दिल्ली के छावला सेंटर में, कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों की टेस्टिंग लगातार चल रही है. ये देश की सबसे बड़ी क्वारंटाइन सुविधा है, जिसे इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस (ITBP) चला रही है. इस कैंप में कोरोनावायरस से प्रभावित देशों से लाए गए भारतीयों को रखा जा रहा है. इस कैंप में 1,000 बेड हैं और करीब 35-40 के बीच मेडिकल स्टाफ है.
ITBP के सीएमओ डॉ. एपी जोशी ने क्विंट को बताया कि कैसे वो और उनके कर्मचारी ये सुनिश्चित कर रहे हैं कि कोरोनोवायरस के मरीजों को उनके घर लौटने से पहले ही अलग कर दिया जाए.
आप कैसे सुनिश्चित करते हैं कि क्वारंटाइन सुविधा में हर शख्स सुरक्षित है?
जब कोई शख्स विदेश से हमारी क्वारंटाइन सुविधा में पहुंचता है, तो हम उन्हें हर समय मास्क पहनकर रखने के सख्त निर्देश देते हैं, क्योंकि उनकी रिपोर्ट्स तब तक आई नहीं होती हैं. सभी के बेड के बीच में बराबर गैप है. हम पैंट्री में भी कम लोगों को ही खाने की इजाजत देते हैं.
लोगों के टेस्ट कैसे किए जाते हैं?
विदेश से भारत आने वाले शख्स को 28 दिनों के लिए अलग रखा जाता है; 14 दिनों तक अस्पताल में और 14 दिनों पर घर में.
पहला सैंपल उनके कैंप में आने के तुरंत बाद लिया जाता है और दूसरा सैंपल 14 दिनों के बाद. ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि कुछ केसों में वायरस 5 से 10 दिनों में डेवलप होता है. अगर 14वें दिन रिजल्ट नेगेटिव आता है, तो हम उन्हें एक-दो दिन बाद डिस्चार्ज कर देते हैं. डिस्चार्ज के समय, लोगों को बताया जाता है कि उन्हें अगले 14 दिनों घर में कैसे क्वारंटाइन में रहना है.
ITBP क्वारंटाइन में सर्वेलांस अफसर डिस्चार्ज के समय सभी की पूरी डिटेल रिकॉर्ड करते हैं और घर पर क्वारंटाइन पीरियड में भी उन्हें ट्रैक करते हैं.
कैंप में डॉक्टर्स कैसे रह रहे हैं?
ये हमारे लिए बड़ा चैलेंज है. हम रोजाना अपनी सेहत को मॉनिटर कर रहे हैं. अधिकतर डॉक्टर्स घर न जाकर, कैंप में ही रह रहे हैं. अगर कोई डॉक्टर घर जाने का प्लान करता है, तो उन्हें पूरी सावधानी बरतनी होती है.
हम भविष्य में किस तरह की चुनौतियों का सामना कर सकते हैं?
कोरोनावायरस एक इंफेक्शन है जो बहुत जल्दी फैलता है. लेकिन हमें ये भी समझना होगा कि हम पैनिक न करें और मास्क-सैनेटाइजर इकट्ठा न करने लग जाएं. कोरोना के मरीज या संदिग्ध मरीज या फिर उनका इलाज कर रहे मेडिकल स्टाफ को ही मास्क पहनने की जरूरत है.
तो क्या पर्याप्त मेडिकल इक्विपमेंट हैं?
अभी किसी भी मेडिकल इक्विपमेंट की कमी नहीं है. अगर इसी तरह से पैनिक बढ़ता गया, तो ऐसे हालात पैदा हो सकते हैं कि जिन्हें वाकई जरूरत है, उन्हें ही ये नहीं मिल रहा है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)