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किसान-सरकार की बैठक: जान गंवाने वाले किसानों के लिए रखा गया मौन

इस दौर की बातचीत में एमएसपी को लेकर बन सकती है बात

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भारत
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कृषि कानूनों को लेकर किसानों और केंद्र सरकार के बीच 8वें दौर की बातचीत जारी है. पिछली तमाम बैठकों में दो अहम मुद्दों- कानूनों को खत्म किया जाना और एमएसपी की कानूनी गारंटी को लेकर सहमति नहीं बन पाई. जिसके बाद इस दौर की बैठक में इन दोनों मु्द्दों पर चर्चा हो रही है. लेकिन चर्चा के दौरान किसानों ने सबसे पहले अपने उन आंदोलनकारी साथियों के लिए दो मिनट का मौन रखा, जिन्होंने पिछले दिनों अपनी जान गंवाई.

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अब तक कई किसानों की हुई मौत

किसान नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों ने प्रदर्शन के दौरान जान गंवाने वाले कई किसानों के लिए खड़े होकर दो मिनट का मौन धारण किया और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की.

बता दें कि कृषि बिलों के संसद से पास होने के बाद से ही किसानों का प्रदर्शन शुरू हो चुका था. तब से लेकर अब तक कई किसानों की प्रदर्शन के दौरान मौत हुई.

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत का दावा है कि अब तक करीब 60 किसानों की मौत हो चुकी है. उनका कहना था कि हर 16 घंटे में एक किसान जान गंवा रहा है. ये बात बैठक से ठीक पहले की गई.
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फिर उठेगी मुआवजे की मांग?

केंद्र की बैठक में किसानों के लिए मौन रखा जाना सरकार के लिए भी एक मैसेज है कि आंदोलन के लिए अब तक कितने किसान अपने प्राणों की आहुति दे चुके हैं. इससे पहले हुई 7वें दौर की बैठक में भी किसानों ने इस मुद्दे को उठाया था और मरने वाले किसानों के लिए मुआवजे की मांग की थी. अब इस बैठक में भी अगर 2 मिनट का मौन रखा गया है तो, जाहिर है कि उन किसानों को मुआवजा देने की बात फिर से उठाई जाएगी.

फिलहाल किसानों और केंद्रीय मंत्रियों की इस बैठक के बीच लंच ब्रेक हुआ है. हमेशा की तरह किसानों ने बाहर से अपना खाना मंगवाया है. 

बता दें कि इस 8वें दौर की बैठक में भले ही हल निकलने के बात की जा रही है, लेकिन किसान कानूनों को खत्म करने के अलावा दूसरे विकल्प को मानने के लिए तैयार नहीं हैं. वहीं केंद्र सरकार अपने कानूनों को किसी भी हाल में खत्म करने के मूड में न तो पहले थी और न ही अब दिखाई दे रही है. हालांकि दूसरे मुद्दे, यानी एमएसपी को लेकर इस बैठक में कुछ हल निकल सकता है. किसानों ने एमएसपी को कानूनी गारंटी देने की बात कही है, उसे सरकार कुछ शर्तों के साथ मान सकती है. अगर ऐसा हुआ तो फिर गेंद एक बार किसानों के पाले में होगी और ये देखना होगा कि वो आंदोलन को पीछे लेते हैं या फिर कानूनों को खत्म करने की मांग पर टिके रहते हैं.

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