बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) की जज जस्टिस पुष्पा वी गनेडीवाला (Justice Pushpa V Ganediwala), जिन्होंने एक नाबालिग के यौन उत्पीड़न में 'नो स्किन टू स्किन कॉनटेक्ट' (No Skin To Skin Contact) के फैसले जैसे विवादित आदेश दिए उन्हें बड़ा झटका लगा है.
एनडीटीवी ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि उन्हें स्थायी जज नहीं बनाया जाएगा. ये दूसरी बार है जब सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने हाई कोर्ट के जज के रूप में उनके प्रमोशन को खारिज कर दिया है.
इसका मतलब है कि जस्टिस गनेडीवाला, जो फिल्हाल बॉम्बे हाई कोर्ट में एक अस्थायी जज हैं, फरवरी में अपना कार्यकाल समाप्त होने पर अपने जिला जज पद पर लौट आएंगी.
सरकार ने वापस ले ली थी स्थायी नियुक्ति की सिफारिश
इस साल की शुरुआत में, केंद्र ने जस्टिस गनेडीवाला को सेवा विस्तार दिया था, लेकिन सामान्य दो साल की अवधि को घटाकर एक कर दिया था.
बॉम्बे हाई कोर्ट के जज के रूप में उनकी स्थायी नियुक्ति की सिफारिश सरकार ने वापस ले ली थी. सुप्रीम कोर्ट के सूत्रों ने तब एनडीटीवी को बताया था कि जस्टिस गनेडीवाला को ऐसे मामलों में "अधिक एक्सपोजर" की जरूरत है.
एक सूत्र ने एनडीटीवी को बताया, "उसके खिलाफ कुछ भी व्यक्तिगत नहीं है. बस एक्सपोजर की जरूरत है और हो सकता है कि जब वो वकील थीं तो इस तरह के मामलों को नहीं निपटाती थीं. उन्हें एक्सपोजर और ट्रेनिंग की जरूरत होती है."
दिया था स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट का विवादित फैसला
19 जनवरी के एक फैसले में, जस्टिस गनेडीवाला ने उस समय सबको हैरान कर दिया जब उन्होंने फैसला सुनाया कि "त्वचा से त्वचा के संपर्क" के बिना नाबालिग के स्तन को टटोलना यौन उत्पीड़न के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता है, जैसा कि यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत परिभाषित किया गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने 18 नवंबर को इसके खिलाफ कई याचिकाओं के बाद फैसला रद्द कर दिया था, जिसमें अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और राष्ट्रीय महिला आयोग शामिल थे. बाद में, एक अन्य मामले में, जज गनेडीवाला ने विवादास्पद रूप से फैसला सुनाया कि "अभियोक्ता का हाथ पकड़ना' (महिला पीड़ित), या 'पैंट की खुली जिप' ... 'यौन हमले' की परिभाषा में फिट नहीं है," और POCSO या यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण के तहत एक व्यक्ति की सजा को रद्द कर दिया.
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