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खुशहाली इंडेक्स में भारत 131वें पायदान पर: UN रिपोर्ट

रिपोर्ट को एक कमीशन ने बुधवार 19 फरवरी को जारी किया था

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भारत
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संयुक्त राष्ट्र समर्थित एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत ने स्थिरता सूचकांक में 77वां स्थान हासिल किया है. ये सूचकांक पर कैपिटा कार्बन उत्सर्जन और किसी देश में बच्चों की सेहतमंद जिंदगी जीने की क्षमता को आंकता है. इसके अलावा खुशहाली सूचकांक में भारत 131वें पायदान पर रहा. इस इंडेक्स में पालन-पोषण की गुणवत्ता को मापा जाता है. साथ ही ये भी देखा जाता है कि उन्हें पलने-बढ़ने के कैसे मौके मिल रहे हैं.

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रिपोर्ट को एक कमीशन ने बुधवार 19 फरवरी को जारी किया था. इस कमीशन में दुनियाभर के बच्चों और किशोरों के 40 हेल्थ एक्सपर्ट शामिल हैं. इसे WHO, UNICEF और द लैंसेट मेडिकल जर्नल ने बनाया था. रिपोर्ट में 180 देशों की युवाओं का जीवित रहना सुनिश्चित करने की क्षमता आंकी गई थी.

स्थिरता सूचकांक में देशों को 2030 के टारगेट की तुलना में ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करने के लिए रैंक किया जाता है. रिपोर्ट में कहा गया कि दुनिया का सर्वाइवल बच्चों के फलने-फूलने की क्षमता पर निर्भर करता है.

रिपोर्ट कहती है कि कोई भी देश अपने बच्चों को स्थिर और टिकाऊ भविष्य देने के लिए पर्याप्त कोशिश नहीं कर रहा है.  

यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में ग्लोबल हेल्थ और सस्टेनेबिलिटी के प्रोफेसर और रिपोर्ट के एक प्रमुख लेखक एंथनी कॉस्टलो ने कहा, "दुनिया का कोई भी देश ऐसी परिस्थितियां नहीं दे रहा है, जो बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए जरूरी हैं. इसके उलट वो क्लाइमेट चेंज और कमर्शियल मार्केटिंग के खतरे में हैं."

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कौन सा देश टॉप पर?

सर्वाइवल, हेल्थ, शिक्षा और पोषण के मामले में नॉर्वे सबसे आगे है. इसके बाद साउथ कोरिया का नंबर आता है और फिर नीदरलैंड्स है. सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, चैड और सोमालिया सबसे नीचे हैं.

हालांकि, जब पर कैपिटा CO2 एमिशन को देखा जाए, तो ये टॉप देश काफी पीछे हैं. नॉर्वे 156वें, रिपब्लिक ऑफ कोरिया 166वें और नीदरलैंड्स 160वें पायदान पर हैं.

हानिकारक मार्केटिंग से बच्चों को खतरा

सबूत बताते हैं कि कुछ देशों में बच्चे एक साल में टेलीविजन पर लगभग 30,000 विज्ञापन देखते हैं. वहीं, युवाओं का ई-सिगरेट के विज्ञापनों तक पहुंच अमेरिका में पिछले दो सालों में 250 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ गई है.

जंक फूड और चीनी वाले पेय पदार्थों की कमर्शियल मार्केटिँग का भी बच्चौं पर बुरा असर पड़ रहा है. रिपोर्ट बताती है कि इस मार्केटिँग से हानिकारिक खाने की बिक्री बढ़ गई है, जिससे मोटापा बढ़ रहा है.

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