करवाचौथ महिलाओं का वो खास त्योहार जिस दिन वो अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं. पूरे दिन महिलाएं बिना कुछ खाए-पीए दिनभर व्रत रखती हैं और शाम को चांद देखकर अपना व्रत तोड़ती हैं. इस बार करवाचौथ 8 अक्टूबर यानी रविवार को है. क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त हम आपको बताते हैं.
संकष्टी गणेश चतुर्थी को ही करक चतुर्थी या करवाचौथ कहते हैं. पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 6 बजे से सात बजे तक का है. वहीं चंद्रोदय का समय रात 7 बजकर 51 मिनट पर है. यानी महिलाएं 7.51 मिनट पर चांद का दीदार कर अपना व्रत तोड़ सकती हैं.
अखंड सौभाग्य के लिए की जाती है चंद्रमा की पूजा
पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य के लिए इस दिन चंद्रमा की पूजा की जाती है. चंद्रमा के साथ- साथ भगवान शिव, पार्वती जी, श्रीगणेश और कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है.
कैसे हुई थी करवाचौथ की शुरुआत
वैसे तो करवाचौथ को लेकर कई कहानियां है, एक कहानी है ये है कि जब सत्यवान की आत्मा को लेने के लिए यमराज आए तो सावित्री ने उनसे अपने पति सत्यवान के प्राणों की भीख मांगी और अपने सुहाग को बचाने की गुजारिश करने लगीं. जब यमराज नहीं माने तब सावित्री ने खाना-पीना छोड़ दिया और वो अपने पति के शरीर के पास रोने लगीं. पतिव्रता सावित्री के इस विलाप से यमराज भी विचलित हो गए. यमराज ने सावित्री से कहा कि अपने पति सत्यवान के जीवन के अलावा कोई और चीज मांग लो.
सावित्री ने यमराज से कहा कि आप मुझे कई संतानों की मां बनने का वरदान दें, जिसे यमराज ने हां कह दिया. सावित्री को वरदान देने के बाद अपने वचन में बंधे यमराज ने सत्यवान को जीवनदान दे दिया. कहा जाता है कि तबसे शादीशुदा महिला अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखने लगीं, जिसे हम करवाचौथ के नाम से जानते हैं.
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कैसे मनाते हैं करवाचौथ?
महिलाएं व्रत की शुरुआत सूर्योदय से पहले ही करती हैं. सूरज निकलने से पहले उठकर सरगी खाई जाती है. ये सरगी खासतौर पर सास तैयार करती हैं. उसके बाद महिलाएं दिनभर बिना कुछ खाए और बिना पानी पीए रहती हैं. चांद निकलने के बाद महिलाएं चांद के सामने छलनी से अपने पति का चेहरा देखती हैं और चांद की पूजा करती हैं. उसके बाद पति अपने हाथों से पानी पिलाकर व्रत तोड़ता है.
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