वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता
वो दिल्ली शहर के करीब 2 करोड़ लोगों की सुरक्षा के रखवाले हैं लेकिन अपनी सुरक्षा के लिए सड़कों पर प्रदर्शन के लिए मजबूर हो गए.उन्हें शिकायत है कि जो सीनियर्स उनसे ये उम्मीद करते हैं कि वो किसी जादूगर की तरह राजधानी की कानून-व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त रखेंगे वही सीनियर्स खुद उनके खिलाफ हुई ज्याददती को तमाशे की तरह चुपचाप देख रहे हैं. खाकी वर्दी का रौब काले कोट की दबंगई से थर्रा रहे हैं, परेशान दिख रहा है. बात हो रही है दिल्ली में पुलिवालों और वकीलों की उस झड़प की जिसने देश की सबसे स्मार्ट और रौबीली पुलिस को इस कदर बेचारा बना दिया है कि उसे सड़कों पर बैठकर अपनी सुरक्षा की गुहार लगानी पड़ी.
10 घंटे बाद पुलिसवालों का धरना तो खत्म हो गया है. पुलिस के वरिष्ठ वरिष्ठ अधिकारियों की तरफ से आश्वासन मिलने के बाद ये प्रदर्शन खत्म हुआ.
हमारी बात सुनी जाए, सुरक्षा कैसे होगी हमारी: पुलिसकर्मी
इन पुलिसवालों की मांग है कि उनकी भी बात को सुना जाए, जिन वकीलों ने गलती की है उन्हें सजा मिले, पुलिसकर्मियों को सस्पेंड न किया जाए. कई पुलिसवाले ये कह रहे हैं कि वकीलों का गुट जहां उन्हें देख रहा है वहीं हमला कर दे रहा है. पुलिसकर्मी अपनी सुरक्षा की भी मांग कर रहे हैं..ये अपने आप में हैरान कर देने वाली बात है...कुछ वीडियो भी मीडिया और सोशल मीडिया पर आए हैं जिनमें वकील गुट बनाकर पुलिसवालों को बेरहमी से पीटते दिख रहे हैं.
इस बीच पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक की मौजूदगी में ही प्रदर्शनकारी पुलिसवाले किरण बेदी के नारे लगाते भी नजर आए.
अब ऐसा क्यों? ये जानने के लिए हमें 1988 में चलना होगा. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जिस तरह का ये वकील-पुलिस बवाल मामला है ऐसा ही मामला, साल 1988 में भी देखने को मिला था. उस दौरान किरण बेदी ने वकीलों के खिलाफ बेहद सख्त कार्रवाई की थी, कई मीडिया रिपोर्ट्स में उस वक्त हुए लाठीचार्ज तक की बातें हैं..अब प्रदर्शन कर रहे पुलिसवालों को लगता है कि उन्हें भी अपने अफसरों से ऐसा ही सपोर्ट मिले.
इस प्रदर्शन को रिटायर्ड पुलिसकर्मियों और कई राज्यों के पुलिस संगठन का भी साथ मिला. भारी नारेबाजी और हंगामे के बीच दिल्ली पुलिस कमिश्नर के बाद ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर भी प्रदर्शन में पहुंचे. ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर ने प्रदर्शनकारी पुलिसकर्मियों से कहा कि प्रदर्शन खत्म कर देना चाहिए.
‘’विरोध प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ कोई विभागीय कार्रवाई नहीं की जाएगी.”ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर, दिल्ली पुलिस
2 नवंबर को शुरू हुआ था मामला
बता दें कि ये पूरा मामला 2 नवंबर को शुरू हुआ था. जब तीस हजारी कोर्ट के परिसर में पार्किंग को लेकर एक वकील और कुछ पुलिसकर्मियों के बीच मामूली बहस हो गई. इस बहस ने बाद में हिंसा का रूप ले लिया. गाड़ियां फूंकी गईं, जबरदस्त मारपीट हुई. पुलिस का दावा है कि उनके कुछ पुलिसकर्मी जख्मी हुए हैं, वकीलों की तरफ से भी घायल होने और गोली लगने के दावे किए गए हैं.
सियासत कैसे बंद हो सकती है...
अब इतना बड़ा मामला हो जाए और कोई पॉलिटिकल बयान न आया, ऐसा कैसे हो सकता है. कांग्रेस की तरफ से सुरजेवाला सामने आए, सुरजेवाला का कहना है कि पिछले 72 साल में ऐसा पुलिस प्रदर्शन नहीं हुआ..वो कहते हैं कि अमित शाह और मोदी है तो ये मुमकिन है. वहीं दिल्ली की केजरीवाल सरकार इस मामले में तटस्थ बनी हुई है...मामले को दुर्भाग्यपूर्ण बता रही है...रही बात केंद्र सरकार की जिसके अधीन दिल्ली पुलिस है तो मीडिया रिपोर्टस ये कहते हैं कि सरकार जांच रिपोर्ट के इंतजार में है.
कुल मिलाकर कहा यही जा सकता है कि दिल्ली ने छात्र प्रदर्शन देखा, किसान प्रदर्शन देखा और इन प्रदर्शनों से निपटने वाली दिल्ली पुलिस का प्रदर्शन भी देख लिया. सवाल ये है कि खुद पुलिसवाले यूं प्रदर्शन करते रहेंगे तो राजधानी की कानून-व्यवस्था का ध्यान कौन रखेगा और उससे भी बड़ा सवाल ये कि इस वाकिये का पुलिस की छवि का क्या असर पड़ेगा?
आखिर ये वो पुलिस है जिससे उम्मीद की जाती है कि वो सड़कछाप गुंडों से लेकर इंटरनेशनल आतंकवादियों तक से हमारी सुरक्षा करेगी.
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