दिल्ली की सीमाओं पर पिछले एक महीने से प्रदर्शन कर रहे किसान अब सरकार से एक बार फिर बातचीत के लिए तैयार हो चुके हैं. सरकार की नई चिट्ठी के बाद किसान संगठनों ने बैठक की, जिसमें ये फैसला लिया गया है कि 29 दिसंबर 11 बजे ये बैठक होगी. इस संबंध में किसानों ने लिखित जवाब सरकार तो दे दिया है. इससे एक दिन पहले केंद्र सरकार ने किसानों को चिट्ठी लिखकर कहा था कि वो बैठक की तारीख और वक्त बताएं, सरकार हर मुद्दे पर बातचीत के लिए तैयार है.
कहां फंसा था बातचीत का पेच
बता दें कि अमित शाह से मुलाकात के बाद किसानों ने तय किया था कि अब फिलहाल आगे की बातचीत सरकार से नहीं की जाएगी, क्योंकि सरकार हर बार सिर्फ कानूनों में संशोधन की बात कर रही है. किसानों की मांग है कि नए कृषि कानूनों को रद्द किया जाना चाहिए. इसके बाद केंद्र सरकार की तरफ से कानूनों में संशोधन का एक प्रस्ताव भी भेजा गया, जिसे किसानों ने खारिज कर दिया.
इसके बाद कई चिट्ठियां लिखकर किसानों से बैठक करने को कहा गया. लेकिन किसानों का कहना था कि सरकार फिर वही राग दोहरा रही है, जबकि उन्हें अब कानूनों को रद्द करने पर ही बातचीत करनी है.
एमएसपी पर कानूनी गारंटी की होगी बात
हालांकि अब केंद्र की नई चिट्ठी के बात किसान बैठक के लिए तैयार हुए हैं. लेकिन उनका कहना है कि इस बैठक में एमएसपी पर गारंटी को लेकर बातचीत होनी चाहिए. साथ ही बताया है कि उनकी कानूनों को रद्द करने की मांग कायम है. इस बैठक में रद्द करने की प्रक्रिया पर बातचीत होनी चाहिए.
किसान नेता और स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने बताया कि संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से सरकार को जवाब भेजा गया है. उन्होंने कहा,
सरकार को जवाब में बताया गया है कि, बैठक का एजेंडा ये हो और इस क्रम में हो- “तीन कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए अपनाई जाने वाली क्रियाविधि, सभी किसानों और कृषि वस्तुओं के लिए स्वामीनाथन कमीशन के सुझाए लाभदायक एमएसपी पर खरीद की कानूनी गांरटी देने की प्रक्रिया और प्रावधान”
किसानों की पूरी चिट्ठी
समर्थक किसानों से भी चल रही सरकार की बात
कृषि कानूनों को लेकर सरकार विरोध कर रहे किसानों को जरूर बातचीत के लिए आमंत्रित कर रही है, लेकिन दूसरी तरफ लगातार कानून समर्थक किसान संगठनों से भी बातचीत जारी है. इन संगठनों से बातचीत के बाद हाल ही में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर कह चुके हैं कि, किसानों ने उनको कहा है कि सरकार को कानूनों में संशोधनों को लेकर किसी भी तरह के दबाव में आने की जरूरत नहीं है.
यानी साफ है कि सरकार किसी भी हाल में कृषि कानूनों को रद्द नहीं करने जा रही है. वहीं किसानों ने जरूर बातचीत के लिए तारीख बताई है, लेकिन ये भी कहा है कि कानून रद्द करने की मांग बैठक में भी उठाई जाएगी.
प्रदर्शन कर रहे किसानों पर बातचीत का दबाव?
बता दें कि केंद्र सरकार के मंत्री और बीजेपी नेता इस आंदोलन को लेकर कई नेगेटिव बयानबाजी भी कर चुके हैं. वहीं प्रदर्शन कर रहे किसानों को बार-बार चिट्ठी लिखकर ये बताया जा रहा था कि किसान जिद पर अड़े हैं, जबकि सरकार तो पूरी तरह से बातचीत के लिए तैयार है. तीसरा ये कि उन किसान संगठनों को जुटाया जा रहा है, जो कानूनों पर सराकर की जुबानी बोल रहे हैं. इन सभी बातों से कहीं न कहीं प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों पर दबाव था कि वो बातचीत के लिए हामी भरें. जो आखिरकार अब हो गया है.
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