रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukrain War) की वजह से पूरी दुनिया में गेहूं (Wheat) को लेकर हाहाकार मचा हुआ है. इस बीच तुर्की (Turkey) ने भारत की गेहूं की खेप को लौटा दिया है. तुर्की के बाद मिस्र ने भी भारतीय गेंहू लेने से मना कर दिया है. ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर भारतीय गेहूं को ये देश क्यों लौटा रहे हैं?
तुर्की ने क्या कहा था?
बता दें, तुर्की ने भारतीय गेहूं में रूबेला वायरस (rubella virus) पाए जाने की शिकायत को लेकर इस खेप को लेने से मना कर दिया था. तुर्की की ओर से भारतीय गेहूं की खेप को तब लौटाया गया है, जब वह रूस और यूक्रेन से गेहूं मंगाने की योजना पर काम रहा है. जिसके बारे में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जानकारी सार्वजनिक है. जानकारी के मुताबिक तुर्की अब रूस और यूक्रेन से एक कोरिडोर के जरिए गेहूं मंगवाने पर बातचीत कर रहा है. माना जा रहा है की तुर्की की यह बातचीत अंतिम चरण पर पहुंच गई है. जिसके बाद उसने भारत के गेहूं को ना कहा है.
तुर्की की ओर से भारतीय गेंहू को लौटाए जाने के बाद इसे मिस्र भेज दिया गया. लेकिन, रॉयटर्स ने मिस्र (Egypt) के प्लांट क्वारंटीन चीफ अहमद अल अत्तर के हवाले से खबर दी कि 55,000 टन गेहूं को लेकर आ रहे जहाज को मिस्र में प्रवेश करने से पहले ही मना कर दिया गया.
हालांकि, तुर्की को भेजी गई गेहूं की खेप सीधे भारत से निर्यात नहीं की गई थी. इसे भारतीय कंपनी आईटीसी लिमिटेड (ITC Limited) ने नीदरलैंड स्थित एक कंपनी को बेच दिया था. उसके बाद ये तुर्की पहुंचा था. बाद में खबर आई कि इस खेप को मिस्र के एक व्यापारी ने खरीदा है और जहाज अब गेहूं को लेकर इस अफ्रीकी देश की ओर रवाना हो गया है. लेकिन, रॉयटर्स ने खबर दी कि मिस्र ने भी इस गेहूं को 'नो एंट्री' का बोर्ड दिखा दिया है.
दरअसल, भारत ने पिछले महीने गेहूं के एक्सपोर्ट पर बैन लगा दिया था. ऐसे में अब भारत विदेशों में गेहूं को नहीं बेचेगा. सरकार ने इसके लिए भारत और पड़ोसी देशों में फूड सिक्योरिटी का हवाला दिया था. सरकार ने देश में गेहूं और आटे की बढ़ती कीमतों को काबू में करने के लिए यह कदम उठाया था.
गेहूं पैदावार में कमी भी कारण
गेंहू के निर्यात पर रोक की एक वजह पैदावार भी रही. इस बार गेहूं की पैदावार में कमी का सबसे बड़ा कारण मौसम है. मार्च से हीटवेव स्टार्ट हो गई, जबकि मार्च में गेहूं के लिए 30 डिग्री से ज्यादा टेम्परेचर नहीं होना चाहिए. इस बार मार्च में कई बार तापमान 40 डिग्री को पार कर गया. इससे गेहूं समय से पहले ही पक गया और दाने हल्के हो गए. इसका असर यह हुआ कि गेहूं की पैदावार 25 फीसदी तक घट गई. पैदावार कम होने से भारत में गेहूं की कीमतें अपने उच्चतम स्तर पर चली गई. ऐसे में आटे की कीमतें भी आसमान छूने लगीं.
ऐसे में सरकार ने कहा है कि अब सिर्फ उसी निर्यात को मंजूरी मिलेगी जिसे पहले ही लेटर ऑफ क्रेडिट जारी हो चुका है. वहीं, उन देशों को भी इसकी सप्लाई की जा सकेगी, जिन्होंने भोजन सुरक्षा की जरूरत को पूरा करने के लिए सप्लाई की अपील की है.
इसके बाद भारत के इस कदम का G-7 देशों ने विरोध किया. जर्मनी के कृषि मंत्री केम ओजडेमिर ने कहा कि इससे दुनियाभर में खाद्य संकट पैदा होगा. G-7 देशों में कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, UK और अमेरिका शामिल हैं. G-7 देशों के एग्रीकल्चर मिनिस्टर्स भारत से गेहूं एक्सपोर्ट पर बैन नहीं लगाने की मांग की.
हालांकि, G-7 देशों के विरोध पर चीन ने भारत का बचाव किया. चीन ने कहा कि भारत जैसे विकासशील देशों को दोष देने से ग्लोबल फूड शॉर्टेज का समाधान नहीं होगा.
रूस-यूक्रेन युद्ध का असर
दुनिया में गेहूं का एक्सोपोर्ट करने वाले टॉप 5 देशों में रूस, अमेरिका, कनाडा, फ्रांस और यूक्रेन हैं. इसमें से 30 फीसदी एक्सपोर्ट रूस और यूक्रेन से होता है. रूस-यूक्रेन युद्ध से ना सिर्फ गेहूं के उत्पादन पर असर पड़ा, बल्कि एक्सपोर्ट पूरी तरह से बंद हो गया.
यूक्रेन के पोर्ट पर रूसी सेना की घेराबंदी है और बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ ही अनाजों के स्टोर युद्ध में तबाह हो गए हैं. रूस का आधा गेहूं मिस्र, तुर्की और बांग्लादेश खरीदते हैं. जबकि, यूक्रेन का गेहूं मिस्र, इंडोनेशिया, फिलीपींस, तुर्की और ट्यूनीशिया में जाता था. अब इन दोनों देशों से सप्लाई बंद है. ऐसे में भारत के गेहूं की मांग दुनिया में बढ़ गई है. नतीजा ये हुआ कि गेहूं का एक्सपोर्ट भी इस बार रिकॉर्ड स्तर पर हुआ.
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