"मैंने तो सरकारी नोटिफिकेशन देखकर बीएड किया था. मुझे इस डिग्री के लिए 80 हजार रुपए की फीस लगी. मैं रात में गार्ड की ड्यूटी करता था और सुबह क्लिनिक पर. कई दिन 19-19 घंटे काम किया तब जाकर मुझे यह डिग्री मिल पाई. अब जब उसके दम पर सरकारी नौकरी मिली है तो वो भी हमसे छीनी जा रही. अब हम क्या करेंगे."
यह कहना है 31 वर्षीय राकेश कुमार पड़ौती का. राकेश छत्तीसगढ़ के प्राइमरी स्कूलों में सहायक शिक्षक (Chhattisgarh Assistant Teachers) के रूप में 2023 में नियुक्त हुए 2,897 बीएड शिक्षकों में से एक हैं जिनकी नौकरी सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद रद्द होने के कगार पर है. सुप्रीम कोर्ट ने 28 अगस्त को इस शिक्षकों की नियुक्ति को अवैध मानने वाले हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील करने वाली उनकी याचिका खारिज कर दी.
क्विंट हिंदी ने राकेश के तरह ही उन कई शिक्षकों से बात की जिनका मानना है कि इस पूरे मामले में उनकी कोई गलती नहीं थी, उन्होंने तो सिर्फ सरकारी नोटिफिकेशन के हिसाब से अपनी मेहनत के बूते यह नौकरी पाई है. इसे अब खोना उनके परिवार के सामने रोजी-रोटी का सवाल खड़ा कर देगा.
चलिए सबसे पहले जानते हैं कि कोर्ट ने इनकी नियुक्ति को अवैध क्यों करार दिया है.
प्राइमरी स्कूलों में पढ़ाने के लिए बीएड मान्य डिग्री नहीं- "कोर्ट का फैसला लेकिन सरकारी नोटिफिकेशन में यह शर्त नहीं थी"
33 वर्षीय रवि कश्यप की नियुक्ति छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में हुई है. मूल रूप से जांजगीर-चांपा के निवासी रवि के पूरे परिवार के लिए सहायक शिक्षक की यह नौकरी अंतिम सहारा है क्योंकि परिवार में वो कमाने वाले इकलौते हैं. क्विंट हिंदी से बात करते हुए उन्होंने इस पूरे मामले की टाइमलाइन बताई.
उन्होंने बताया कि 4 मई 2023 को छत्तीसगढ़ सरकार सहायक शिक्षकों की नियुक्ति के लिए मेन नोटिफिकेशन जारी करती है. इसमें सहायक शिक्षक बनने के लिए योग्यता के रूप में प्राथमिक शिक्षा में डिप्लोमा (D.El.Ed) के साथ-साथ बीएड को भी मान्य बताया जाता है.
इस नोटिफिकेशन में सरकार ने कहीं नहीं बताया था कि बीएड डिग्री वाले प्राइमरी में नहीं पढ़ा सकते और ऐसा कोई मामला कोर्ट में है भी. फार्म भरने की आखिरी तारीख 23 मार्च 2023 की थी.रवि कश्यप
10 जून 2023 को परीक्षा हुई. 2 जुलाई 2023 को मेरिट लिस्ट आती है. रवि कश्यप के अनुसार इस मेरिट में भी उनसे नहीं कहा गया कि बीएड वाले इस नौकरी के लिए अयोग्य हैं. दूसरी तरफ देवेश शर्मा बनाम भारत संघ (2023) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाई कोर्ट के उस फैसले पर मुहर लगा दी जिसके अनुसार प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों की नियुक्ति के लिए आवश्यक योग्यता D.El.Ed है न कि बी.एड.
कार्यवाही के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2024 में एक स्पष्टीकरण जारी किया था कि देवेश शर्मा निर्णय से पहले जिन लोगों का चयन और नियुक्ति की गई थी, उन्हें परेशान नहीं किया जाएगा. इसके बाद छत्तीसगढ़ सहायक शिक्षक परीक्षा की मेरिट लिस्ट में शामिल बीएड डिग्री वालों को काउंसलिंग से बाहर करने के लिए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की जाती है.
हाईकोर्ट याचिका ने बीएड डिग्री वालों को काउंसलिंग से बाहर कर दिया. इसके बाद इस आदेश को बी.एड. अभ्यर्थियों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें अंतरिम राहत दी और हाईकोर्ट के अंतिम निर्णय के अधीन बी.एड. अभ्यर्थियों की भर्ती की अनुमति दे दी.
2 अप्रैल 2024 को हाईकोर्ट ने इस मामले पर अपना अंतिम फैसला सुनाया और बी.एड. अभ्यर्थियों की नियुक्ति को रद्द करते हुए दोबारा काउंसलिंग कराने का आदेश देता है. इसे सुप्रीम कोर्ट में फिर से चुनौती दी जाती है लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 28 अगस्त 2024 को हाईकोर्ट के फैसले को सही माना और इन 2,897 बीएड शिक्षकों की नौकरी रद्द होने के कगार पर खड़ी है.
"मैं अपने घर में बता भी नहीं पा रही कि मेरी नौकरी जाने वाली है"
25 वर्षीय की नीलम मंडावी अक्टूबर 2023 से कांकेर जिले के नाहरपुर ब्लॉक के एक सरकारी स्कूल में पढ़ा रही हैं. क्विंट हिंदी से बात करते हुए उन्होंने बताया कि वैसे तो उन्होंने SSC GD कांस्टेबल परीक्षा भी पास कर लिया था लेकिन मेडिकल देने से पहले ही उनका सहायक शिक्षक में हो गया और इस वजह से उन्होंने SSC छोड़ दी. उनके लिए अब स्थिति न इधर की रही न उधर की रही वाली हो गई है.
मैं अपने घर में बता भी नहीं पा रही कि मेरी नौकरी जाने वाली है. मैं किस मुंह से घर जाउं मुझे समझ नहीं आ रहा. मैंने SSC GD छोड़ दी थी कि टीजर की नौकरी ज्यादा सेफ है. घर में पूरी जिम्मेदारी मेरे पर ही है. मेरे से छोटी दो बहने हैं और उनको पढ़ाने की जिम्मेदारी भी मेरी है.
नीलम मंडावी ने जूलॉजी में एमएससी और उसके बाद बीएड की डिग्री ली है. रवि कश्यप की तरह भी नीलम का कहना है कि परीक्षा देते समय उनको यह जानकारी नहीं थी कि राजस्थान में ऐसा कोई केस कोर्ट में चल रहा है जिसमें बीएड अभ्यर्थी को प्राइमरी में पढ़ाने के लिए अयोग्य माना जा रहा.
नीलम मंडावी की सरकार से मांग है कि किसी भी तरह उनकी नौकरी सुरक्षित रहे. या तो डिपार्टमेंटल D.El.Ed डिग्री दिलाकर सहायक शिक्षक के पद पर बनाए रखा जाए या फिर किसी और पद पर नियुक्त किया जाए.
इन अभ्यर्थियों ने सूबे के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से भी मुलाकात की है और सरकार के सामने दो विकल्प रखे हैं:
सरकार इनकी नौकरी गजट लाकर सुरक्षित करे.
सरकार इन्हें मीडिल स्कूलों में अटैच करके डिपार्टमेंटल D.El.Ed डिग्री दिलाए या फिर इन्हें दो साल का वक्त दे ताकि ये खुद के स्तर पर इस डिग्री को पूरा करें.
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को लिखे लेटर में इन सहायक शिक्षकों ने बताया है कि इनमें से 71% अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से आते हैं. मुख्यमंत्री ने कानून के दायरे में रहकर “जो कुछ भी संभव हो सकेगा” करने का वादा किया है.
मूल रूप से मैनपाट कीं रहने की सुनिता बारा* (बदला नाम) ने बताया कि उनके माता-पिता की मौत हो चुकी है और यह नौकरी उनके लिए अंतिम सहारा है. उन्होंने कहा कि इसके पहले वो एक अर्ध-सरकारी स्कूल में पढ़ाती थीं और वहां महीने के 16 हजार रुपए मिलते थे. लेकिन बस्तर में सहायक शिक्षक के रूप में नियुक्त होने के बाद उनकी जिंदगी में स्थायित्व आया जिसपर अब संकट दिख रहा है. उन्होंने कहा कि 6-7 साल की तैयारी के बाद नौकरी मिली थी और उसको एक झटके में खत्म किया जा रहा है.
दूसरी तरफ राकेश कुमार पड़ौती ने अपनी छोटी बहन की शादी के लिए लगभग 9.5 लाख रुपए का लोन लिया है. नौकरी लग गई और लगभग 35 हजार रुपए महीने आने लगे तो उन्होंने उसी के बल पर यह लोन लिया और महीने का 19 हजार दो सौ रुपए इएमआई में चुकाते हैं. नौकरी चली गई तो स्थिति उनके लिए बहुत खराब हो जाएगी.
"पूरा परिवार मेरे पर आश्रित है. मेरी बहने इस बार तीज के त्योहार पर घर बुला रही थीं लेकिन मैं नहीं गया. मैं क्या मुंह लेकर जाउंगा उनके पास. मैं घर न जाकर रायपुर में दर-दर भटक रहा था और नेताओं से मिलने की कोशिश कर रहा था ताकि मेरी नौकरी बच जाए. अगर सरकार यह नोटिफिकेशन नहीं लाती तो हम बीएड वाले परीक्षा में बैठते ही नहीं."राकेश कुमार पड़ौती
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