भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कलकत्ता हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश, जस्टिस राजेश बिंदल (Justice Rajesh Bindal) को इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) का मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice) नियुक्त किया है.
कलकत्ता HC में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में रोस्टर मैनेजमेंट और अपीलीय पक्ष नियमों के कथित उल्लंघन के कारण विवादों में रहे जस्टिस राजेश बिंदल के अलावा 7 अन्य जजों को भी विभिन्न हाई कोर्टों के मुख्य न्यायधीश के रूप में नियुक्त किया गया है.
कौन हैं इलाहाबाद HC के नए मुख्य न्यायधीश, जस्टिस राजेश बिंदल ?
05 जनवरी 2021 से कलकत्ता हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यरत, जस्टिस राजेश बिंदल ने 1985 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से एलएलबी पूरा किया. 60 वर्षीय जस्टिस बिंदल ने सितंबर 1985 में पंजाब और हरियाणा के हाई कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की.
उन्होंने 1992 से लेकर अपने प्रमोशन (2006) तक हाई कोर्ट और केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यून के सामने कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के पंजाब और हरियाणा क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व किया.
उन्हें 22 मार्च, 2006 को पंजाब और हरियाणा के हाई कोर्ट के जज के रूप में प्रमोट किया गया था. पंजाब और हरियाणा हाई कोर्टमें अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने लगभग 80,000 मामलों का निपटारा किया.
जम्मू और कश्मीर हाई कोर्ट में ट्रांसफर के बाद उन्होंने 19 नवंबर, 2018 को वहां जज के पद की शपथ ली. 5 जनवरी 2021 को जस्टिस राजेश बिंदल ने कलकत्ता हाई कोर्ट के जज के रूप में शपथ ली. 29 अप्रैल 2021 को उन्हें कलकत्ता हाई कोर्ट का कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया.
कलकत्ता HC में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यकाल विवादों में
कलकत्ता HC में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में जस्टिस राजेश बिंदल का कार्यकाल विवादों में रहा. जहां उनके साथी जजों ने उन पर रोस्टर मैनेजमेंट और अपीलीय पक्ष नियमों के कथित उल्लंघन का आरोप लगाया था.
पश्चिम बंगाल के बार काउंसिल ने 27 जून को भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना को लेटर लिखकर जस्टिस राजेश बिंदल को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश पद से हटाने की मांग की थी. बार काउंसिल ने आरोप लगाया था कि वह कुछ प्रमुख मामलों की सुनवाई में "पक्षपात" करते हैं.
CJI को लिखे लेटर में नारद स्टिंग ऑपरेशन मामले की सुनवाई में विसंगतियों का आरोप लगाया गया था. उसमें कहा गया था कि जस्टिस बिंदल ने पीड़ित पक्षों को सुनवाई का अवसर दिए बिना "कुछ राजनीतिक कारणों" से सीबीआई के विशेष अदालत द्वारा पारित अंतरिम जमानत आदेश पर रोक लगा दी.
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