महाराष्ट्र (Maharashtra) सरकार ने किसानों की मांगों को मान लिया है जिसके बाद किसानों के नासिक-मुंबई लॉन्ग मार्च को ठाणे के वाशिंद में रोक दिया गया. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने गुरुवार को कहा, " हमारी AIKS के नेताओं के साथ बैठक हुई जिसके बाद हमने अधिकांश मुद्दों को सुलझा लिया है. मैं शुक्रवार 17 मार्च को विधानसभा में एक बयान दूंगा."
हालांकि किसान नेताओं का कहना है कि अभी लॉन्ग मार्च केवल रोका गया है, खत्म नहीं किया गया है. इसकी वजह है कि उनकी मांगों को अभी केवल राज्य सरकार ने माना है, केंद्र ने नहीं.
राज्य सरकार ने मांगें मानी, केंद्र ने नहीं: विनोद निकोल
इस मामले पर CPI(M) विधायक विनोद निकोल ने कहा कि राज्य के अधिकार क्षेत्र से संबंधित अधिकांश को सुलझा लिया गया है, जबकि केंद्र के दायरे में आने वाली मांगों का अभी तक हल नहीं किया गया है.
हमने वाशिंद में 'लॉन्ग मार्च' को रोकने का फैसला किया है. जब तक सरकार अगले दो दिनों के भीतर हमारी मांगों को लागू करने के लिए जिला स्तर तक संबंधित आदेश जारी नहीं करती है, तब तक आंदोलन बंद नहीं किया गया है.विनोद निकोल, विधायक, CPI(M)
दरअसल, महाराष्ट्र में प्याज की कीमतों में बड़ी गिरावट के बीच हजारों किसान पिछले कुछ दिनों से नासिक से मुंबई के बीच मार्च निकाल रहे थे. किसान अपने नुकसान की भरपाई के लिए 600 रुपये प्रति क्विंटल की सब्सिडी की मांग कर रहे हैं.
किसान क्यों कर रहे थे मार्च?
CPI(M) से जुड़ी अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) के नेतृत्व में किसानों ने 17 मांगों का एक पत्र सामने रखा है, जिसमें कृषि उपज के लिए उचित मूल्य, दूध के मीटरों का निरीक्षण करने के लिए एक निकाय की स्थापना और डेयरियों द्वारा इस्तेमाल किए गए कांटे, वनभूमि पर आदिवासियों को अलग-अलग भूमि के पट्टे, गैरन/गाओथन भूमि पर घर बनाने वाले परिवारों को मालिकाना हक शामिल हैं.
किसानों ने महाराष्ट्र सरकार के कर्मचारियों को भी अपना समर्थन दिया है जो वर्तमान में पुरानी पेंशन योजना (OPS) की बहाली की मांग को लेकर हड़ताल पर हैं.
किसानों ने कहा था कि अगर राज्य सरकार उनकी सभी मांगें मान लेती है तो वे अपने गांव लौट जाएंगे अन्यथा वे महाराष्ट्र विधान सभा की ओर चलते रहेंगे.
सरकार की घोषणा से खुश नहीं किसान
दरअसल, महाराष्ट्र देश में प्याज का अग्रणी उत्पादक है. चूंकि पिछले कुछ दिनों में कीमतों में तेजी आई थी, इसलिए शिंदे ने सोमवार को किसानों के गुस्से को शांत करने के लिए चल रहे बजट सत्र में 300 रुपये प्रति क्विंटल की सब्सिडी देने की घोषणा की.
हालांकि, AIKS के महासचिव अजीत नवले ने कहा कि ₹300 पर्याप्त नहीं थे क्योंकि यह मूल लागत को भी कवर नहीं करेगा. उन्होंने मांग की कि प्याज उत्पादकों को न्यूनतम ₹600 प्रति क्विंटल दिया जाना चाहिए और वह भी पूर्वव्यापी प्रभाव से ताकि जिन किसानों ने अपनी उपज पहले ही बेच दी है उन्हें नुकसान न हो.
किसानों की क्या मांग?
दरअसल, बाजार में उम्मीद से पहले खरीफ की फसल देर से आने के बाद प्याज की कीमतों में गिरावट आई है. आशंका जताई जा रही है कि रबी सीजन के प्याज के बाजारों में आने के बाद कीमतें फिर से गिरेंगी. किसान प्रतिनिधियों की मांग है कि नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (NAFED) किसानों से 2,000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से ज्यादा से ज्यादा प्याज खरीदे.
हम चाहते हैं कि सरकार हमारी सभी मांगों को मान ले"
मार्च करने वालों में अधिकांश आदिवासी समुदाय के हैं. इनमें सिर्फ किसान ही नहीं बल्कि खेतिहर मजदूर और दिहाड़ी मजदूर भी शामिल हैं. नासिक और पड़ोसी पालघर के आदिवासी बहुल इलाकों को CPI(M) का गढ़ माना जाता है.
आदिवासी नेता जीवा गावित ( 77) ने नासिक में अपने कलवान निर्वाचन क्षेत्र से सात बार CPI(M)विधायक के रूप में कार्य किया है (वे 2019 के विधानसभा चुनाव हार गए थे). वह 2018 और 2019 में लॉन्ग मार्च में सबसे आगे थे और वर्तमान मार्च का भी नेतृत्व कर रहे हैं.
एक अन्य आदिवासी नेता और पालघर जिले के दहानू से वर्तमान CPI(M) विधायक विनोद निकोल ने कहा कि उनके जिले के सैकड़ों लोग मार्च में शामिल हुए हैं. उन्होंने द क्विंट से कहा, "हम चाहते हैं कि सरकार हमारी सभी मांगों को मान ले."
कौन-कौन संगठन मार्च में शामिल?
पालघर के वाडा तालुका के कुदुस गांव के रहने वाले नितेश म्हासे CPI(M) और AIKS के सदस्य हैं. उन्होंने द क्विंट से कहा, "एआईकेएस के साथ-साथ कई अन्य संगठन जैसे डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया, स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया और ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमेंस एसोसिएशन भी मार्च में शामिल हुए हैं."
मार्च के मुंबई में प्रवेश करने के बाद म्हासे इसमें शामिल होने की योजना बना रहे थे. उनके पिता, जगन म्हासे, जो पिछले तीन दशकों से CPI(M) के सदस्य हैं, पहले ही मार्च में शामिल हो चुके हैं. इस दौरान विरोध गीत गाते हुए उनका एक वीडियो एक प्रमुख मराठी समाचार चैनल ने अपने YouTube चैनल पर साझा किया.
म्हासेस और कुछ अन्य आदिवासी परिवार वनभूमि पर रहते हैं. नितेश ने द क्विंट को बताया, "हमारा टोला वन भूमि पर है. हमारे सभी घर यहीं हैं. हममें से कुछ लोग यहां खेती भी करते हैं. लेकिन हमें इन 8-10 भूखंडों के लिए एक संयुक्त पट्टा दिया गया है. हमारी मांग है कि जो जमीन हमारे कब्जे में है, उसके लिए हमें अलग-अलग पट्टे दिए जाएं."
नितेश का कहना है कि महाराष्ट्र में हजारों ऐसे परिवार हैं जो जंगल की जमीन पर या जोत कर रहते हैं, जिनकी जमीन का मालिकाना हक नियमित किया जाना चाहिए. हालांकि, वह जोर देकर कहते हैं कि जमीन का पट्टा सिर्फ मांगों में से एक है और उनकी लड़ाई एआईकेएस चार्टर की सभी मांगों के लिए है.
(इनपुट-आईएएनएस)
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