आरटीआई एक्ट में सरकार के प्रस्तावित संशोधनों से विपक्षी दलों और सूचना के अधिकार के लिए काम कर रहे कार्यकर्ताओं में खलबली है. इन्हें डर है कि सरकार इन प्रस्तावों से आरटीआई एक्ट को कमजोर कर सकती है. सरकार की ओर से केंद्रीय और राज्यों के सूचना आयुक्तों की स्वायत्तता को कमजोर करने की कोशिश से यह आशंका और बढ़ गई है.
सूचना आयुक्तों के वेतन और कार्यकाल नियंत्रित करने की कोशिश
बिजनेस स्टैंडर्ड की खबर के मुताबिक संसद सदस्यों के बीच सूचना के अधिकार के संशोधित बिल की जो प्रतियां बांटी गई हैं, उनमें केंद्र और राज्यों के सूचना आयोगों की स्वतंत्रता की सुरक्षा खत्म करने की बात है. फिलहाल केंद्र और राज्य, दोनों जगह सूचना आयुक्तों के वेतन और उनके कार्यकाल को संवैधानिक संरक्षण मिला हुआ और उनका दर्जा केंद्र के मुख्य चुनाव आयुक्त और आयुक्तों के बराबर है. राज्यों के चुनाव आयुक्तों का कार्यकाल और वेतन को भी यही दर्जा हासिल है.
संशोधन बिल में कहा गया है केंद्र और राज्यों के सूचना आयुक्तों के वेतन और कार्यकाल अब केंद्र सरकार नियंत्रित करेगी. इसमें कहा गया है कि केंद्रीय और राज्य के सूचना आयोगों के अधिकार और काम चुनाव आयोग से बिल्कुल है. लिहाजा उनके दर्जे और सेवा की स्थितियों में इनके मुताबिक बदलाव करने होंगे.
संशोधन बिल के मुताबिक मुख्य चुनाव आयुक्त, सूचना आयुक्तों और राज्यों के मुख्य सूचना आयुक्तों और आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा शर्तें केंद्र के निर्देश पर तय हो सकती है. इसमें यह भी कहा गया है कि केंद्र और राज्यों दोनों जगहों के सूचना आयोग पांच साल के बजाय केंद्र सरकार के निर्देश के आधार पर तैनात होंगे.
इन संशोधनों के बारे में आरटीआई एक्टिविस्ट अंजलि भारद्वाज ने ट्वीट कर कहा
आरटीआई में प्रस्ताव संशोधन केंद्र सूचना आयुक्तों की स्वायत्तता को पूरी तरह खत्म कर देंगे. अगर केंद्र सरकार केंद्र और राज्य के सूचना आयुक्तों का वेतन और कार्यकाल तय करेगी तो स्वायतत्ता का खत्म होना तय है. फिलहाल इसे संवैधानिक संरक्षण मिला हुआ है.अंजलि भारद्वाज, आरटीआई एक्टिविस्ट
विपक्ष करेगा विरोध
केंद्र, वामपंथी और दूसरे विपक्षी दलों ने कहा है कि वह इस बिल का विरोध करेंगे. लोकसभा में एनडीए का बहुमत होने की वजह से सरकार को इस बिल को लेकर दिक्कत नहीं आएगी. लेकिन राज्यसभा में उसकी राह में अड़चनें आ सकती हैं क्योंकि वहां इसे साधारण बहुमत भी हासिल नहीं है.
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