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खट्टर की कहानी: मेडिकल करने के लिए घर छोड़कर आ गए थे दिल्ली 

इमरजेंसी के समय खट्टर RSS के संपर्क में आए थे

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मनोहर लाल खट्टर ने आज दिवाली के मौके पर एक बार फिर से हरियाणा के सीएम पद की शपथ ले ली है. हरियाणा में साल 2014 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार बीजेपी का प्रदर्शन खराब रहा है, लेकिन सीएम की कुर्सी इस बार भी खट्टर की हुई.

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डॉक्टर बनने का सपना लेकर दिल्ली आए थे खट्टर

मनोहर लाल खट्टर का परिवार बंटवारे के समय पाकिस्तान से रोहतक आकर बस गया था. खट्टर का जन्म रोहतक के निदाना गांव में 5 मई, 1954 को हुआ था. प्राथमिक शिक्षा के बाद खट्टर अपने पिता की मर्जी के खिलाफ आगे पढ़कर डॉक्टर बनना चाहते थे. इसी धुन में वो हाईस्कूल के बाद दिल्ली आ गए. यहां उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की. मेडिकल की तैयारी करके खट्टर ने एंट्रेंस एग्जाम दिया लेकिन पास नहीं कर सके. इसी दौरान उन्होंने दिल्ली के सदर बाजार में एक दुकान खोल ली थी.

इमरजेंसी के समय आए थे RSS के संपर्क में

मनोहर लाल खट्टर साल 1977 में महज 24 साल की उम्र राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए थे. 27 साल की उम्र आते-आते वो RSS के प्रचारक बन गए थे. प्रचारक के तौर पर खट्टर ने 14 साल गुजरात, हिमाचल, जम्मू कश्मीर जैसे 12 राज्यों में संघ के विचारों का प्रचार-प्रसार किया. साल 1994 में खट्टर ने संघ की राजनीतिक शाखा कही जाने वाली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ज्वाइन कर ली थी. एक साल बाद 1995 में ही पार्टी ने उन्हें हरियाणा में संगठन मंत्री का पदभार दे दिया.

राज्य में इतने समय तक पार्टी के लिए काम करते रहने के बाद खट्टर ने 2014 में पहली बार चुनावी राजनीति में कदम रखा. उन्होंने करनाल सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा. उस समय राज्य में कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार थी. बीजेपी ने पहली बार राज्य में चुनाव जीता. जब बात सीएम पद की चली तो खट्टर को संघ से नजदीकी का फायदा मिला और हरियाणा की सियासत में लगभग अनजान चेहरे होने के बावजूद बीजेपी ने उन्हें चुना. इस तरह पार्टी ने राज्य में गैर-जाट चेहरे को सियासत की सबसे ऊंची कुर्सी पर बिठा दिया. 

कैसा रहा 2014-2019 तक का शासन?

जब 2014 में बीजेपी ने मुख्यमंत्री पद के लिए खट्टर के नाम का ऐलान किया तब एक चर्चा जो हर जगह थी वो ये कि उन्हें शासन का अनुभव नहीं था. खट्टर ने सभी अटकलों पर विराम लगाते हुए पांच साल सरकार चलाई. हालांकि उनके कार्यकाल में जाट आंदोलन और राम रहीम को जेल होने के बाद हुई हिंसा जैसे मामलों में प्रशासन और कानून व्यवस्था को लेकर कई तरह के सवाल भी उठे.

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