CAA का विरोध दिल्ली के शाहीन बाग से शुरू होकर मुंबई तक पहुंच चुका है. लोग CAA को वापस लेने की मांग के साथ सड़कों पर हैं. सरकार के खिलाफ धरना दिया जा रहा है. लेकिन बड़े पैमाने पर हो रहे इस विरोध के बीच विपक्ष खुलकर जनता के साथ नहीं दिख रहा है. आखिर इसकी वजह क्या है? कांग्रेस नेता और महाराष्ट्र के पूर्व सीएम पृथ्वीराज चव्हाण का कहना है कि विपक्ष को हिंदू वोट गंवाने का डर सता रहा है.
क्विंट से खास बातचीत में पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा कि दरअसल विपक्ष बीजेपी के धुव्रीकरण के एजेंडे में नहीं उलझना चाहता.
“बीजेपी का CAA वाला एजेंडा, संविधान की धर्मनिरपेक्षता हमला है. लेकिन विपक्ष के बीच वाकई इस बात को लेकर डर है कि अगर इनके इस एजेंडे के खिलाफ हम दूर तक जाते हैं, तो ध्रुवीकरण के आधार पर टकराव होगा और बीजेपी इसी को ध्यान में रखकर काम कर रही है. हालांकि इसका ये मतलब कतई नहीं है कि CAA जैसे कानून का विरोध नहीं होना चाहिए.”पृथ्वीराज चव्हाण, पूर्व सीएम, महाराष्ट्र
दिल्ली चुनाव पर भी ध्रुवीकरण का साया ?
देश की राजधानी दिल्ली में विधानसभा चुनाव का प्रचार जोरों पर है. लेकिन इस चुनाव प्रचार का शोर शाहीन बाग तक नहीं पहुंच पा रहा है. शाहीन बाग में पिछले कई दिनों से मुस्लिम समुदाय CAA कानून के विरोध में आंदोलन कर रहा है. हजारों की संख्या में मुस्लिम महिलाएं केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही हैं. लेकिन अब तक दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल या आम आदमी पार्टी का कोई बड़ा नेता शाहीन बाग नहीं पहुंचा है.
चव्हाण का मानना है कि
“आम आदमी पार्टी इस बात को अच्छी तरह जानती है कि चुनाव के वक्त मुस्लिम पक्ष के साथ खुलकर खड़ा होना उन्हें भारी पड़ सकता है. अगर वह खुलकर सामने आते हैं तो बीजेपी ध्रुवीकरण का दांव चलकर इस चुनाव को हिन्दू बनाम मुस्लिम बना देगी. ऐसे में केजरीवाल एंड पार्टी इस मामले में फूंक-फूंक कर कदम रख रही है.’’
चव्हाण की बात मानें तो केजरीवाल को जीत की हैट्रिक लगानी है तो पहले उन्हें काम के दम पर बीजेपी के वोटर्स का विश्वास जीतना होगा. दूसरा बीजेपी के ध्रुवीकरण के दांव से बचना होगा. उधर, कांग्रेस CAA का विरोध तो कर रही है लेकिन उनका भी तरीका बहुत आक्रामक नहीं है.
लोकसभा चुनाव 2019 में दिल्ली में बीजेपी को 56 %, कांग्रेस को 22 % और AAP 16 % वोट मिले थे.
कब-कब सफल रहा ध्रुवीकरण का दांव?
बीजेपी को ध्रुवीकरण के खेल का पुराना खिलाड़ी माना जाता है. कई मौकों पर बीजेपी ध्रुवीकरण का दांव खेलकर चुनाव नतीजों को अपने हक में कर चुकी है. यूपी के मुजफ्फरनगर के दंगों को ही लीजिए. साल 2013 में दंगे हुए और बीजेपी इस दंगे को सांप्रदायिक रंग देने में कामयाब रही. इसके बाद साल 2014 में लोकसभा चुनाव हुए और बीजेपी यूपी में 71 सीटें हासिल करने में कामयाब रही. ये आंकड़े वाकई हैरान करने वाले थे, क्योंकि साल 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के हाथ सिर्फ 10 सीटें आई थीं.
2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी में समाजवादी पार्टी ने अपने वफादार मुस्लिम वोट बैंक को एकजुट करने के लिए मोदी के खिलाफ कैंपेनिंग की. लेकिन समाजवादी पार्टी का दांव उल्टा पड़ गया. मुस्लिमों को एकजुट करने की कोशिश में एसपी ने बीजेपी को हिंदू वोटों को एकजुट करने का मौका दे दिया.
यही वजह है कि साल 2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने इस बात का खास ख्याल रखा था, कि वह दोबारा बीजेपी को ऐसा कोई मौका न दे. इसके अलावा पश्चिम बंगाल में भी कई मौकों पर ऐसा देखा गया है, जब बीजेपी ने कुछ मामलों को हिंदू-मुसलमान का रंग देने की कोशिश की है.
CAA पर महाराष्ट्र का रुख
महाराष्ट्र में भी यही वजह है कि CAA कानून को लागू ना करने को लेकर कोई फैसला नहीं हो सका है. शिवसेना के नेतृत्व वाली महाविकास अघाड़ी में शामिल कांग्रेस और एनसीपी दोनों ने इस कानून का विरोध किया है लेकिन लोकसभा में CAB के समर्थन में मतदान करने वाली शिवसेना फिलहाल अपने पत्ते पूरी तरह खोलने को तैयार नहीं है.
शिवसेना अध्यक्ष और महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे भी CAA विरोध और समर्थन के राजनीतिक नफे नुकसान का आकलन नहीं कर सके हैं. हिंदुत्ववादी पार्टी के तौर पर शिवसेना की पहचान रही है, हालांकि कांग्रेस एनसीपी के साथ सरकार बनाने के बाद शिवसेना के हिंदुत्व पर सवाल भी खूब उठे.
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