दिल्ली हाई कोर्ट ने इराक में 39 भारतीयों की जान बचाने में केंद्र की कथित चूक की विस्तृत जांच के लिये दायर याचिका बुधवार को खारिज कर दी. आतंकी संगठन आईएसआईएस ने इन भारतीयों की हत्या कर दी थी. अदालत ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि इस तरह की याचिकाएं ‘निंदनीय' हैं और उन्हें ‘हतोत्साहित' किये जाने की जरूरत है. यही नहीं, कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर 1 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया.
कार्यवाहक चीफ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस सी हरिशंकर की बेंच ने कहा कि यह याचिका पीड़ितों के परिवारों के कल्याण, हित और संवेदनशीलता के साथ-साथ स्वस्थ अंतरराष्ट्रीय संबंध और कूटनीतिक संबंधों को सुनिश्चित करने की जरूरत की अनदेखी करती है. अदालत ने कहा कि 39 भारतीयों के साथ घटी उस त्रासदी और उनके परिवार के सदस्यों को जिस पीड़ा से गुजरना पड़ा, एडवोकेट महमूद प्राचा की ओर से दायर जनहित याचिका उसके प्रति ‘बेहद असंवेदनशीलता' को दर्शाती है.
'जनहित के किसी उद्देश्य से प्रेरित नहीं है याचिका'
अदालत ने इस तथ्य पर भी गौर किया याचिका में शवों की पहचान स्थापित करने के लिये भारतीय और इराकी अधिकारियों द्वारा पीड़ितों के रिश्तेदारों से डीएनए नमूने लिये जाने और डीएनए प्रोफाइलिंग करके और उनका मिलान किये जाने जैसे कदमों का उल्लेख भी नहीं किया. अदालत ने कहा, ‘‘इसलिये याचिकाकर्ता प्रमुख तथ्यों को छिपाने का दोषी है.'' अदालत ने कहा, ‘‘हमारी राय में यह रिट याचिका जनहित के किसी उद्देश्य से प्रेरित नहीं है.''
याचिकाकर्ता पर लगाया जुर्माना
अदालत ने 31 पन्नों के अपने फैसले में कहा, ‘‘इन सभी कारणों से रिट याचिका एक लाख रुपये के जुर्माने के साथ खारिज की जाती है. जुर्माने की रकम आज से एक हफ्ते के अंदर दिल्ली हाई कोर्ट एडवोकेट वेलफेयर ट्रस्ट में जमा कराई जानी चाहिये.'' दरअसल एडवोकेट महमूद प्राचा ने अपनी याचिका में दावा किया था कि केंद्र सरकार को काफी समय से जानकारी थी कि मोसुल से अपहरण के बाद आतंकी संगठन ने भारतीयों की हत्या कर दी है, लेकिन उसने इसका खुलासा नहीं किया और यह कहते रही कि वे लोग जीवित हैं.
उन्होंने दावा किया था कि इस मामले पर संसद में विदेश मंत्री के दिये गए बयान में कई विरोधाभास थे. उन्होंने इन मौतों की जांच की मांग की थी क्योंकि वे जानना चाहते थे कि कब और कैसे इन भारतीयों की हत्या की गई.
प्राचा की दलीलों को खारिज करते हुए बेंच ने कहा कि उन्होंने भारतीयों की मौत को साबित करने की जिम्मेदारी विदेश मंत्री पर होने का दावा करके हास्यास्पद स्तर तक अपनी दलीलें दी हैं. अदालत ने कहा कि सामूहिक कब्र से शवों को खोदकर निकालने और भारतीय रिश्तेदारों के डीएनए प्रोफाइलिंग और उनका मिलान कराए जाने की सरकार की कोशिशों को देखते हुए मौजूदा मामले में यह दलील पूरी तरह से गलत है.
अदालत ने कहा, ‘‘भारत और इराक के विदेश मंत्रालय के भगीरथ प्रयासों के साथ-साथ जिस संवेदनशीलता के साथ भारतीय अधिकारियों ने इस बड़ी त्रासदी को संभाला यह सिर्फ उसकी वजह से संभव हो सका.'' अदालत ने कहा कि भारतीय प्रयासों को कलंकित करने के याचिकाकर्ता के कोशिशों की जोरदार निंदा की जानी चाहिये. अदालत ने भारत सरकार द्वारा इस संबंध में किये गए प्रयासों का सार्वजनिक खुलासा करने की भी याचिकाकर्ता की दलील खारिज कर दी.
(इनपुट: भाषा)
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