वीडियो एडिटर: पुर्णेंदु प्रीतम
वीडियो प्रोड्यूसर: मौसमी सिंह
ये जो इंडिया है ना… यहां सबको बिग बॉस बहुत पसन्द है. हम बिग बॉस से बहुत प्यार करते हैं! तो आज हम उत्तर प्रदेश पुलिस के साथ बिग बॉस ही क्यों न खेलें !
यूपी पुलिस से बिग बॉस कहते हैं कि अगर एक 19 साल की लड़की से खेतों में बर्बरता होती है और आपके पुलिस स्टेशन में लाया जाता है, तो आपको FIR दर्ज करने में देरी करनी चाहिए. यहां तक कि कहना चाहिए कि लड़की ’ड्रामा कर रही है.’
UP पुलिस से बिग बॉस ये भी कहते हैं कि भले ही उसके बदन पर कपड़े न हों, आपको सेक्सुअल असॉल्ट का संदेह नहीं करना चाहिए. आपको ये तय करना चाहिए कि उसके वजाइल स्वैब्स को शुरूआती कुछ घंटों के भीतर नहीं लिया जाए, ताकि रेप का महत्वपूर्ण साक्ष्य ही मौजूद न हो. इसके बजाय आपको उस घटना के 11 दिन बाद सैंपल इकट्ठा करना चाहिए, जिससे रेप के सबूत ही न मिलें.
यूपी पुलिस और हाथरस की जिला प्रशासन से बिग बॉस कहते हैं कि आधी रात को अपनी बेटी का अंतिम संस्कार करने के लिए परिवार को मनाने की कोशिश कीजिए, और अगर वो रीति-रिवाज के बारे में आपके ज्ञान को नहीं सुनते हैं, तो कैसे भी करके रात में मृत शरीर को जला दीजिए
बिग बॉस को पता है कि लड़की की बॉडी इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण सबूत है. इसलिए मामले को मीडिया में आने और परिवार को उचित कानूनी सलाह मिलने से पहले ही जला देना चाहिए. उदाहरण के लिए, बॉडी ही नहीं रहेगी तो जांच के लिए परिवार दूसरे अटॉप्सी की मांग ही नहीं कर पाएगा.
यूपी पुलिस से बिग बॉस कहते हैं कि ये मान लिया जाए कि जनता और मीडिया अनाड़ी है और कहती है कि लड़की के स्वैब सैंपल में स्पर्म का न होना बताता है कि कोई बलात्कार नहीं हुआ.
कई अदालती फैसलों को अनदेखा करें जिसके मुताबिक रेप को साबित करने के लिए स्पर्म का होना जरूरी नहीं है. इस तथ्य पर भी ध्यान न दें कि रेप की परिभाषा 2013 में काफी विस्तृत की गई थी.
बिग बॉस ये भी कहते हैं कि 19 साल की लड़की के डेथ डिक्लेरेशन को भी ज्यादा महत्व नहीं देते हैं जिसमें उसने 4 हमलावरों का नाम लिया है, बताया है कि कैसे उसके साथ मारपीट और गैंगरेप किया गया था.
बिग बॉस कहते हैं कि क्राइम सीन को सील न करें, ताकि जब 17 दिन बाद SIT वहां पहुंचे तो वहां सब कुछ पूरी तरह से तहस-नहस हो गया हो, और अदालत में पेश करने के लिए कोई सबूत ही न हो.
यूपी पुलिस से बिग बॉस कहते हैं कि मीडिया खबरों के लिए जब लड़की के परिवार से मिलने की कोशिश करे तो गांव को ही सील कर दो. पत्रकारों के फोन टैप करो, परिवार के सदस्यों के फोन टैप करो.
बिग बॉस कहते हैं कि धारा 144 लगाओ लेकिन जब 4 आरोपियों के समर्थन में गांव की ऊंची जाति के ठाकुर इकट्ठा हों तो उन्हें नजरअंदाज कर दो. और फिर भी, अगर मीडिया की आलोचना जारी है, तो बिग बॉस यूपी पुलिस ने कहते हैं, घोषणा कीजिए कि-
आपने हाथरस में 19 साल की लड़की के गैंगरेप केस को लेकर योगी आदित्यनाथ सरकार को बदनाम करने और जातिगत दंगे भड़काने के “अंतरराष्ट्रीय साजिश“ का पर्दाफाश किया है. और देशद्रोह सहित आईपीसी की कई सख्त धाराओं के तहत यूपी भर के कई पुलिस थानों में एफआईआर दर्ज कर लीजिए.
बिहार विग बॉस के घर में पूर्व डीजीपी
ये जो इंडिया है ना… यहां कि पुलिस कब तक बिग बॉस के दबाव में काम करेगी? लेकिन .. चलो बिहार पर भी नजर डालते हैं,
जहां एक और पुलिस अधिकारी बिग बॉस का प्रशंसक है. बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय को बिग बॉस ने कहा- अपने पॉलिटिकल बॉस के प्रति अपनी वफादारी का सबूत दो. इसलिए जब रिया चक्रवर्ती ने सुशांत सिंह राजपूत की मौत से संबंधित पटना में उनके खिलाफ दायर एफआईआर पर दावा किया की वो राजनीति से प्रेरित है, रिया का कहना था कि सीएम नीतीश कुमार भी पक्ष ले रहे हैं तो DGP पांडे ने तुरंत कहा - "रिया चक्रवर्ती की नीतीश कुमार पर टिप्पणी करने की 'औकात' नहीं है ... मर्दानगी और वफादारी, दोनों एक ही लाइन में!
उन्होंने माफी मांगी लेकिन क्योंकि उनकी निष्ठा अब स्पष्ट थी, वे रातों रात अपनी पुलिस की नौकरी छोड़ चुके थे, नीतीश कुमार की जदयू में शामिल हो गए. जल्द ही विधायक बनने की उम्मीद कर रहे हैं!
डीजीपी पांडे अपनी राजनीतिक वफादारी के बारे में खुल कर बोलने वाले पहले सरकारी नौकरशाह नहीं हैं. दूसरे वरिष्ठ पुलिसकर्मियों ने ऐसा पहले भी किया है, सेना के जनरलों ने किया है, शीर्ष नौकरशाहों ने किया है.
यहां तक कि भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त होने के कुछ दिनों बाद ही राज्यसभा में एक सीट पर भाजपा का उम्मीदवार बनना स्वीकार कर लिया.
राष्ट्रीय दलों से लेकर क्षेत्रीय दलों तक, लेफ्ट, राइट और सेंटर तक राजनीतिक पार्टियां पुलिस और नौकरशाही के साथ बिग बॉस के इस रिश्ते को पसंद करती हैं और इसका फायदा उठाती हैं.
दुर्भाग्य से अधिक से अधिक पुलिस और बाबू समझौता करने के लिए तैयार दिखते हैं. सुशांत मामले में भी, कईयों ने मुंबई पुलिस और पटना पुलिस को अपने-अपने राज्य की तरफ से इस्तेमाल किया. और सीबीआई भी, जो अक्सर निष्पक्ष जांच की मांग करने वालों के लिए अंतिम उम्मीद होती है. सुशांत मामले से हाथरस तक हम देख सकते हैं.
खुद सुप्रीम कोर्ट ने इसके बारे में 2013 में कहा था-पिंजड़े में बंद तोता.
ये जो इंडिया है ना... इसे सख्त तौर पर पुलिस रिफॉर्म की जरूरत है. हमें अधिक पुलिस जवाबदेही की आवश्यकता है. उसके लिए, पुलिस के अंदर हमें जांच के लिए अलग कानून और व्यवस्था की जरूरत है.
अगर पुलिस जांच को बाहरी प्रभाव से बचाया जाता है तो जांच की गुणवत्ता में सुधार होगा, अपराधी दर बढ़ेंगे, अपराध पर रोक लगेगी. इसके अलावा अधिक जवाबदेही की मांग करने के लिए, हमें काम करने की स्थिति में सुधार करने और पुलिस बल में भारी रिक्तियों को भरने की जरूरत है - यूपी पुलिस में 53.1% रिक्तियां हैं! जब तक हम ये सब नहीं करते हैं. हम अपनी पुलिस को बिग बॉस के चंगुल से कैसे उबार सकते हैं ?!
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