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चंद्रयान-2: क्या है ‘प्रज्ञान’ रोवर? जानिए इसकी खास बातें 

6 पहिए वाला रोवर ‘प्रज्ञान’ एक रोबोटिक व्हीकल है

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भारत अपने दूसरे चंद्र मिशन चंद्रयान-2 के जरिए नया मुकाम हासिल करने वाला है. चंद्रयान-2 का लैंडर ‘विक्रम’ शनिवार तड़के चांद की सतह पर ऐतिहासिक ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने के लिए तैयार है. विक्रम’ को 6 और 7 सितंबर की दरम्यानी रात 1 बजे से 2 बजे के बीच चांद की सतह पर उतारने की प्रक्रिया की जाएगी और यह रात 1:30 से 2:30 बजे के बीच चांद पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करेगा. लैंडर के चांद पर उतरने के बाद 7 सितंबर की सुबह 5:30 बजे से 6:30 बजे के बीच इसके भीतर से रोवर ‘प्रज्ञान’ बाहर निकलेगा और अपने वैज्ञानिक प्रयोग शुरू करेगा.

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रोवर प्रज्ञान से जुड़ी खास बातें

  • 6 पहिए वाला रोवर 'प्रज्ञान' एक रोबोटिक व्हीकल है
  • 'प्रज्ञान' का वजन 27 किलोग्राम है
  • 'प्रज्ञान' के पास 50 W इलेक्ट्रिक पावर जनरेट करने की क्षमता है
  • यह चलने के लिए सौर ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकता है
  • 'प्रज्ञान' 500 मीटर तक चल सकता है
  • यह केवल लैंडर के साथ ही कम्युनिकेट कर सकता है
  • 'प्रज्ञान' रोवर में दो पेलोड्स हैं- अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर और लेजर इंडक्टेड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप
  • ‘प्रज्ञान’ एक चंद्र दिन यानी कि धरती के 14 दिन के बराबर काम करेगा
  • प्रज्ञान का मतलब होता है- विवेकी या 'ज्ञानवान'

क्यों खास साबित हो सकते हैं प्रज्ञान के एक्सपेरीमेंट

  • प्रज्ञान चांद के दक्षिणी धुव्रीय क्षेत्र पर एक्सपेरीमेंट करेगा.
  • इसरो के मुताबिक, यह क्षेत्र बेहद रुचिकर है क्योंकि यह उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र के मुकाबले काफी बड़ा है और अंधकार में डूबा रहता है.
  • चांद पर स्थायी रूप से अंधकार वाले क्षेत्रों में पानी मौजूद होने की संभावना है.
  • यहां ऐसे गड्ढे हैं जहां कभी धूप नहीं पड़ी है. इन्हें ‘कोल्ड ट्रैप’ कहा जाता है और इनमें पूर्व के सौर मंडल का जीवाश्म रिकॉर्ड मौजूद है.
  • चंद्रयान-1 के जरिए चांद की सतह पर पानी की मौजूदगी का साक्ष्य पहले ही जुटाने वाले इसरो की योजना अब नए मिशन के जरिए वहां जल की उपलब्धता के वितरण और उसकी मात्रा के बारे में पता कर प्रयोगों को आगे बढ़ाने की है.
चांद की सतह, वायुमंडलीय संरचना, भौतिक स्वभाव और भूकंपीय गतिविधियों के बारे में जानकारी जुटाने के लिए लैंडर और रोवर में कुल 5 तरह के उपकरण मौजूद हैं.
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इसरो चंद्रयान-2 के लैंडर और रोवर को लगभग 70 डिग्री दक्षिणी अक्षांश में दो गड्ढों ‘मैंजिनस सी’ और ‘सिंपेलियस एन’ के बीच एक ऊंचे मैदानी इलाके में उतारने की कोशिश करेगा. उसे अगर विक्रम की ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ में सफलता मिलती है तो रूस, अमेरिका और चीन के बाद भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा और चांद के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन जाएगा.

ये भी देखें- चंद्रयान-2 लैंडिंग: PM के साथ ये छात्र बनेंगे ऐतिहासिक पल के गवाह

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