इस महीने की शुरुआत से असम में एनआरसी के लिए मिले शॉर्ट नोटिस के बाद अहम री-वेरीफिकेशन करवाने के लिए हजारों मुस्लिम जद्दोजेहद कर रहे हैं. ऐसे में इस प्रक्रिया को पूरा करने के काम में उन्हें हिंदुओं का भरपूर मदद मिल रही है.
असम में कामरूप, गोलपारा और दक्षिण सलमारा जिलों के इन लोगों को 3 अगस्त को नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (NRC) के नोटिस मिला था. इस नोटिस में उन्हें 400 किलोमीटर दूर शिवसागर, चराइदेव और गोलाघाट जिलों में एनआरसी सेवा केंद्रों पर 24 से 48 घंटों के अंदर हाजिर होने के लिए कहा गया. इतने कम समय में इतनी लंबी यात्रा करना आसान नहीं था. कई गरीब मुसलमानों ने अपने कीमती सामान गिरवी रखवा दिए, जिसमें उनके सोने के गहने भी शामिल थे. इसके अलावा कई ने अपने मवेशी और कटाई वाली फसलें औने-पौने दामों पर बेच दीं.
भीड़ भरे ओवरलोड बसों में अपने बुजुर्ग माता-पिता और बच्चों के साथ यात्रा करने के लिए मजबूर इन लोगों की मुश्किलों को बसों के महंगे किरायों ने और ज्यादा बढ़ा दी.
लेकिन, शंकरदेब-अजान फकीर की भूमि में सांप्रदायिक सद्भाव की सदियों पुरानी परंपरा के तहत, इन गरीब लोगों को जरूरत की लगभग हर चीज मिली - खाना, पानी और यहां तक कि एक गर्भवती महिला की देखभाल के लिए डॉक्टर भी. ये सब कुछ उन्हें मिला ‘अनजान जगह पर अनजान लोगों के एक ग्रुप से’.
शिवसागर की ऐतिहासिक अहमियत
दक्षिण सलमारा जिले से 72 वर्षीय इमामुल हक अपने ही इलाके तक सीमित हो गये थे, लेकिन शिवसागर की यात्रा ने उनके लिये नयी दुनिया के दरवाजे खोल दिए. शिवसागर 17वीं सदी में अहोम राजा की राजधानी थी. हक ने कहा, ‘‘मैंने कहीं पढ़ा था कि बगदाद से मुस्लिम उपदेशक शिवसागर आये थे और उन्होंने वहां लोगों को एकजुट किया. उन्होंने असम में सुधार और इस्लाम को मजबूत करने का काम किया था. अजान सुनाने की अपनी खास शैली के कारण वह अजान फकीर के नाम से मशहूर हुए.’’
‘‘शिवसागर के युवाओं ने हम जैसे सैकड़ों लोगों को मुफ्त में खिचड़ी खिलायी और पानी दिया.’’--जहीरउल आलम
नगरबेरा की जहीरा खातून ने बताया कि उन्होंने एक गर्भवती महिला की जांच के लिये डॉक्टरी सेवा का भी इंतजाम किया.
शिवसागर में दरगाह की देखभाल हिंदू करते हैं और इस नजारे ने ग्वालपाड़ा के स्कूली छात्र सुकुर अली के मन मस्तिष्क पर गहरी छाप छोड़ी.
इंसानियत की मिसाल
अल्पसंख्यक बहुल पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के प्रवक्ता जहरूल इस्लाम ने कहा, ‘‘ऊपरी असम में मानवता की जो मिसाल दिखी वह अद्भुत है. प्रशासन और स्थानीय हिंदुओं से मिले सहयोग ने मुस्लिमों के दिलो-दिमाग को बदल दिया.’’ उन्होंने कहा, ‘‘वे राजनीतिक और निहित स्वार्थ को समझ गये हैं, जिसके जरिये हिंदू-मुस्लिम खाई पैदा करने की कोशिश की जाती है और जो असम के पारंपरिक सांप्रदायिक सौहार्द के खिलाफ है.’’
जहरूल ने कहा कि जब उन्होंने वहां की छोटी बच्चियों को जिला उपायुक्त दफ्तर की ओर ओआरएस के पैकेट लेकर दौड़ते देखा और लंबी दूरी तय कर आये बच्चों के शरीर में पानी की कमी नहीं हो, इसकी खातिर पीने का पानी तैयार करते देखा तो वे भावुक हो गए.
ऑल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन (एएएमएसयू) के कार्यकारी अध्यक्ष ऐनुद्दीन अहमद ने कहा, ‘‘यह मानवता और असम की संस्कृति को दिखाता है, जो राज्य में विभाजनकारी सांप्रदायिक राजनीति करने वाले राजनीतिक और अन्य निहित स्वार्थ वालों के लिये चेतावनी की तरह है.’’
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट एनआरसी की निगरानी कर रहा है और इस बात को लेकर सख्त है कि अधिकारी तयशुदा अंतिम समयसीमा 31 अगस्त तक इस प्रक्रिया को पूरा करें.
(इनपुट- PTI)
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