नेताओं द्वारा ईवीएम मशीनों से छेड़छाड़ के आरोपों की गुत्थी को सुलझाने के लिए चुनाव आयोग ने कमर कस ली है. आयोग के एक आधिकारिक बयान में कहा गया है,
हमने डेमोंसट्रेट (इवीए से छेड़छाड़) करने के लिए टेक्नोक्रेट, वैज्ञानिक और राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों को बुलाया है. हमने 2009 में भी उन लोगों को चुनौती दी थी कि जो मशीन में गड़बड़ी या उससे छेड़छाड़ होने का आरोप लगा रहे थे, लेकिन कुछ नहीं निकला.
हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ये चुनौती दी थी की उन्हें 72 घंटो के लिए ईवीएम मशीन दे दी जाए और वो बता देगें कि किस तरह से मशीन में छेड़छाड़ की जा सकती है. इसी का जवाब देने के लिए चुनाव आयोग ने ये फैसला किया है.
अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली एमसीडी के इलेक्शन भी बैलेट पेपर पर कराने की मांग की थी. केजरीवाल ने यह भी आरोप लगाया कि चुनाव आयोग मध्य प्रदेश के भिंड उपचुनाव में वही ईवीएम मशीनें इस्तेमाल कर रहा है जो उसने उत्तर प्रदेश में की थी. इसके अलावा यूपी के दूसरे दलों ने भी ईवीएम मशीन से छेड़छाड़ का आरोप लगाया था.
आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता ने यहां तक कहा था कि चुनाव आयोग एक स्वतंत्र संस्था की तरह काम नहीं कर रहा है और बीजेपी के सहयोगी की तरह पेश आ रहा है.
चुनाव आयोग ने किया खंडन
इस पर आरोपों का खंडन करते हुए चुनाव आयोग ने कहा कि ईवीएम मशीन पर आरोप लगाने की बजाय पार्टी को पंजाब में मिली हार के बारे में आत्मनिरीक्षण करना चाहिए और ईवीएम मशीनों को काफी सहज कर सुरक्षा के साथ कमरों में रखा गया था, जिससे कोई उसमें छेड़छाड़ न कर सके.
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