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Opposition Meet: बेंगलुरु में विपक्ष की बैठक, 7 प्वाइंट जिन पर हो सकती है चर्चा

Opposition meet in Bengaluru | विपक्ष की दूसरी बैठक में करीब 25 पार्टियों के शामिल होने की उम्मीद है.

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लोकसभा चुनाव-2024 से पहले विपक्ष को एकजुट करने की कोशिशें लगातार जारी हैं और इसी कड़ी में 17-18 जुलाई को विपक्ष की दूसरी बैठक (Opposition Meet) कर्नाटक के बेंगलुरू में होने जा रही है. पहली मीटिंग जून में बिहार के पटना में हुई थी, जिसे खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने होस्ट किया था.

पहली ही बैठक में विपक्ष ने एकजुटता दिखा दी थी और लोकसभा चुनावों को लेकर साथ मिलकर आगे बढ़ने का इरादा साफ कर दिया था, तो क्या अब वे बेंगलुरू में इसी मोमेंटम को जारी रख पाएंगे?

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हम आपको 7 चीजें बताते हैं जिसकी विपक्ष की 2 दिन की बैठक में होने की संभावना है.

1. पिछली बार से ज्यादा पार्टियां

पटना बैठक में 15 विपक्षी दलों के 32 नेता शामिल हुए थे. बेंगलुरु बैठक में करीब 25 पार्टियां हिस्सा ले सकती हैं. नए लोगों में ये नाम शामिल हो सकते हैं-

  • उत्तर प्रदेश से राष्ट्रीय लोक दल और कृष्णा पटेल के नेतृत्व वाला अपना दल

  • तमिलनाडु की पार्टियां MMK, MDMK, KDMK और VCK

  • केरल में कांग्रेस के सहयोगी- IUML, केरल कांग्रेस (जोसेफ) और RSP

  • वाम मोर्चे के सहयोगी फॉरवर्ड ब्लॉक और केरल कांग्रेस (मणि)

हालांकि इन नए दलों का साथ आना देखने में अच्छा लग सकता है, लेकिन इसका ज्यादा राजनीतिक महत्व नहीं है, क्योंकि ये सभी दल वैसे भी मजबूती से बीजेपी विरोधी खेमे में हैं.

2. मानसून सत्र पर फोकस

चूंकि बैठक संसद के मानसून सत्र से ठीक पहले हो रही है, इसलिए सत्र के दौरान राजनीतिक दलों के बीच बेहतर समन्वय पर कुछ ध्यान दिए जाने की संभावना है.

खासकर, AAP दिल्ली में निर्वाचित सरकार की शक्तियों को कम करने वाले केंद्र के अध्यादेश को चुनौती देने के लिए अपनी योजना पर आगे बढ़ सकती है.

जहां इस विधेयक के लोकसभा में पारित होने की संभावना है, वहीं एकजुट विपक्ष सरकार के लिए राज्यसभा में सिरदर्द दे सकता है. यदि बेंगलुरु बैठक में भाग लेने वाली पार्टियां अपनी संख्या जोड़ती हैं, तो एनडीए को YSRCP और BJD जैसी पार्टियों पर निर्भर रहना होगा, जो किसी भी पाले में जा सकते हैं.

इस संसद सत्र में मोदी सरकार समान नागरिक संहिता भी लेकर आ सकती है. इस मुद्दे पर विपक्षी दल एकमत नहीं हैं. पूरी संभावना है कि पार्टियां इस मुद्दे पर एक साथ असहमती जाहिर कर सकती हैं.
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3. संयोजक पर चर्चा संभव

विपक्षी पार्टियों के साथ पटना में हुई चर्चाओं को आगे बढ़ाने और भविष्य में बेहतर समन्वय के लिए औपचारिक रूप से एक संयोजक की आवश्यकता हो सकती है. क्या यह एनडीए संयोजक या यूपीए संयोजक की तरह एक औपचारिक पद होगा, या स्पष्ट नामकरण के बिना एक पॉइंटपर्सन होगा, यह देखा जाना बाकी है.

यदि ऐसी कोई स्थिति चर्चा के लिए आती है, तो इसमें कोई शक नहीं है कि बिहार के सीएम नीतीश कुमार सबसे आगे हैं, क्योंकि विपक्ष की बैठकें उनकी पहल हैं. हालांकि, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की उपस्थिति ने अटकलों को जन्म दिया है कि यदि औपचारिक पद की घोषणा की जाती है, तो कांग्रेस उनके नाम पर जोर दे सकती है. फिर शरद पवार भी हैं, जिनका सभी पार्टियों में सम्मान है.

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4. सीट-बंटवारे पर चर्चा

पटना बैठक के बाद पार्टियों ने ऐलान किया कि वे अगली बैठक में सीट बंटवारे पर बात करेंगे. इसपर बात आगे बढ़ी है या नहीं, ये बेंगलुरु बैठक में बदलाव का कारक हो सकता है.

2019 के लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु और झारखंड जैसे राज्यों में विपक्षी दल पहले से ही यथासंभव एकजुट हो चुके थे. फिर बिहार और महाराष्ट्र में गठबंधन पहले से ही मौजूद है और सीटों का बंटवारा करना ही एकमात्र सवाल है.

हालांकि, ऐसे कई राज्य हैं जहां इन बैठकों में भाग लेने वाले विपक्षी दल आपस में लड़ रहे हैं- उत्तर प्रदेश में एसपी बनाम कांग्रेस, पंजाब और दिल्ली में कांग्रेस बनाम आप, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस बनाम लेफ्ट और कांग्रेस, केरल में लेफ्ट बनाम कांग्रेस.

अब, विपक्ष पश्चिम बंगाल, केरल, दिल्ली और पंजाब में दोस्ताना या गैर-दोस्ताना लड़ाई के साथ रह सकता है. हालांकि, उत्तर प्रदेश एक महत्वपूर्ण राज्य है और अगर विपक्ष को बीजेपी से मुकाबला करने का कोई मौका देना है तो चुनाव से पहले गठबंधन जरूरी है.

यूपी विपक्षी एकता की कसौटी हो सकता है.

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5. शरद पवार और सोनिया गांधी पर फोकस

बेंगलुरु बैठक में सबसे ज्यादा फोकस एनसीपी प्रमुख शरद पवार और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर होगा, लेकिन अलग-अलग कारणों से.

पवार के भतीजे अजीत पवार की तरफ से एनसीपी के विभाजन के बाद यह इस पैमाने की पहली राष्ट्रीय बैठक होगी. बैठक में विभाजन को लेकर पवार क्या कहते हैं, ये जानना अहम होगा.

बैठक में सोनिया गांधी की मौजूदगी भी अहम है. उनकी टिप्पणियां और विपक्षी नेताओं के साथ बातचीत इन पार्टियों के प्रति कांग्रेस के दृष्टिकोण के लिए दिशा तय कर सकती है. विशेष रूप से महत्वपूर्ण ये होगा कि सोनिया गांधी उन पार्टियों के नेताओं के साथ कैसे बातचीत करती हैं जिनसे कांग्रेस खुद मुकाबले में है - TMC, AAP और SP.

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6. AAP-कांग्रेस समीकरण

पटना बैठक के दौरान मीडिया का सबसे ज्यादा ध्यान दिल्ली अध्यादेश पर गया जहां कांग्रेस ने अपना रुख स्पष्ट नहीं किया था और आम आदमी पार्टी लगातार हमलावर थी. हालांकि, अब कांग्रेस ने केंद्र के अध्यादेश का स्पष्ट विरोध करने की घोषणा कर दी है. इससे दोनों दलों के बीच जुड़ाव देखने को मिल सकता है.

कांग्रेस AAP को एक लंबे खतरे के रूप में देखती है और पंजाब और दिल्ली में AAP और कांग्रेस इकाइयों के बीच काफी मनमुटाव है.

हालांकि, बेंगलुरु की बैठक इस बात का संकेत देगी कि क्या पार्टियां इन दोनों राज्यों में प्रतिद्वंद्वी होते हुए भी राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग कर सकती हैं, कुछ हद तक टीएमसी, एसपी या लेफ्ट के साथ कांग्रेस के साथी भी समीकरण इसी तरह के हैं.

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7. रैलियों, विरोध प्रदर्शनों और बैठकों की समय सीमा

बैठक में भाग लेने वाले दलों के नेता घटनाओं की समयसीमा पर फैसला ले सकते हैं- जैसे कि संयुक्त विरोध प्रदर्शन और NDA सरकार को लक्षित करने वाली रैलियां. वे इस बात पर भी चर्चा करेंगे कि विपक्ष की अगली बैठक कहां होगी और एजेंडा क्या होगा.

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