साईं बाबा के 'जन्मस्थान' को लेकर जारी विवाद और मतभेदों के बीच कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. एक तरफ शिरडी के स्थानीय लोगों और नेताओं ने पाथरी को साईं बाबा का जन्मस्थान बताने पर विरोध जताते हुए दावा किया है कि उनका जन्मस्थान और उनका धर्म अज्ञात है. वहीं दूसरी ओर, महाराष्ट्र की उद्धव सरकार के अपने तर्क-वितर्क हैं.
ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि पाथरी को साईं बाबा का जन्मस्थान बताने के दावे का आधार क्या है? क्या यह पूरी तरह आस्था पर आधारित है, या फिर ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर ये दावे किए जा रहे हैं?
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने सोमवार को शिरडी के प्रतिनिधियों से मुलाकात की, जो साईं बाबा के जन्मस्थान के तौर पर परभनी जिले में पाथरी को पर्यटन स्थल के रूप[ में विकसित करने के सरकार के फैसले से नाराज हैं. शिरडी के विधायक राधाकृष्ण विखे पाटिल ने कहा कि बैठक "सकारात्मक" थी, और इस पूरे मुद्दे पर विरोध वापस ले लिया जाएगा.
क्या कहते हैं पाथरी से सम्बंधित रिकॉर्ड्स?
इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक 1975 में शिरडी में एक साईं भक्त और मंदिर ट्रस्ट के पूर्व ट्रस्टी वीबी खेर ने ऐलान किया कि यह "संभावित" था कि 19 वीं शताब्दी के संत साईं बाबा का जन्म पाथरी में एक यजुर्वेदी देशस्थ ब्राह्मण परिवार में हुआ था. वे परशुराम भुसारी के पांच बेटों में से एक थे. 1978 में एक ट्रस्ट, 'श्री साईं स्मारक समिति' को पाथरी में उस जगह पर साईं बाबा का मंदिर बनाने के लिए स्थापित किया गया, जिस जगह के बारे में कुछ लोगों का मानना
था कि उनका जन्म यहां हुआ था.
दरअसल, साईं बाबा पर लिखे गए कई आधिकारिक और लोकप्रिय लेख या तो सीधे तौर पर पाथरी को उनके संभावित जन्मस्थान के रूप में उल्लेख करते हैं, या अनुमान लगाते हैं कि ये जगह उनका जन्मस्थान रहा होगा. इनमें से कुछ तो बाबा को व्यक्तिगत तौर पर जानने वालों ने लिखे थे, या ऐसे लोगों की कही हुई बातों का जिक्र किया गया था.
कहा जाता है कि बाबा 1872 में शिरडी आए थे, जहां वे 15 अक्टूबर 1918 को महासमाधि (निधन) लेने तक रहे थे.
'श्री साईं सतचरित्र' में पाथरी का जिक्र
साईं बाबा की जीवनी 'श्री साईं सतचरित्र' की प्रस्तावना लिखते हुए हरि सीताराम दीक्षित उर्फ काकासाहेब ने पाथरी का जिक्र किया है. गोविंद रघुनाथ दाभोलकर उर्फ हेमदपंत द्वारा मराठी कविता में लिखी गई श्री साईं सतचरित्र, साईं बाबा की पहली जीवनी थी, जिसे 'साईं लीला' पत्रिका में क्रमवार तरीके से छापा गया. दीक्षित और दाभोलकर दोनों ही बाबा के करीबी सहयोगी और भक्त थे.
1923 में छपी इस किताब की प्रस्तावना में एक जगह कहा गया है- "श्री साईंनाथ महाराज करीब 50 साल पहले शिरडी आए थे. शिरडी अहमदनगर जिले के राहता तालुका में मौजूद है. उनके जन्मस्थान और उनके पालन-पोषण के स्थान की कोई विश्वसनीय जानकारी नहीं है. हालांकि, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि निजाम के राज्य के साथ उसके कुछ संबंध थे.
बाबा की बातचीत में, सेलु, जालना, मनवत, पाथरी, परभणी, औरंगाबाद, भीर और बेदार जैसी जगहों के संदर्भ थे. एक बार पाथरी से एक व्यक्ति साईं बाबा के दर्शन के लिए शिरडी आया था. साईं बाबा ने वहां के कई प्रमुख व्यक्तियों के नाम लेकर उनका हालचाल पूछा. इससे विश्वास हो जाता है कि उन्हें पाथरी का विशेष ज्ञान था. हालांकि, यह सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है कि वे वहां पैदा हुए थे.
बाबा के ‘बड़े प्रचारक’ बी वी नरसिम्हास्वामी ने अपनी किताब में लिखा है कि जब भी बाबा से उनके पैतृक स्थान के बारे में सवाल किए जाते, तो वे हमेशा रहस्यमयी जवाब देते थे. हालांकि किताब में म्हालसापती नाम के एक सुनार, जो बाबा के शुरुआती भक्तों में से एक थे, की कही हुई बात का हवाल देते हुए लिखा गया है कि एक बार बाबा ने उन्हें (म्हालसापती को) बताया था कि उनके माता-पिता “निजाम के राज्य में मौजूद पाथरी में ब्राह्मण थे.”
जब की गई पाथरी की पड़ताल
वीबी खेर पहले व्यक्ति थे जिन्होंने कुछ हद तक साईं बाबा के जन्मस्थान के रहस्य का समाधान करने का दावा किया था. उन्होंने पाथरी में एक परिवार से मुलाकात की थी, जिसके बारे में उनका मानना
था कि इस परिवार के पूर्वजों के संबंध 'शायद' साईं बाबा से थे. खेर ने यहां काफी रिसर्च की थी.
जून 1975 में खेर पाथरी पहुंचे और स्थानीय लोगों का इंटरव्यू लिया. उन्होंने बाबा के ब्राह्मण परिवार में पैदा होने के बारे में मौजूद किस्सों के बारे में बताया और कहा कि जब बाबा छोटे बच्चे थे, तो उन्हें एक मुस्लिम वली अपने साथ ले गए थे. स्थानीय ब्राह्मण समुदाय के बुजुर्गों ने खेर से कहा कि उनका मानना है कि बाबा का जन्म पाथरी के वैष्णव गली में भुसारी परिवार में हुआ था.
खेर जब उस जगह पर पहुंचे तो उन्हें घर की जगह एक खाली खंडहर मिला. लेकिन वे उस परिवार के एक सदस्य रघुनाथ भुसारी से संपर्क करने में कामयाब रहे, जो हैदराबाद के उस्मानिया यूनिवर्सिटी में मराठी के प्रोफेसर के पद से रिटायर हुए थे.
प्रोफेसर भुसारी ने खेर को अपनी तीन पीढ़ियों के वंश-वृक्ष के बारे में बताया. उनमें से वे एक व्यक्ति के नाम तक पहुंचे, जो साईं बाबा के संभावित पिता हो सकते थे. भुसारी ने खेर से कहा कि उन्होंने अपनी दादी से सुना है कि उनके परदादा परशुराम के पांच बेटों में से तीन ने बहुत कम उम्र में घर छोड़ दिया था. उनमें से एक "हरिभाऊ", ईश्वर की खोज में घर से निकल गए थे.
क्या 'हरिभाऊ' ही थे साईं बाबा?
खेर ने अपनी पड़ताल के आधार पर लिखा है, “क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हरिभाऊ भुसारी साईं बाबा थे? ये थ्योरी संभव है. मैंने एक अनुभवी वकील और एक प्रतिष्ठित इतिहासकार के साथ संयुक्त रूप से इस पर चर्चा की और दोनों ने सहमति जताई कि ऐसा हो सकता है. मैं आगे कुछ भी जोड़ना नहीं चाहता, मैं इस बात को पाठकों के लिए छोड़ देता हूं."
बाद में, खेर और पाथरी निवासी दिनकर चौधरी ने भुसारी परिवार के उस खंडहर बन चुके घर को खरीद लिया और श्री साई स्मारक समिति की स्थापना की. ट्रस्ट ने उस साइट पर एक मंदिर बनाया, जिसका उद्घाटन 1999 में किया गया.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)