ADVERTISEMENTREMOVE AD

हिंसा पर कवरेज के लिए Editors Guild की अपील-TRP के लिए नफरत न फैलाएं न्यूज चैनल

सांप्रदायिक हिंसा के मामले और टीवी चैनलों पर उसके कवरेज को लेकर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने कड़ी प्रतिक्रिया दी

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

देश में बढ़ते सांप्रदायिक हिंसा के मामले और टीवी चैनलों पर उसके कवरेज को लेकर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (The Editors Guild of India) ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. एडिटर्स गिल्ड ने पैगंबर मोहम्मद विवाद और कानपुर हिंसा को लेकर देश के राष्ट्रीय चैनलों के कवरेज पर सवाल उठाया है साथ ही मामले की निंदा भी की है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
एडिटर्स गिल्ड की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि, "एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया कुछ राष्ट्रीय समाचार चैनलों के गैर-जिम्मेदाराना आचरण से परेशान है, जो जानबूझकर ऐसे हालात पैदा कर रहे हैं जिससे कमजोर समुदायों के प्रति नफरत फैलाकर निशाना बनाया जा रहा है."

'बेइज्जती से बचा जा सकता था'

एडिटर्स गिल्ड (EGI) की ओर से जारी बयान में आगे कहा गया है कि अगर देश के कुछ टीवी चैनल धर्मनिरपेक्षता के प्रति देश की संवैधानिक प्रतिबद्धता के साथ-साथ पत्रकारिता की नैतिकता और दिशा-निर्देशों के प्रति जागरूक होते तो देश को अनावश्यक शर्मिंदगी से बचाया जा सकता था.

आपको बता दें कि, पैगंबर मोहम्मद पर बीजेपी प्रवक्ता नूपुर शर्मा की कथित विवादास्पद टिप्पणी के बाद भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विरोध का सामना करना पड़ा है. कई मुस्लिम देशों ने भारत के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया दी है. अब तक करीब 15 देशों ने इस मामले में अपना विरोध जताया है.

टीवी चैनलों की 'रेडियो रवांडा' से तुलना

एडिटर्स गिल्ड (EGI) ने अपने बयान में कुछ टीवी चैनलों की तुलना 'रेडियो रवांडा' से की है. बयान में कहा गया है कि, "कुछ चैनल व्यूअरशिप बढ़ाने और प्रॉफिट कमाने के लिए रेडियो रवांडा के मूल्यों से प्रेरित थे, जिसकी वजह से अफ्रीकी देशों में नरसंहार हुए थे."

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, रवांडा नरसंहार के दौरान जिन प्रमुख लोगों को मारा जाना था उनके नाम रेडियो पर प्रसारित किए गए. 100 दिन के इस नरसंहार में लगभग 8 लाख तुत्सी और उदारवादी हूतू मारे गए थे.

टीवी चैनलों से आत्मचिंतन की अपील

ताजा सांप्रदायिक मामलों को लेकर एडिटर्स गिल्ड ने टीवी चैनलों से आत्मचिंतन और समीक्षा करने की अपील की है. इसके साथ ही गिल्ड ने इस तरह की घटनाओं पर रोक लगाने के लिए मीडिया संस्थानों से कड़ी नजर रखने की भी मांग की है. बयान में कहा गया है कि, "मीडिया की जिम्मेदारी संविधान और कानून को बनाये रखने की है, न की गैरजिम्मेदारी और जवाबदेही के अभाव में उसे तोड़ने की है."

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×