होता कि वह इस पर काम कर लेते कि लैंडर धीरे-धीरे चांद की सतह पर उतर सके. भारतीय अभियान के बाद विश्व के स्तर पर चंद्र अभियान के प्रति दिलचस्पी बढ़ेगी.
भारत 2020 में चंद्रयान 3 की तैयारी कर रहा है तो नासा 2024 में चांद पर अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने पर काम कर रहा है. हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जोनाथन मैक्डवेल के हवाले से लेखक ने लिखा है कि विफलता के बावजूद चंद्रयान 2 दुनिया भर में चंद्र अभियान के प्रति बढ़ती दिलचस्पी के बीच तकनीकी प्रगति का प्रतीक बना रहेगा.
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वैध नागरिक अवैध प्रवासी कैसे?
हिन्दुस्तान टाइम्स में करण थापर ने नागरिकता कानून के संदर्भ में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन से जुड़ा प्रासंगिक सवाल उठाया है. उन्होंने खास तौर से सुप्रीम कोर्ट की अनुमति से पहले से मौजूद कानून के उल्लंघन की बात उठायी है. करण थापर लिखते हैं कि नागरिकता कानून 1955 की धारा 3 (1) के तहत “26 जनवरी 1950 के बाद और 1 जुलाई 1987 से पहले भारत में जन्मा हर व्यक्ति जन्म के आधार पर भारतीय नागरिक है.”
जबकि एनआरसी 25 मार्च 1971 और 30 जून 1987 के बीच भारत में पैदा हुए व्यक्ति को जन्म के आधार पर स्वाभाविक नागरिकता के हिसाब से विचार नहीं करता. एनआरसी सिर्फ 24 मार्च 1971 से पहले भारत में मौजूद लोगों को ही भारतीय नागरिक मानता है.
लेखक का कहना है कि हमने अवैध विदेशी की पहचान करने के लिए ऐसे तरीके को स्वीकार किया है जिसमें वैध नागरिक आसानी से अवैध प्रवासी घोषित कर दिए जा रहे हैं. वे सवाल करते हैं कि क्या यह गम्भीर चिन्ता का विषय नहीं है?
...तो ऐसे रुकेगी मॉब लिंचिंग!
तवलीन सिंह जनसत्ता में लिखती हैं कि जिस दिन चंद्रयान 2 अपने अंतिम पड़ाव पर था, उसी दिन एक ख़बर पर उनकी नजर गयी जो केन्द्रीय पशु मंत्री गिरिराज सिंह से जुड़ी थी. उन्होंने कृत्रिम गर्भाधान से यह सुनिश्चित करने की बात की थी कि गायों की संतानें अब मादा हुआ करेंगी जिसके बाद लोग दूध देनेवाली गायों को हमेशा साथ रखेंगे.
आवारा घूमती गायों की समस्या खत्म हो जाएगी. इस तरह से गोकशी, मॉब लिंचिंग जैसी समस्या भी दूर हो जाएगी. लेखिका को आश्चर्य हुआ कि मॉब लिंचिंग की जितनी भी घटनाएं हुई हैं वे आवारा पशुओं की वजह से नहीं हुई हैं, बल्कि अपनी गायों को ले जाते वक्त, गो मांस के टुकड़े मिलने की वजह से हुई है जब भीड़ ने बेकाबू होकर इंसान की जान ली है.
लेखिका ने वीर सावरकर पर प्रकाशित दो पुस्तकों का जिक्र करते हुए लिखा है कि वे नहीं चाहते थे कि गायों को पूजा जाए. उनका मानना था कि ऐसा करने से ही हिन्दू समाज गाय की तरह शांत हो गया है. हिन्दुओं को नरसिंह की पूजा करनी चाहिए. लेखिका बताती हैं कि वीर सावरकर आधुनिकता के पक्ष में थे. हिन्दुत्व के विचार के जनक रहे वीर सावरकर मुसलमान विरोधी नहीं थे. वे केवल उन्हीं मुसलमानों का विरोध करते थे जो इस धरती को अपनी पुण्य धरती मानने को तैयार नहीं थे.
http://epaper.jansatta.com/2318424/%E0%A4%B2%E0%A4%96%E0%A4%A8%E0%A4%8A/8-September-2019#page/6/2
पांचवीं त्रासदी से गुजर रहे हैं कश्मीरी पंडित
रामचंद्र गुहा ने अमर उजाला में कश्मीर से जुड़े कई एक संस्मरणों के हवाले से कश्मीरी पंडितों की त्रासदी को बयान किया है. कश्मीरी पंडितों की पहली त्रासदी थी कि उन्हें अपनी मातृभूमि को छोड़कर भागना पड़ा जब जेहाद के नाम पर उन्हें पागलपन का शिकार बनाया गया और अपनों ने मुंह फेर लिया.
दूसरी त्रासदी यह थी कि उनका निर्वासन ऐसे समय में हुआ जब शेष हिन्दुस्तान में मुस्लिमों का उत्पीड़न हो रहा था. आडवाणी की रथयात्रा और राम शिला पूजन के बाद उत्तरी और पश्चिमी भारत में दंगे भड़क उठे थे. कश्मीरी पंडितों की तीसरी त्रासदी यह थी कि उनके उत्पीड़न से संबंधित सही तथ्यों को नजरअंदाज कर दिया गया.
चौथी त्रासदी का सामना कश्मीरी पंडितों ने तब महसूस किया जब देखा कि वे हिन्दुत्व का मोहरा बनाए जा रहे हैं. पांचवीं त्रासदी से सामना अब हो रहा है जब अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी किए जाने और उसके बाद जारी राज्य के दमन का पूरे भारत में स्वागत किया जा रहा है मानो यह कश्मीरी पंडितों के साथ जो कुछ हुआ उसका प्रतिशोध हो.
कभी स्पिनर शान थे आज तेज गेंदबाज
द हिन्दू में सुरेश मेनन ने विवियन रिचर्ड्स की जुबान से भारतीय तेज गेंदबाज की तारीफ करते हुए उनकी अहमियत को सामने रखा है. वे लिखते हैं जब विवियन रिचर्ड्स ने टेस्ट क्रिकेट में कदम रखा था तब उन्होंने आबिद अली और एकनाथ सोलकर का सामना किया. बाद में कपिल देव और मदनलाल को खेला. अब वे जसप्रीत बुमरा की गेंदबाजी देखकर कहते हैं, “मैंने कभी नहीं सोचा था कि जीते-जीते यह देख पाऊंगा कि कि भारतीय तेज गेंदबाज का दुनिया पर आधिपत्य होगा.”
1932 में अपने पहले टेस्ट मैच में भारत की तेज गेंदबाजों की जोड़ी मोहम्मद निसार और अमर सिंह ने इंग्लैंड के 3 विकेट पहले आधे घंटे में चटखा दिए थे. तब 19 रन ही जोड़ पायी थी इंग्लैंड की टीम. भारत की टीम स्पिन आक्रमण के लिए मशहूर हुई. यहां तेज गेंदबाज इसलिए ओपनिंग बॉलिंग करते थे ताकि गेंद की चमक कम हो और गेंद स्पिन गेंदबाज को दी जा सके.
कपिलदेव और श्रीनाथ के बाद भारत को तेज गेंदबाजों की लम्बी फेहरिश्त मिली जिनमें जहीर खान, इरफान पठान, आरपी सिंह, मुनाफ पटेल, अजित आगरकर, आशीष नेहरा, श्रीसंत, इशान्त शर्मा, उमेश यादव, मोहम्मद शमी शामिल हैं. मगर, जो बात जसप्रीत बुमराह में है वो किसी और में नहीं.
गुहा लिखते हैं बुमराह के पास गति है, वे यॉर्क करते हैं, उनकी गेंद कब इनस्विंग और कब आउटस्विंग हो जाती है बल्लेबाज को पता नही लगता. शायद यही वजह है कि दुनिया आज उन्हें तेज गेंदबाजी में भारत के वर्चस्व के रूप में देख रही है. अब भारतीय क्रिकेट में स्पिनर की जगह तेज गेंदबाज ने ले ली है.
रिश्ता तोड़ने की वजह सही हो
द टाइम्स ऑफ इंडिया में पूजा बेदी मुश्किल सवालों का जवाब देती हैं. वह लिखती हैं कि अपने जीवन साथी से अलग होने की इच्छा रखने वालें से उनका सवाल होता है कि आखिर किस बात ने उन्हें एक-दूसरे से जोड़ा था. ज्यादातर महिलाओँ का जवाब होता है कि वह आकर्षित हो गयी थी. उसने जो अहसास दिलाया, जो वादे किए उसने प्रभावित किया.
उनसे किए गये वादे पूरे नहीं हुए, वह ध्यान नहीं देते, किन्हीं दूसरी चीजों में खोए रहते हैं. वहीं पुरुष इस खुशफहमी में होता है कि महिला ने उसे अपनी जिन्दगी में आने का मौका दिया, वह भी हसीन सपनों में खोया रहता है. इस दौरान वह जीवनसाथी की जरूरतों, उसके मायके, घर-परिवार-रिश्तेदार जैसी चीजों से खुद को जोड़ नहीं पाता.
अगर कोई किसी से मोहब्बत करता है तो वह खोखला नहीं हो सकता. अगर आपने गलत वजह से किसी से रिश्ता जोड़ लिया है तो कम से कम यह सुनिश्चित करें कि रिश्ता तोड़ने की वजह तो सही रहे.
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