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मेट्रो की ब्लू-लाइन में बार-बार लोचा,बिगाड़ न दे वीकेंड का मजा 

मेट्रो सिग्नल ऑटोमेटिक की जगह मैनुअल किया गया

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दिल्ली मेट्रो की सबसे बिजी लाइन्स में से एक ब्लू लाइन में पिछले कुछ दिनों से लगातार खराबी आ रही है.सफर में लग रहे लंबे वक्त के साथ-साथ स्टेशन पर बेतहाशा भीड़ जैसी समस्याओं से पिछले तीन दिन में यात्रियों का खूब पाला पड़ा है. ऐसा न हो कि इस वीकेंड आप दिल्ली घूमने निकलें और मेट्रो में ही आपका कीमती वक्त खराब हो जाए.

दरअसल बुधवार को ब्लू लाइन मेट्रो के ऑटोमेटिक सिग्नल सिस्टम में कुछ मेजर प्रॉब्लम आ गई थी. सिग्नल सिस्टम अपने आप, बिना टाइमिंग के चालू-बंद हो रहा था. आनन-फानन में किसी तरह इसे टेंपेरेरी तौर पर रिपेयर कर दिया गया. मतलब ऑटोमेटिक से मैनुअल किया गया. अभी परमानेंट सॉल्यूशन रह गया है. तीन दिन बाद भी आलम ये है कि ब्लू लाइन पर ट्रेन लेट चल रही हैं.

बुधवार को यात्रियों को कई घंटों तक परेशान होना पड़ा था. इंजीनियर्स, सिग्नल सिस्टम में कहां दिक्कत है, इसका पता नही लगा पा रहे थे. डीएमआरसी के अधिकारी ने न्यूज एजेंसी पीटीआई को बताया,

बुधवार को सिग्नल में कुछ दिक्कत आ गई थी. यह यमुना बैंक से वैशाली जाने वाले सेक्शन के बीच था. इसके चलते पूरी ब्लू लाइन पर सर्विस प्रभावित हो रही है.
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अभी भी चल रही हैं लेट...

पिछले दो दिनों से ब्लू लाइन पर मेट्रो ट्रेनों को हर स्टेशन पर 15-20 मिनट तक इंतजार करना पड़ा रहा है. टाइम बचाने वाले लोग मेट्रो के चक्कर में उल्टे फंस रहे हैं. ब्लू लाइन द्वारका से नोएडा को जोड़ती है. यमुना बैंक स्टेशन से इसकी एक और ब्रॉन्च निकलती है, जो वैशाली तक जाती है.

ब्लू लाइन से रेगुलर नोएडा आने-जाने वाले संदीप धूलिया ने बताया, ‘ब्लू लाइन बुधवार से लगातार खराब चल रही है. शुक्रवार को मुझे द्वारका मोड़ से सेक्टर 18 तक आने में ढ़ाई घंटे लग गए. आम तौर पर ये सफर डेढ़ घंटे के भीतर खत्म हो जाता है.’

लोगों ने ट्विटर पर भी गुस्सा जताते हुए लिखा कि 15-20 मिनट के सफर के लिए उन्हें आधे-आधे घंटे मेट्रो में फंसा रहना पड़ा.

जर्मन कंपनी की ली जाएगी मदद

दरअसल मेट्रो के तमाम एक्सपर्ट ये पता नहीं लगा पा रहे हैं कि सिग्नल सिस्टम में खराबी किस जगह पर है. शुरूआती जांच में पता चला है कि खराबी सॉफ्टवेयर स्तर पर है. फिलहाल सिस्टम को ऑटोमेटिक की जगह मैनुअल तरीके से चलाया जा रहा है.

मैनुअल तरीके से चलाने पर ट्रेन की स्पीड 25 फीसदी तक कम भी हो जाती है. सॉफ्टवेयर को जर्मन कंपनी सीमंस ने बनाया है. अब इसे सुधारने के लिए कंपनी के इंजीनियर्स की मदद ली जाएगी.

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