“मैं चाहता हूं कि प्रवेश शुक्ला को छोड़ दिया जाए. वह हमारे गांव का पंडित है.” यह कहना है मध्य प्रदेश के सीधी जिले के कोल आदिवासी दशमत रावत का जिसके शरीर पर बीजेपी विधायक केदारनाथ शुक्ला के स्थानीय प्रतिनिधि प्रवेश द्वारा पेशाब करने का आरोप है.
तीन बच्चों के पिता 36 वर्षीय दशमत एक अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं और कुसियारी गांव में रहते हैं, जहां 20 प्रतिशत निवासी आदिवासी हैं.
7 जुलाई को अपने कच्चे घर के बाहर बैठे हुए दशमत ने मीडियाकर्मियों से शुक्ला की रिहाई की अपील की, इसके कुछ ही घंटों बाद उन्होंने क्विंट हिंदी को बताया कि उन्हें डर है कि सबका ध्यान हटने के बाद उनका और उनके परिवार का क्या होगा?
क्विंट हिंदी से बात करते हुए दशमत कहते हैं, “आज पुलिस और मुख्यमंत्री (शिवराज सिंह चौहान) और दूसरे मंत्री हमारे साथ हैं... लेकिन एक बार जब यह सब चले जाएंगे तो मुझे पता नहीं कि क्या होगा? इसलिए मैं सुरक्षा चाहता हूं.”
दशमत रावत को प्रवेश शुक्ला को माफ करने की इतनी जल्दी क्यों है? टीवी कैमरे चले जाने के बाद उन्हें अंजाम का डर क्यों सता रहा है? इस सबका विधायक केदारनाथ शुक्ला से क्या रिश्ता है?
दशमत ने प्रवेश शुक्ला की रिहाई की मांग क्यों की?
दशमत की आशंकाएं बेबुनियाद नहीं हैं. कुसियारी गांव (Kusiyari village) में सिर्फ 35-40 कोल परिवार हैं. यहां और साथ ही करीब के कुबरी गांव में, जहां यह घटना हुई, जातिगत बंटवारे की खाई साफ नजर आती है.
यहां जातिवाद और राजनीति का घालमेल चल रहा है– जिसकी अगुवाई कथित तौर पर बीजेपी विधायक केदारनाथ शुक्ला और उनके समर्थक कर रहे हैं.
क्विंट हिंदी से बातचीत में कोल समुदाय के ही एक स्थानीय निवासी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि...
“पूरा इलाका जातिवाद का बोझ झेल रहा है. सीधी में यह रोजमर्रा की जिंदगी का एक हिस्सा है... बल्कि असल में पूरे विंध्य क्षेत्र का ऐसा ही हाल है. प्रवेश शुक्ला जातिवादी श्रेष्ठता के घमंड से भरा था और उसे केदारनाथ शुक्ला जैसे ताकतवर नेता का समर्थन हासिल था. उसकी हरकत इसी सबका नतीजा थी.”
कोल समुदाय के एक अन्य आदिवासी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि,
“हमारे लिए यहां हमेशा से ऐसा ही रहा है. हम उस जाति से हैं जिसका मजाक उड़ाया जाता है... जो कोई ब्राह्मण या ठाकुर नहीं है, उसे नीची नजर से देखा जाता है और उसके साथ गुलामों जैसा बर्ताव किया जाता है.’'
विंध्य क्षेत्र में ब्राह्मणों का वर्चस्व है जो विधानसभा चुनाव नतीजों पर गहरा असर रखते हैं. पूरे मध्य प्रदेश में 10 फीसद से ज्यादा ब्राह्मण मतदाता हैं. आंकड़ों से पता चलता है कि विंध्य, महाकौशल, चंबल और मध्य क्षेत्रों में ब्राह्मण कांग्रेस और BJP दोनों के लिए 60 से अधिक सीटों पर नतीजों को प्रभावित करते हैं.
केदारनाथ शुक्ला और उनके करीबियों का दबदबा
वोट बैंक की यह राजनीति इलाके में केदारनाथ शुक्ला के वर्चस्व को दिखाती है. बीजेपी का यह कद्दावर नेता 2009 से मध्य प्रदेश विधानसभा का सदस्य है.
साल 2020 में यह वीडियो शूट करने वाले दीनदयाल साहू ने क्विंट हिंदी को बताया कि आरोपी प्रवेश ने उसे दशमत पर पेशाब करते हुए रिकॉर्ड करने के लिए “मजबूर” किया था.
“प्रवेश और मैं दोस्त थे. लेकिन हम अलग हो गए, क्योंकि वह स्थानीय नेताओं का करीबी था– और उनके लिए काम करता था. उसी समय उसने एक रात नशे में होने पर मुझे दशमत पर पेशाब करते हुए उसका वीडियो रिकॉर्ड करने के लिए मजबूर किया था.”
साहू ने बताया, “मेरा कभी भी इसे सामने लाने का इरादा नहीं था... लेकिन मेरे दोस्त आदर्श शुक्ला के पिता को प्रवेश के एक जानकार साथी ने पीट दिया था. उन्हें इस वीडियो के बारे में पता चला और उन्होंने मुझसे ले लिया.”
दूसरी तरफ आदर्श ने क्विंट हिंदी को बताया कि हाल ही में वीडियो मिलने के बाद उन्होंने इसे स्थानीय पुलिस अधिकारियों और केदारनाथ शुक्ला के करीबी साथियों को दिखाया. उनका आरोप है:
“किसी ने कुछ नहीं किया. जब प्रवेश के साथियों को पता चला तो उन्होंने दशमत से जबरन एक एफिडेविट पर हस्ताक्षर करा लिए, जिसमें लिखा था कि घटना कभी हुई ही नहीं थी.”
वीडियो वायरल होने के बाद सामने आई तस्वीरें आरोपी प्रवेश शुक्ला और विधायक केदारनाथ शुक्ला के संबंध की ओर इशारा कर रही थीं, मगर आरोपी के पिता द्वारा इस बारे में बताए जाने के बाद भी विधायक ने सभी आरोपों से इनकार किया है.
हालात को ठीक समझने के लिए बता दें कि यहां तक कि वीडियो वायरल होने के बाद दशमत रावत ने भी पुलिस के सामने फौरन यह कुबूल नहीं किया कि वीडियो में वही था. पुलिस सूत्रों ने यह बात क्विंट हिंदी को बताई. उनका कहना था कि वह “डरा हुआ” था.
क्विंट हिंदी से बात करते हुए केदारनाथ शुक्ला के बेटे गुरुदत्त ने आरोपों का खंडन किया.
“एक विधायक के तौर पर मेरे पिता अपने निर्वाचन क्षेत्र में बहुत से लोगों को जानते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कोई उन पर कुछ भी आरोप मढ़ सकता है. विधानसभा चुनाव से पहले यह उनकी छवि खराब करने के लिए विपक्ष के घृणित आरोप हैं.”गुरुदत्त शरण शुक्ला
2019 में कांग्रेस में शामिल हो गए पूर्व BJP नेता लालचंद गुप्ता भी केदारनाथ पर आदिवासियों की जमीनें जबरन कब्जाने, हिंसा को बढ़ावा देने और हर तरह के हथकंडों से असहमति की आवाज को दबाने का आरोप लगाया है.
“केदारनाथ शुक्ला के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठा सकता. भले ही वह उनकी जमीन छीन ले या उनके साथ गैरबराबरी का बर्ताव करे, मगर उसका विरोध करने वाला कोई नहीं है. कौन सिस्टम और सरकार के गुस्से का सामना करने का जोखिम उठाएगा?”लालचंद गुप्ता
पेशाब करने वाली इस चर्चित घटना से एक साल पहले सीधी ने एक और घटना के लिए देशभर में सुर्खियां बटोरीं थीं. इसका भी संबंध केदारनाथ शुक्ला से ही है.
अप्रैल 2022 में क्यों सुर्खियों में आया था सीधी का नाम?
अप्रैल 2022 में यह शहर तब सुर्खियों में आया था जब एक तस्वीर वायरल हुई थी– जिसमें एक स्थानीय पत्रकार और थिएटर कलाकारों सहित दूसरे लोगों को एक पुलिस स्टेशन में सिर्फ अंडरवियर में दिखाया गया था.
थाने के अंदर जिन आठ लोगों के कपड़े उतरवाए गए, उन्हें थिएटर कलाकार नीरज कुंदर की गिरफ्तारी का विरोध करने के लिए गिरफ्तार किया गया था. विधायक केदारनाथ शुक्ला ने कुंदर पर नकली नाम से सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट डालने का आरोप लगाया था.
“सरकारी दमन” के बारे में बात करते हुए नीरज कुंदर ने क्विंट हिंदी को बताया, “अगर मैं शाम 6 बजे के बाद घर नहीं पहुंचता हूं तो मेरे पिता फिक्रमंद हो उठते हैं. जबसे मुझे झूठे मामले में गिरफ्तार किया गया है तब से वह फिक्रमंद रहने लगे हैं. उनका डर बेवजह नहीं है– जो मुझे फंसा रहे हैं वो बहुत ताकतवर लोग हैं.”
घटना को एक साल से ज्यादा वक्त बीत चुका है, लेकिन पुलिस की ओर से कोई चार्जशीट दाखिल नहीं की गई है.
नीरज कुंदर आरोप लगाते हैं कि केदारनाथ शुक्ला ने मामले में दखलअंदाजी की और यह सुनिश्चित किया कि उनके खिलाफ फर्जी मामला दर्ज किया जाए. विधायक ने उस समय उनकी गिरफ्तारी को सही ठहराया था, लेकिन पत्रकार और थिएटर कलाकारों को निर्वस्त्र किए जाने के मामले में किसी भी उनका तरह का हाथ होने से इनकार किया था.
एक बार फिर आरोपों से इनकार करते हुए विधायक के बेटे गुरुदत्त शुक्ला ने क्विंट हिंदी से कहा:
“नीरज ने फर्जी आईडी बनाई और इसका इस्तेमाल मेरे पिता के खिलाफ झूठी खबरें फैलाने के लिए किया. कनिष्क भी झूठी खबरें फैलाता था. वह रजिस्टर्ड पत्रकार भी नहीं था. मामला विचाराधीन है और उन्हें अपनी करनी का अंजाम भुगतना होगा.”गुरुदत्त शरण शुक्ल
सीधी में बीजेपी के पूर्व आदिवासी नेता विवेक कोल, जिन्होंने 7 जुलाई को पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है, ने भी कहा कि विधायक लोगों को डरा कर अपनी सत्ता चला रहे हैं और जातिवाद को बढ़ावा दे रहे हैं.
“यह कोई अकेली घटना नहीं है. ऐसे कई मामले हुए हैं जिनमें आदिवासियों और दलितों का दमन किया गया. बीजेपी विधायक केदारनाथ शुक्ला ने हमेशा अपने गुंडों को आदिवासियों और दलितों को पीटने, गाली देने या पेशाब करने के बाद बचाया है. जो भी विरोध करने की कोशिश करता है, शुक्ला के इन प्रतिनिधियों द्वारा उसे और डराया जाता है.”विवेक कोल
लालचंद गुप्ता की तरह विवेक कोल भी आरोप लगाते हैं कि केदारनाथ शुक्ला ने कई बेबस आदिवासी परिवारों की जमीनों पर जबरन कब्जा कर लिया है.
“ऐसे एक गरीब आदिवासी परिवारों के पास विधायक के खिलाफ लड़ाई लड़ने का कोई जरिया नहीं है. एक विधायक से भला कौन लड़ सकता है?”
केदारनाथ शुक्ला के खिलाफ जमीन कब्जा करने का मामला
विवेक कोल ने हड़बड़ो गांव के रहने वाले 60 वर्षीय गोंड आदिवासी गुलाब सिंह गोंड के बारे में बताया. क्विंट हिंदी से बात करते हुए गुलाब सिंह गोंड ने कहा कि उनकी 19.41 एकड़ जमीन “धमकाकर और धोखे से हड़प ली गई है.”
“1962 तक 19.41 एकड़ जमीन मेरे दादा महकम गोंड की मिल्कियत थी. हमने किसी को कुछ नहीं बेचा मगर 10 साल बाद मिल्कियत बदलकर इसे केदारनाथ शुक्ला के नाम कर दिया गया.”गुलाब सिंह
क्विंट हिंदी ने उस दस्तावेज को हासिल किया जिसमें महकम सिंह को 1962 तक जमीन का मालिक दिखाया गया है. एक दशक बाद 1972 में दस्तावेज में केदारनाथ और उनके भाई मार्कंडेय शुक्ला को उसी जमीन का मालिक दिखा दिया गया है.
गुलाब के बेटे राहुल गोंड ने क्विंट को बताया कि उन्होंने इंसाफ पाने की कोशिश की लेकिन केदारनाथ शुक्ला ने उन्हें इंसाफ नहीं मिलने दिया.
“हमें मालिकाना हक बदल जाने के बारे में पता भी नहीं था जो विधायक केदारनाथ शुक्ला ने पूरी तरह अवैध रूप से किया था. 1984-85 में मेरे परिवार और शुक्ला के परिवार के बीच लड़ाई के बाद मेरा परिवार जमीन से दूर ही रहा... चूंकि वह ऊंची जाति का था, इसलिए हमने कुछ नहीं किया. 2020 में जब मेरे पिता और उनके भाइयों ने जमीन का बंटवारा करने का फैसला किया तब हमें पता चला कि यह हमारी है ही नहीं. अब यह विधायक की है.’’
यहां तक कि जब गोंड परिवार ने सीधी के SDM कोर्ट में शिकायत दर्ज कराई तो उनका मामला 3 मार्च 2023 को खारिज कर दिया गया. गुलाब के परिवार ने तब राष्ट्रपति को खत लिखकर विधायक द्वारा उनकी जमीन हड़पने के मामले में दखल देने की मांग की.
गुलाब कहते हैं, “वह एक ताकतवर आदमी है, जिसके पिता हमारी जमीन पर मवेशी चराते थे. आज वे हमारी जमीन के मालिक बन गए हैं और चूंकि हम आदिवासी हैं और हमारे पास कोई जरिया नहीं है. हमारे पास इंसाफ पाने का कोई रास्ता नहीं हैं.”
गुरुदत्त ने आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि अदालत ने सबूतों के आधार पर सही फैसला दिया है. उन्होंने कहा:
“हड़बड़ो के जमीन मामले में फैसला हमारे पक्ष में आया. मेरे पिता ने जमीन खरीदी थी– और यह दशकों से हमारे परिवार के पास है. हमारे पास बहुत सी जमीन है जिस पर आदिवासियों और दूसरे समुदाय के लोगों ने कब्जा किया हुआ है लेकिन हम उनसे जमीन खाली करने के लिए नहीं कह रहे हैं.”
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