पिछले हफ्ते मुंबई के ESIC अस्पताल में आग लग गई थी, जिसमें एक हफ्ते की एक बच्ची की भी मौत हो गई थी. अस्पताल प्रशासन ने मृतकों को 10 लाख रुपये का मुआवजा दिए जाने का ऐलान किया था. लेकिन अस्पताल प्रशासन ने आग में अपनी हफ्तेभर की बच्ची को गंवाने वाले माता-पिता को मुआवजा देने के मामले में संवेदनहीनता की सारी हदें तोड़ दी हैं.
मृतक बच्ची के माता-पिता ने आरोप लगाया है कि प्रशासन ने उन्हें दी जाने वाली मुआवजे की रकम को 10 लाख से घटाकर 2 लाख रुपये कर दिया है. मुआवजे की रकम घटाने के पीछे प्रशासन ने तर्क दिया है कि समय से पहले जन्मी इस बच्ची की स्वाभाविक स्थिति में भी मौत हो जाती.
अस्पताल प्रशासन ने दो-दो लाख रुपये के दो चेक बच्ची के माता-पिता को दिये. संभवत: उनमें एक चेक मृतक बच्ची की खातिर और दूसरा उसके भाई की खातिर, जो इस घटना में झुलस गया था.
अस्पताल प्रशासन ने नई रिपोर्ट तैयार करने का दिया निर्देश
बच्ची के माता-पिता की ओर से आरोप लगाये जाने के बाद अधिकारी ने कहा कि अस्पताल प्रशासन ने संबंधित तहसीलदार से अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक से परामर्श कर नयी रिपोर्ट तैयार करने को कहा है. उपनगरीय क्षेत्र अंधेरी के मरोल में ESIC अस्पताल में 17 दिसंबर को आग लग गई थी, जिससे 11 लोगों की मौत हो गयी थी.
श्रम मंत्रालय ने मारे गये लोगों के परिवारों के लिए 10-10 लाख रुपये और गंभीर रूप से घायलों के वास्ते दो दो लाख रुपये की घोषणा की थी. इस आग में करीब 175 लोग झुलस गये थे.
मुआवजा कम करने के पीछे अस्पताल प्रशासन ने दिया ये तर्क
इस हादसे में मृतक बच्ची की मां ललिता लोगावी ने आरोप लगाया कि अस्पताल प्रशासन ने उसे 10 लाख रुपये के मुआवजे से वंचित कर दिया और कहा कि समय से पहली जन्मी बच्चे की प्राकृतिक रूप से मौत होने ही जा रही थी.
ललिता ने आग की इस घटना से तीन दिन पहले जुड़वा बच्चे- एक लड़के और एक लड़की को जन्म दिया था. ललिता ने कहा कि उसका बेटा स्वस्थ और सुरक्षित है, लेकिन उसकी बेटी की ESIC अस्पताल में सोमवार को आग लगने पर संभवत: होली स्पिरिट अस्पताल ले जाने के दौरान की मौत गई.
मृतक बच्ची की मां ने बताया:
‘‘आग लगने के दौरान उसे लाइफ सपोर्ट सिस्टम से हटा लिया गया और उसे होली स्पिरिट अस्पताल ले जाया जा रहा था. शायद लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटाने और धुंए की वजह से मेरी बेटी मर गयी.’’
'अन्याय' के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ेंगे माता-पिता
ललिता ने कहा कि वैसे तो किसी भी मुआवजे से उसकी बेटी वापस नहीं आने जा रही है, लेकिन पूरे मुआवजे से इनकार करना जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है. वह और उसके पति इस 'अन्याय' के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ेंगे.
बच्ची की खातिर महज दो लाख का चेक देने का मतलब है कि अस्पताल बच्ची को मृत नहीं, बल्कि आग में गंभीर रूप से घायल मानकर चल रही है.
ESIC के अतिरिक्त आयुक्त एसके सिन्हा ने इस संबंध में किए गये कॉल और भेजे गए संदेशों का कोई जवाब नहीं दिया. ललिता ने कहा कि उसकी बेटी के नाम से दिये गये चेक को वह नहीं भुनाएगी.
अस्पताल प्रशासन ने दी सफाई
इस बीच, अस्पताल के अधिकारी ने बताया कि बच्ची की मौत से पहले चेक तैयार किया गया था, क्योंकि वे क्रिसमस (25 दिसंबर) से पहले पीड़ितों और उसके रिश्तेदारों के बीच चेक देना चाहते थे.
अधिकारी ने कहा, ''इन आरोपों का पता चलने के बाद हमने संबंधित तहसीलदार से अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक से मिलकर नयी रिपोर्ट तैयार करने को कहा है.'' उन्होंने कहा कि वे पीड़ित माता-पिता का दर्द समझते हैं.
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