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कोरोना: लड़कों के मुकाबले लड़कियों की पढ़ाई बंद होने का खतरा बढ़ा

कोरोना संकट के बाद तकरीबन 2 करोड़ लड़कियां स्कूल नहीं लौट सकेंगी

Published
भारत
3 min read
कोरोना: लड़कों के मुकाबले लड़कियों की पढ़ाई बंद होने का खतरा बढ़ा
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कोरोना वायरस (Coronavirus) के कारण दुनियाभर में स्कूली शिक्षा प्रभावित हुई है. लड़कियों की पढ़ाई पर इसका सबसे बुरा असर हुआ. आंकड़ों के मुताबिक कोरोना खत्म होने के बाद भी कई कम और मध्यम आय वाले देशों को मिलाकर तकरीबन 2 करोड़ लड़कियां स्कूल नहीं लौट सकेंगी. इन देशों में भारत भी शामिल है.

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एक ओर महिला सशक्तिकरण के लिए दुनिया-जहान के कैंपेन चल रहे हैं, तो दूसरी ओर देश में ही 15 से 18 साल के आयु वर्ग की लगभग 40 प्रतिशत लड़कियां ऐसी हैं, जो स्कूल नहीं जा सकी हैं. साथ ही लड़कों के मुकाबले ऐसी लड़कियों की संख्या दोगुनी है, जो चार साल तक भी स्कूली शिक्षा नहीं ले पाईं. यूनेस्को के ये आंकड़े कोरोना काल के बाद और भी डरावने हो सकते हैं.

लड़कियों के लिए डिजिटल माध्यम बेकार साबित हुए

इस पर सेंटर फॉर बजट एंड पॉलिसी स्टडीज (CBPS) ने मलाला फंड के सहयोग से बिहार में एक स्टडी की. इसमें ये समझने की कोशिश की गई कि स्कूल बंद रहने के दौरान डिजिटल लर्निंग लड़कियों के लिए किस हद तक काम आ रही है. बता दें कि कोरोना के कारण 21 मार्च से देश के लगभग सभी स्कूल बंद पड़े हैं. अधिकतर स्कूलों का इंफ्रास्ट्रक्चर ऐसा है कि बच्चों के बीच फिजिकल डिस्टेंसिंग नहीं रखी जा सकती. ऐसे में उन्हें ऑनलाइन पढ़ाया जा रहा है. हालांकि बच्चों से बातचीत में दिखा कि खासकर लड़कियों के लिए डिजिटल माध्यम बेकार साबित हुए हैं.

47% बच्चों के पास ही फोन की सुविधा

स्टडी में पता चलता है कि लगभग 47% बच्चों के पास ही फोन की सुविधा है, जिनमें से 31% के पास स्मार्ट फोन है. इसमें भी ज्यादातर लड़कियों को पढ़ने के लिए फोन नहीं मिल पा रहा. असल में हो ये रहा है कि मोबाइल और इंटरनेट की सुविधा अगर किसी घर में एक ही शख्स के पास है और पढ़ने वाले लड़के और लड़की दोनों ही हैं तो लड़के की पढ़ाई को प्राथमिकता मिलती है. ऐसे में लड़कियों का यह सत्र एक तरह से बेकार जा रहा है.
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कोरोना खत्म होने के बाद या इस दौरान किशोर लड़कियों की शादी भी पढ़ाई रुकने की एक वजह बनने जा रही है. जैसा कि यूनिसेफ के आंकड़े बताते हैं, हर साल 18 साल से कम उम्र की लगभग 15 लाख भारतीय लड़कियों की शादी हो जाती है. इसके बाद पढ़ाई का तो कोई सवाल ही नहीं आता, बल्कि कम उम्र में मां बनने जैसे खतरे भी होते हैं. इस बारे में एक अजीबोगरीब ट्रेंड देखने में आया. साल 2005 से 2006 के बीच 18 साल से कम उम्र की लड़कियों की शादी की दर में लगभग 20 प्रतिशत की गिरावट आई थी, लेकिन साल 2015-2016 में ये ग्राफ एक बार फिर से ऊंचा हो गया.

कम उम्र में लड़कियों की शादी का ग्राफ बढ़ सकता है

अब कोरोना के बाद चिंता जताई जा रही है कि कम उम्र में लड़कियों की शादी का ग्राफ काफी ऊपर जा सकता है. यूनाइटेड नेशन्स पॉपुलेशन फंड का अनुमान है कि आने वाले 10 सालों में 13 मिलियन से भी ज्यादा लड़कियों की कम उम्र में शादी करवा दी जाएगी. गौर करें कि ये आंकड़ा उस आंकड़े से अलग है, जो बताता है कि कोरोना से पहले भी कितनी लड़कियां गर्ल चाइल्ड मैरिज का शिकार होती रही हैं.

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