लोकसभा चुनाव के साथ ही पार्टियों के मेनिफेस्टो जारी करने का दौर भी शुरू हो चुका है. लेकिन मेनिफेस्टो तैयार करते वक्त अगर राजनीतिक पार्टियां जमीनी हकीकतों और किए जाने वाले वादों से जुड़े व्यावहारिक पहलुओं को ध्यान में रखें तो विकास का एजेंडा कायदे से सिरे चढ़ेगा. इसे आप राजनीतिक घोषणापत्रों का मेनिफेस्टो कह सकते हैं . जनता को ध्यान में रख कर बनाया जाने वाला मेनिफेस्टो इस तरह हो सकता है.
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- मुफ्त की रेवड़ियां बांटना छोड़ दीजिए : हर चुनाव से पहले राजनीतिक पार्टियां फ्री लैपटॉप, गोल्ड चेन बांटने का वादा कर वोटरों को लुभाने की कोशिश करती हैं. इससे सार्वजनिक संसाधन निजी संसाधनों और संपत्ति के तौर पर बर्बाद हो जाते हैं. सरकार के पास पैसा टैक्स और उधारी से आता है. वित्त आयोग को यह तय करना चाहिे कि सरकार मुफ्त की चीजें देने के लिए पैसा कहां से लाएगी. उसे यह तय करना होगा कि विकास की कीमत पर मुफ्त की रेवड़ियां नहीं बांटी जाएगी.
- खर्च पर रखें नजर हर मंत्रालय को खर्च और उससे हासिल रिजल्ट पर एक रिपोर्ट जारी करना चाहिए. स्कूल, हेल्थ सेंटर्स, सड़कों और हाईवे के किलोमीटर, हवाईअड्डे, सिंचाई और पावर प्रोजेक्ट पर डाटा तैया रखना चाहिए. इस संबंध में किए गए वादों की प्रगति कहां तक हुई है वह वेबसाइट पर दर्ज होना चाहिए. मसलन saubhagya.gov.in घरों में बिजली पहुंचने का रियल टाइम इनफॉरमेशन देती है. जब भी कोई योजना पूरी हो तो उसका पूरा ब्योरा जैसे इस पर कितना वक्त लगा, कितनी लागत थी. कितनी नौकरियां पैदा हुईं या इससे क्या फायदे हुए. मनी की मैपिंग बेहद जरूरी है.
- लास्ट माइलेज लिबरलाइजेशन : योजनाओं की लीकेज, लॉस और करप्शन को तुरंत बंद करें. मसलन पैदा होने वाली बिजली की हर पांचवीं यूनिट टेक्निकल और कॉमर्शियल लॉस की शिकार हो जाती है. देश में टीएंडडी लॉस सालाना 80 हजार करोड़ रुपये का है. पानी जैसे खत्म होने वाला संसाधन खूब बरबाद होता है. जबकि कई इलाकों में पानी और बिजली लोगों के घरों तक नहीं पहुंच पाती है. सरकार को बगैर लीकेज और चोरी के लोगों तक लास्ट माइल डिलीवरी सुनिश्चित करना चाहिए.
- विकास को डी-सेंट्रलाइज करें : हेल्थ, एजुकेशन, शहरीकरण और ग्रामीण विकास जैसी योजनाएं ढांचागत अक्षमता की शिकार हैं. ये योजनाएं केंद्र में बनती हैं और राज्यों में लागू होती हैं. राज्यों की पॉलिसी की डिजाइन और इन्हें लागू करने में काफी कम भूमिका होती है. राज्यों की जनता को ज्यादा सक्षम बनाने से उसका सशक्तिकरण भी होगा और उसकी जिम्मेदारी भी बढ़ेगी. ग्रासरूट डेमोक्रेसी से सरकार के वादे और प्रदर्शन में ज्यादा विश्वसनीयता आएगी.
- किसानों को कांट्रेक्ट फार्मिंग की आजादी दें : किसानों की मुक्ति की ओर पहला रास्ता होगा कांट्रेक्ट फार्मिंग. इससे किसानों की कर्ज, इंश्योरेंस, टेक्नोलॉजी, फसल चयन और बाजार तक पहुंच होगी. व्यक्तिगत तौर या संस्थागत तरीके से दोनों के जरिये एग्रो-एंटरप्राइज शुरू किए जाते हैं, जिसमें किसान अपनी जमीन और संसाधन मिलाकर साथ खेती कर सकती हैं. मार्केट तक उनकी पहुंच के लिए दूसरी अमूल क्रांति की जरूरत है. नए तरह के बाजार और ई-कॉमर्स प्लेयर को जुटा कर उन्हें अच्छी कीमत दिलाई जा सती है. वैकल्पिक खेती, सोलर पावर और ड्रिप सिंचाई से खेती को फायदेमंद बनाया जा सकता है.
- समस्याएं सुलझाइए, नौकरियां जरूर आएंगी : नौकरियां पैदा करना और उनकी गिनती एक कठिन सवाल बना हुआ है. लेकिन इसे लेकर सोच और इसका उद्देश्य. दरअसल रोजगार सृजन आपकी नीतियों का नतीजा हैं. ऐसी समस्याओं की कमी नहीं है, जिन्हें सुलझाया जाना है. चाहे ठोस कचरा प्रबंधन हो, पानी की समस्या, शहरीकरण या एग्रीकल्चर परामर्शन सेवा या फिर हेल्थकेयर के लिए मार्केट एक्सेस का मामला. अगर इन सेक्टर की समस्याएं सुलझाई गईं तो नौकरियां खुद-ब-खुद पैदा होंगी. जिन 3800 शहरों में जनगणना की गई है वहां अगर म्यूनिसिपल बॉडी बनाई जाएंतो 4 लाख नौकरियां पैदा होंगी.
- स्थानीय प्रशासन को राजनीतिक जकड़न से दूर रखें : स्थानीय प्रशासन को राज्यों का राजनीति की जकड़न से दूर करना होगा. इससे पुराने औपनिवेशिक ढांचे के मुक्त करना होगा. राजनीतिक दलों को विधानसभा या लोकसभा को टिकट देने से पहले स्थानीय निकायों में काम कराना होगा.
- कर्ज उतारने का ब्लूप्रिंट तैयार करें : 23 मई के बाद जो भी सरकार आएगी उसे दस लाख करोड़ का कर्ज उतारना होगा. इस साल सरकार अपने खर्च का एक चौथाई हिस्सा अपना कर्ज उतारने में ही देगी. केंद्र हर दिन कर्ज के एवज में 1822 रुपये ब्याज अदा करेगा. भारत के पब्लिक सेक्टर एंटरप्राइजेज और पब्लिक यूटिलिटीज के पास हजारों हेक्टेयर जमीन है. सरकार इस लैंड पूल का इस्तेमाल अपने कर्जे कम करने में कर सकती है
- न्याय देने की प्रक्रिया मॉडर्न बनाएं : पिछले दस साल में सुप्रीम कोर्ट में 56,994 केस पेंडिंग हैं. 49.83 लाख केस हाई कोर्ट में पेंडिंग हैं और 2.9 करोड़ केस पेंडिंग हैं. इस समस्या को दूर करने के लिए ज्यादा अदालतों, ज्यादा जज और न्याय दिलाने के लिए नए ढर्रे पर काम करना होगा. सरकार ही कई सेक्टरों में मुकदमों फंसी है. साफ है कि अब ज्यादा अच्छे कानूनों की जरूत है और नियम ऐसे हों कि न्याय को आसान बनाएं.
- पते की समस्या को सुलझाएं : भारत में 45.3 करोड़ लोग अपने घरों से दूर रहते हैं. आखिर उनकी पहचान का आधार क्या होगा. प्रवासी मजदूर और पीडीएस और बीपीएल कार्ड धारी सबसे ज्यादा पहचान की समस्या से पीड़ित हैं. आखिर उनकी पहचान कैसे होगी. पासपोर्ट से ईपीएफ/पीपीएफ , आधार, ड्राइविंग लाइसेंस, बैक अकाउंट, मोबाइल फोन सब्सक्रिप्शन , बैंक अकाउंट से. आज की तारीख में भारत की युवा आबादी कामकाज के सिलसिले में सबसे ज्यादा शहर और जगह बदलती है. लेकिन पते का संकट अब भी है. जबकि पूरी दुनिया में एक कम्यूनिकेश एड्रेस काफी है.
अगले कुछ सप्ताह के दौरान राजनीतिक पार्टियां अपने आइडिया पेश करेंगी. लिहाजा उन्हें ऊपर बताई गई समस्याओं और उन्हें खत्म करने के इन आइडिया पर गौर करने की जरूरत है.
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टॉपिक: रोजगार विकास मेनिफेस्टो
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