कोविड-19 महामारी के कारण भारत की आर्थिक गतिविधियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है.आज भारत सरकार की तरफ से जारी आंकड़े के अनुसार वित्त वर्ष 2019-20 में 4% की ग्रोथ के मुकाबले, वित्त वर्ष 2020-21 में GDP ग्रोथ -7.3% तक गिर गई . इसके बावजूद विभिन्न रेटिंग एजेंसियों ने यह अनुमान लगाया है कि वित्त वर्ष 2021-22 में भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेजी से आगे बढ़ेगी.
वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था पूरे वित्तीय वर्ष 21-22 के लिये 10% ग्रोथ रेट की ओर बढ़ रही है. यह विश्लेषण ब्लूमबर्ग न्यूज ने 12 विभिन्न संस्थाओं द्वारा भारत की GDP ग्रोथ को लेकर किये गये पूर्वानुमानों का औसत निकाल कर किया है. 11 मई को संयुक्त राष्ट्र ने भी भविष्यवाणी की थी कि इस वित्तीय वर्ष विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में भारत की अर्थव्यवस्था 10.1% ग्रोथ के साथ सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था होगी.
12 संस्थाओं द्वारा अनुमानित भारतीय GDP ग्रोथ का विश्लेषण
ब्लूमबर्ग न्यूज ने भारतीय अर्थव्यवस्था के GDP ग्रोथ का पूर्वानुमान लगाने वाली 12 संस्थाओं के आंकड़ों का औसत निकाला है. अधिकतर रेटिंग एजेंसियों ने कोरोना की दूसरी लहर से प्रभावित भारतीय अर्थव्यवस्था के मद्देनजर अपने GDP ग्रोथ पूर्वानुमानों में कटौती की थी. इसके बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था में इस वित्तीय वर्ष लगभग 10% ग्रोथ का अनुमान है.
ब्लूमबर्ग से जुड़े अर्थशास्त्री अभिषेक गुप्ता ने कहा कि "पिछले 1 महीने में स्टेट-लेबल लॉकडाउन से हमारे द्वारा अनुमानित ग्रोथ रेट पर और ज्यादा नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है. लेकिन इसका संदेश साफ है कि अर्थव्यवस्था में सुधार को गंभीरता से लेने की जरूरत है."
"अर्थशास्त्रियों का कहना है कि राज्यों में लॉकडाउन में ढिलाई यह तय करेगी कि अर्थव्यवस्था में सुधार कैसी होगी. किसके साथ साथ उपभोक्ताओं में खर्च करने की तत्परता भी एक महत्वपूर्ण फैक्टर होगा."अर्थशास्त्री अभिषेक गुप्ता
अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव की वजह
RBI ने इससे पहले मई में ही कहा कि कोरोना महामारी की दूसरी लहर का सबसे ज्यादा प्रभाव मांग पर पड़ा है, जिसका कारण है लोगों की आवाजाही पर रोक,गैर-जरूरी वस्तुओं की मांग में कमी और घटते रोजगार.
अप्रैल महीने में 'द इकोनॉमिक्स टाइम्स' के अनुसार गैर-जरूरी वस्तुओं की मांग में कोविड-19 संबंधित प्रतिबंधों के कारण 50% की गिरावट आई थी. इसका सबसे बड़ा कारण स्थानीय लॉकडाउन और आवाजाही पर प्रतिबंध रहा.
मांग में कमी का एक और कारण कंज्यूमर कॉन्फिडेंस में लगातार होती कमी है.Refinitiv-Ipsos के PCSI सर्वे के अनुसार अप्रैल 2021 में शहरी भारतीय उपभोक्ताओं के कंज्यूमर कॉन्फिडेंस में 1.1 परसेंट प्वाइंट की कमी हुई.
दूसरी तरफ रोजगार के मोर्चे पर कोरोना महामारी का नकारात्मक प्रभाव दिख रहा है. मुंबई बेस्ड थिंक टैंक 'सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी'(CMIE) के आंकड़ों के अनुसार मई महीने में बेरोजगारी दर लगभग 10% रही.बढ़ती बेरोजगारी के कारण ग्रामीण एवं शहरी, दोनों मांगों में कमी आई है. इससे भारतीय अर्थव्यवस्था के ग्रोथ रेट पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है
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