भारतीय सेना के दो जवान और एक अधिकारी गलवान घाटी में चीन के साथ हुई हिंसक झड़प में शहीद हो गए हैं. ऐसी खबरें भी हैं कि चीन के भी सैनिक मारे गए हैं. हालांकि चीन को हुए नुकसान का पुख्ता आंकड़ा सामने नहीं आया है.
भारतीय सेना के बयान के मुताबिक झड़प पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर तनाव कम करने की प्रक्रिया के समय हुई. 5-6 मई की रात से पैंगोंग सो में भारत और चीन के सैनिकों के बीच तनाव बढ़ने के बाद से सीमा पर स्थिति नाजुक बनी हुई है. भारत और चीन के उच्च सैन्य अधिकारी जून के शुरुआत में इस तनाव को कम करने के लिए मुलाकात भी कर चुके हैं.
पिछले चार दशकों से भारत और चीन के बीच ऐसी कोई खूनी संघर्ष नहीं हुआ है, जिसमें किसी भी देश को जान का नुकसान हुआ हो. गलवान घाटी में हुई झड़प ने 40 साल से ज्यादा के ट्रेंड को तोड़ दिया है.
पूर्वी लद्दाख के गलवान में अचानक हिंसक हुए तनाव से 1975 में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर हुई झड़प की याद आती हैं.
1975 में बॉर्डर पर हुई थी गोलीबारी
1975 में भारत के चार जवान उस समय शहीद हो गए थे, जब अरुणाचल प्रदेश के तुलुंग ला में असम राइफल्स के जवानों का सामना घात लगाए बैठे चीनी सैनिकों से हुआ.
हालांकि ऐसा माना जाता है कि 1967 में भारत और चीन के बीच हुई झड़प में दोनों देशों के बीच की सीमा पर आखिरी बार गोली चली थी.
1967 में 800 से ज्यादा भारतीय और करीब 400 चीनी सैनिकों के मारे जाने का अनुमान है.
इसलिए ये दोनों देशों के बीच एक बड़े स्तर पर युद्ध की आखिरी घटना हो सकती है, लेकिन भारत-चीन सीमा पर आखिरी बार गोली चलने का वाकया 1967 का नहीं है.
द हिंदू के मुताबिक 1975 की झड़प पर पूर्व विदेश सचिव और चीन में राजदूत रह चुकीं निरुपमा राव कहती हैं,
हम अधिकतर 1967 को याद रखते हैं, लेकिन ये कहना कि तब आखिरी बार गोली चली थी और जो 8 साल बाद हुआ वो एक तरह की दुर्घटना थी, ये तथ्यों से मेल नहीं खाता.
राव कहती हैं कि सीधे तौर पर 1975 में घात लगाकर हमला किया गया और हमने चार लोगों को खो दिया था.
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