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किसानों को केंद्र का संशोधन प्रस्ताव,जानिए किन बातों पर मानी सरकार

सरकार ने पहली बार किसानों को दिया लिखित संशोधन प्रस्ताव, किसान कर रहे चर्चा

Published
भारत
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केंद्र सरकार के साथ करीब 6 दौर की बैठक के बाद अब आखिरकार सरकार ने पहली बार लिखित में प्रपोजल भेजा है. इस प्रपोजल में किसानों को बताया गया है कि उनसी समस्याओं पर सरकार क्या करना चाहती है, कृषि कानून पर जो भी किसानों की आपत्तियां थीं, उनका जवाब दिया गया है. अब इस प्रपोजल पर किसान नेता चर्चा करेंगे और आगे का फैसला लिया जाएगा. लेकिन इतने दौर की बातचीत के बाद आखिरकार सरकार किन बिंदुओं पर राजी हुई है और किन पर नहीं. हम आपको बताते हैं.

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MSP को लेकर सरकार की लिखित सफाई

किसानों का सबसे बड़ा मुद्दा न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी को लेकर था. किसानों का कहना था कि नए कृषि कानूनों से एमएसपी खत्म हो सकती है. लेकिन सरकार ने अब किसानों को दिए प्रपोजल में इसका लिखित जवाब दिया है. एमएसपी को लेकर कहा गया है-

  • नए अधियनियमों में समर्थन मूल्य की व्यवस्था और सरकारी खरीदी में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया है.
  • समर्थन मूल्य के केंद्रों की स्थापना का अधिकार राज्य सरकारों को है और वो इन केंद्रों को मंडियों में स्थापित करने के लिए स्वतंत्र हैं.
  • केंद्र सरकार द्वारा लगातार समर्थन मूल्य पर खरीदी की व्यवस्था मजबूत की गई है, जिसका उदाहरण इस साल की रबी और खरीफ की बंपर खरीदी है.
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एपीएमसी को लेकर क्या है सरकार का प्रस्ताव?

दूसरा मुद्दा था मंडियों का, जिनमें किसानों ने सरकार से कहा था कि नई व्यवस्था से मंडी समितियों की मंडियां कमजोर हो जाएंगीं और किसान निजी मंडियों के चंगुल में फंस जाएगा. इसका जवाब भी प्रपोजल में दिया गया है. प्रपोजल में सरकार ने कहा है-

  • नए प्रावधान पुराने विकल्प को चालू रखते हुए फसल बेचने के अधिक विकल्प उपलब्ध कराते हैं. किसान अब मंडी के बाहर नए विकल्पों जैसे किसी भंडारगृह से, कोल्ड स्टोरेज से, फैक्ट्री और अपने खेत से भई फसल बेच सकता है.
  • किसान की फसल को खरीदने में अधिक प्रतिस्पर्धा होगी क्योंकि नए व्यापारी भी सीधे फसल के खरीददार हो सकेंगे जिससे किसान को अधिक मूल्य प्राप्त होगा.
  • अंतर्राज्य और राज्य के भीतर व्यापार के सभी बंधन हट जाएंगे.
  • किसान को नए विकल्पों के अतिरिक्त पूर्व की तरह मंडी में बेचने और समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीदी केंद्र पर बेचने का विकल्प रहेगा.
एपीसएमसी को लेकर सरकार ने कानून में बदलाव का सुझाव देते हुए कहा है कि, अधिनियम को संशोधित करके ये प्रावधानित किया जा सकता है कि राज्य सरकार निजी मंडियों के रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था लागू कर सके. साथ ही ऐसी मंडियों से राज्य सरकार एपीएमसी मंडियों में लागू सेस/शुल्क की दर तक शुल्क निर्धारित कर सकेगी.
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किसान के सीधे कोर्ट जाने पर राजी हुई सरकार

तीसरा सबसे बड़ा मुद्दा ये था कि अगर कोई कॉर्पोरेट किसान से धोखाधड़ी करता है या फिर उसे उचित दाम नहीं चुकाता है तो ऐसे में किसान कोर्ट नहीं जा सकते हैं. उन्हें पहले एसडीएम कोर्ट जाना होगा, जिसमें न्याय मिलने की उम्मीद कम थी. इस पर सरकार ने कहा है कि सीधे सिविल कोर्ट में जाने की व्यवस्था पर विचार किया जा सकता है. सरकार ने प्रपोजल में कहा-

  • किसानों को तुरंत, सुलभ और कम खर्चे पर ही न्याय मिल सके और विवाद का समाधान स्थानीय स्तर पर 30 दिन के भीतर हो सके, इसका प्रावधान किया गया है.
  • दोनों अधिनियमों में पहली व्यवस्था सुलह बोर्ड के जरिए आपसी समझौते के आधार पर विवाद के निपटारे की है.

केंद्र ने इसे लेकर अपने प्रस्ताव में कहा है कि कानून को संशोधित कर इन व्यवस्थाओं के अलावा सीधे सिविल कोर्ट जाने का विकल्प भी दिया जा सकता है.

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