हर तीन घंटे में एक बच्ची से ज्यादती का मामला दर्ज होता है मध्य प्रदेश में.
मध्य प्रदेश में वरिष्ठ नागरिकों (60 वर्ष और उससे अधिक उम्र के) के खिलाफ अपराधों की दर 92.3 है. यानि राज्य में हर एक लाख की जनसंख्या में 92.3 अपराध दर्ज किए गए हैं.
मध्य प्रदेश 2021 में अनुसूचित जातियों पर अत्याचार के खिलाफ अपराध की दर में सबसे आगे. हर दिन दलितों पर अत्याचार के 19 मामले दर्ज होते हैं.
आदिवासियों पर अत्याचार के खिलाफ भी औसतन हर दिन 7 मामले दर्ज होते हैं.
ऐसा हम नहीं कह रहे हैं, ये भारत सरकार का (National Crime Records Bureau, एन सी आर बी) की ताज़ा रिपोर्ट बताती है. मध्य प्रदेश के किस्से में आज बात करेंगे प्रदेश की लचर कानून व्यवस्था पर.
मामा के राज में 'भांजियां' सबसे ज्यादा प्रताड़ित!
देश भर में नाबालिग बच्चियों से दुष्कर्म के कुल 33,036 मामले 2021 में दर्ज किए गए हैं जिनमें से सबसे ज्यादा 3515 मामले मध्य प्रदेश में दर्ज किए गए हैं. देश में ज्यादती के कुल 65,015मामलों में ( जिनमे बालिग, बुजुर्ग महिलाएं भी शामिल) से 6462 मध्यप्रदेश में दर्ज किए गए.
ये मामले IPC की धारा 376 और The Protection Of Children From Sexual Offences Act की धारा 4 और 6 के तहत दर्ज किए गए हैं.
मध्यप्रदेश में 2020 में भी यही हालात थे, तब 5,598 दुष्कर्म के केस दर्ज किए गए थे, जिसमे 3,259 नाबालिग बच्चियों से दुष्कर्म के मामले थे. तब भी मध्य प्रदेश देश में नंबर वन था. इसके अलावा मध्यप्रदेश में 2021 में औसतन हर 17 मिनट में महिलाओं के खिलाफ अपराध का एक केस दर्ज हुआ.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित राज्य के रूप में मध्य प्रदेश की बदनामी जारी है, राज्य में फिर से 2021 में देश में बलात्कार की वारदात 6,462 दर्ज की गई हैं. इन 6,462 मामलों में 50% से ज्यादा मामले यानी कि 3515 मामलों में पीड़ित नाबालिग हैं. आंकड़ों को खंगाले तो पता चलता है कि देश में दर्ज हुए रेप के मामलों में हर दसवां मामला मध्यप्रदेश में दर्ज हुआ है.
अनुसूचित जातियों के खिलाफ अपराध दर सबसे ज्यादा
मध्य प्रदेश में 2018 और 2021 के बीच में दलितों पर हुए अत्याचारों से जुड़े दर्ज मामलों में 51.7% की वृद्धि हुई है. प्रदेश में प्रति एक लाख आबादी में सबसे ज्यादा दलितों पर अपराध के केस हैं. यानी एक लाख आबादी पर 63 से ज्यादा अपराध अनुसूचित जातियों पर हो रहे हैं. हर दिन अनुसूचित जातियों के खिलाफ अपराध के 19 केस दर्ज किए जा रहे हैं. बीते लगभग 18 सालों से राज्य में BJP की सरकार है. बीच में 1.5 वर्ष के लिए कांग्रेस सत्ता में आई थी, लेकिन प्रदेश की कानून व्यवस्था और हालिया आंकड़े ये बताते हैं कि कुछ खास परिवर्तन नहीं हुआ है. आए दिन दलित और आदिवासी उत्पीड़न की खबरों से अखबार भरे रहते हैं.
उदाहरण के लिए खंडवा जिले में एक 15 वर्षीय दलित लड़की की कथित तौर पर एक मंदिर के पास से गुजरने के कारण 19 अगस्त को पिटाई का मामला हो, चाहे उसी दिन सतना जिले के जरियारी पंचायत की चुनी हुई दलित सरपंच के साथ मारपीट का मामला हो, प्रदेश में दलितों के खिलाफ अपराध के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं.
जरियारी ग्राम सभा में मौजूद सावित्री साकेत के बेटे विक्रम के साथ भी मारपीट हुई. वीडियो में विक्रम और गोरेलाल दोनो के कपड़े फटे हुए दिख रहे थे. विक्रम ने क्विंट से बात करते हुए बताया था कि छोटू पटेल और उसके साथी इस बात से खफा थे कि आखिर दलित वर्ग के लोग पंचायत कैसे चला सकते हैं?
पुलिस ने इस मामले में केस तो दर्ज किया IPC के सेक्शन 452, 353, 294, 506 और अन्य के साथ ही एससी एसटी एक्ट के प्रावधानों के तहत लेकिन आरोपियों की गिरफ्तारी की धारा 151 के तहत जिसके बाद आरोपियों को उसी दिन कुछ देर में बेल मिल गई.
अब ऐसे में आरोपियों का हौसला बढ़ेगा या दलित वर्ग में कानून पर विश्वास ये सोचने वाली बात है.
आदिवासी वोट चाहिए लेकिन उन्हें उत्पीड़न से निजात कौन दिलाएगा ?
प्रदेश में 2021 में आदिवासी उत्पीड़न के 2,627 केस दर्ज किए गए हैं, ये पूरे भारत में सबसे ज्यादा हैं.
मध्यप्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी दोनों आदिवासी वोटों के पीछे रहती हैं. प्रदेश में कुल आरक्षित सीट हैं 82 जिनमें से आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटें हैं 47.
इन 47 सीटों में बीजेपी को 2018 चुनावों में मात्र 16 सीटों पर ही जीत मिली थी. बीजेपी की सत्ता से बेदखली का एक प्रमुख कारण ये भी रहा था.
हालंकि प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के साथ साथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह
चौहान आदिवासियों को लुभाने के लिए आए दिन कुछ न कुछ घोषणाएं करते रहते हैं लेकिन मध्यप्रदेश अभी भी आदिवासी उत्पीड़न के सबसे ज्यादा मामले दर्ज कर रहा है. जाहिर है आने वाले चुनावों में भी आदिवासी बीजेपी को अपनो दुखों को जवाब दे सकते हैं.
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