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RCEP में शामिल न होना इकनॉमी की कमजोरी का इकबालिया बयान

भारत ने ठुकराया RCEP समझौता  

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वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज

प्रोड्यूसर: कौशिकी कश्यप

भारत ने घरेलू उद्योगों के हित में एक बड़ा फैसला लिया है. भारत RCEP यानी क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी में शामिल नहीं होगा. भारत ने बैंकॉक में चल रहे 16 देशों के बीच मुक्त व्यापार व्यवस्था के लिए प्रस्तावित RCEP समझौते पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया.

इन देशों में आसियान के 10 देशों के अलावा चीन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड शामिल हैं.

पीएम मोदी ने कहा कि प्रस्तावित समझौते से सभी भारतीयों के जीवन और आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. भारत द्वारा उठाए गए मुद्दों और चिंताओं का संतोषजनक ढंग से समाधान नहीं होने की वजह से उसने समझौते से बाहर रहने का फैसला किया है.

बता दें, पिछले करीब 7 साल से जारी बातचीत के बाद आखिरकार भारत ने चीन के समर्थन वाले RCEP समझौते से बाहर रहने का फैसला किया है. आंकड़े बताते हैं की फ्री ट्रेड एग्रीमेंट से भारत को व्यापार घाटा ज्यादा हुआ.

यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान भारत ने 2007 में भारत-चीन एफटीए की संभावना तलाशने और 2011-12 में चीन के साथ RCEP वार्ताओं में शामिल होने की सहमति दी थी. RCEP के देशों के साथ भारत का व्यापार घाटा जो 2004 में 7 अरब डॉलर था वो 2014 में 78 अरब डॉलर पर पहुंच गया.

विपक्षी दल कांग्रेस RCEP को लेकर सरकार पर लगातार हमलावर थी. देशभर के व्यापारी संघ के साथ-साथ सरकार की करीबी स्वदेशी जागरण मंच ने भी इसका विरोध किया था. लेकिन मोदी सरकार के RCEP में शामिल न होने के फैसले का इन सब ने स्वागत किया है.

तो क्या RCEP में शामिल न होना, मोदी सरकार का मजबूत फैसला कहा जा सकता है?

विश्वगुरु बनने की बात करने के वाला देश जब आर्थिक मसलों पर बात करता है तो उसकी नहीं सुनी जाती. भारत की मांग है कि नॉन टैरिफ बैरियर खोलिए. मैन पावर मोबिलिटी खोलिए. सर्विस सेक्टर में काम करने का मौका दीजिए. सिर्फ ट्रेड पर बात होती है, जिसमें हम कमजोर हैं.

बिजली के उदाहरण से समझिए. अगर हमें कंज्यूमर को बिजली सस्ती देनी है तो इंडस्ट्री को महंगी देते हैं. ब्याज दर ज्यादा है. ट्रांसपोर्ट-ढुलाई का खर्च ज्यादा है. रेल का यात्री किराया कम रहना चाहिए, इसके लिए माल ढुलाई का किराया बढ़ा दिया जाता है. इन वजहों से लागत इतनी ज्यादा होती है कि दुनिया के बाजार में हम अपना सामान जाकर बेच नहीं सकते. इस कमजोरी को खत्म करने की जरूरत है.

साथ ही साथ, चुनावों के मद्देनजर इंट्रेस्ट समूहों को सरकारें नाराज नहीं करना चाहती. व्यापारियों को काम करने का माहौल देने की बजाय डिफेंसिव मोड में रखते हैं. हम आर्थिक नीतियों में शॉर्ट टर्म चीजों पर ध्यान देते हैं जो राजनीति से प्रभावित होती है. इससे हमारी इकनॉमिक ग्रोथ की गति धीमी होती है. ग्लोबल ऑर्डर में हम छलांग नहीं लगा पाते. न लैंड रिफॉर्म, न लेबर रिफॉर्म, न टैरिफ के मामले में, न क्वालिटी, न टेक्नलॉजी एडवांसमेंट पर काम होता है.

ऐसे में RCEP में शामिल न होना, मोदी सरकार के मजबूत फैसले के पीछे इकनॉमी की कमजोरी का इकबालिया बयान है! भारत को कड़वी दवा की जरूरत है.

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