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हाथरस केस में सवालों के बीच राज्यों को महिला सुरक्षा पर एडवाइजरी

गृह मंत्रालय की तरफ से जारी एडवाइजरी में क्या-क्या कहा गया है? 

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उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक दलित लड़की के कथित गैंगरेप और उसकी मौत के बाद देशभर में फूटे गुस्से के बीच केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक एडवाइजरी जारी की है. यह एडवाइजरी महिलाओं की सुरक्षा और उनके खिलाफ होने वाले अपराधों से निपटने के लिए जारी की गई है. केंद्र ने कहा है कि नियमों के पालन में पुलिस की नाकामी से ठीक तरीके से न्याय नहीं मिल पाता.

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गृह मंत्रालय ने कहा है कि CrPC के तहत संज्ञेय अपराधों में अनिवार्य रूप से FIR दर्ज होनी चाहिए.

एडवाइजरी में कहा गया है कि महिला के साथ यौन उत्पीड़न सहित अन्य संज्ञेय अपराध संबंधित पुलिस थाने के न्यायाधिकार क्षेत्र से बाहर भी होता है तो कानून पुलिस को ‘जीरो FIR’ या FIR दर्ज करने का अधिकार देता है.

गृह मंत्रालय ने कहा है कि सख्त कानूनी प्रावधानों और भरोसा बहाल करने के कदम उठाए जाने के बावजूद अगर पुलिस अनिवार्य प्रक्रिया का पालन करने में नाकाम होती है तो उचित न्याय देने में बाधा होती है.

एडवाइजरी में कहा गया है, ‘‘ऐसी खामी का पता चलने पर उसकी जांच होनी चाहिए और तत्काल संबंधित जिम्मेदार अधिकारी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए.’’ यह एडवाइजरी ऐसे समय में आई है, जब हाथरस केस को लेकर पुलिस की भूमिका पर भी कई तरह के सवाल उठ रहे हैं.

गृह मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन से कहा है कि CrPC की धारा-173 में रेप के मामले में पुलिस जांच दो महीने में पूरी करने और CrPC की धारा-164ए में ऐसे मामलों में पीड़िता की शिकायत दर्ज होने के 24 घंटे के भीतर उसकी सहमति से पंजीकृत डॉक्टर से चिकित्सा परीक्षण कराने का प्रावधान है.

एडवाइजरी में कहा गया कि भारतीय प्रमाण अधिनियम-1872 के तहत जिस व्यक्ति की मौत हो गई है उसके लिखित या मौखिक बयान को जांच में उपयोगी तथ्य माना जाता है जब उसकी मौत की वजहों या परिस्थितियों की जांच की जाती है.

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